HI/690611c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद नव वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६९ Category:HI/अमृत वाणी - New Vrindaban‎ {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Audio_Shorts/short_119.mp3</mp3player>|"मेरे गुरु महाराज इस प्रेस...")
 
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - New Vrindaban‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - New Vrindaban‎]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Audio_Shorts/short_119.mp3</mp3player>|"मेरे गुरु महाराज इस प्रेस को बृहद मृदंग मानते थे। उन्होंने कहा हैं। आप चित्र मे देख सकते है : यहां पर एक मृदंग और प्रेस है। उन्हें यह प्रेस बड़ा प्रिय था। उनके जीवन की आरंभिक दिनों में ही, उन्होंने एक प्रेस शुरू की थी।आप यदि उनके जीवन मे देखे तो एक छोटा सा प्रेस नज़र में आएगा।इसलिए यह प्रेस प्रचार, यह साहित्यिक प्रचार, की आवश्यकता है, क्योंकि यह भावना नहीं है। कृष्ण चेतना एक भावना नहीं है।यह किसी भावनात्मक लोगों का समूह नहीं है जो यहाँ नृत्य और कीर्तन कर रहे हैं। नहीं। इसके पीछे अर्थ है। इसके पीछे पूर्ण तत्वज्ञान है। पूर्ण अध्यत्मविद्या की समझ है। यह अंधा या भावनात्मक नहीं है।"|Vanisource:690611 - Lecture SB 01.05.12-13 - New Vrindaban, USA|690611 - प्रवचन श्री . भा . ०१.०५.१२-१३- न्यू वृंदावन, यू एस ऐ }}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Audio_Shorts/short_119.mp3</mp3player>|"मेरे गुरु महाराज इस प्रेस को बृहद मृदंग मानते थे। उन्होंने कहा है। आप चित्र मे देख सकते है: यहां पर एक मृदंग और प्रेस है। उन्हें यह प्रेस बड़ा प्रिय था। उनके जीवन की आरंभिक दिनों में ही, उन्होंने एक प्रेस शुरू की थी। आप यदि उनके जीवन मे देखे तो एक छोटा सा प्रेस नज़र आएगा। इसलिए यह प्रेस प्रचार, यह साहित्यिक प्रचार, की आवश्यकता है, क्योंकि यह भावना नहीं है। कृष्ण भावनामृत एक भावना नहीं है। यह किसी भावनात्मक लोगों का समूह नहीं है जो यहाँ नृत्य और कीर्तन कर रहे हैं। नहीं। इसके पीछे अर्थ है। इसके पीछे पूर्ण तत्वज्ञान है। पूर्ण अध्यत्मविद्या की समझ है। यह अंधा या भावनात्मक नहीं है।"|Vanisource:690611 - Lecture SB 01.05.12-13 - New Vrindaban, USA|690611 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०५.१२-१३ - न्यू वृंदावन, यूएसऐ}}

Latest revision as of 15:22, 14 June 2024

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मेरे गुरु महाराज इस प्रेस को बृहद मृदंग मानते थे। उन्होंने कहा है। आप चित्र मे देख सकते है: यहां पर एक मृदंग और प्रेस है। उन्हें यह प्रेस बड़ा प्रिय था। उनके जीवन की आरंभिक दिनों में ही, उन्होंने एक प्रेस शुरू की थी। आप यदि उनके जीवन मे देखे तो एक छोटा सा प्रेस नज़र आएगा। इसलिए यह प्रेस प्रचार, यह साहित्यिक प्रचार, की आवश्यकता है, क्योंकि यह भावना नहीं है। कृष्ण भावनामृत एक भावना नहीं है। यह किसी भावनात्मक लोगों का समूह नहीं है जो यहाँ नृत्य और कीर्तन कर रहे हैं। नहीं। इसके पीछे अर्थ है। इसके पीछे पूर्ण तत्वज्ञान है। पूर्ण अध्यत्मविद्या की समझ है। यह अंधा या भावनात्मक नहीं है।"
690611 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०५.१२-१३ - न्यू वृंदावन, यूएसऐ