HI/720326 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/720326SB-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"नरोत्तम दास ठाकुर ने बहुत अच्छा | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/720326SB-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"नरोत्तम दास ठाकुर ने बहुत अच्छा भजन गाया है: देह स्मृति नाहि यार संसार बंधन कहां तार: "वो व्यक्ति जो इस जीवन के भौतिक धारणा से मुक्त हो चुका है, अब वह बद्ध जीव नही रहा। ऐसे व्यक्ति की मुक्ति हो चूका है।" देह स्मृति नाही यार। यह संभव है। यह संभव है। इस संदर्भ में उदाहरण दिया गया है, जैसे एक नारियल जब वह कच्चा है, तो वह पूरा नारियल जुड़ा हुआ है, किंतु जब वह सूखा हुआ है और आप उसे हिलाएंगे तो आपको ध्वनि सुनाई देगी कर्ट-कर्ट कर्ट-कर्ट। इसका अर्थ की नारियल के भीतर की खोल नारियल के जड़ से प्रथक हो चुकी है। यह संभव है। वैसे ही यह भौतिक शरीर के भीतर होते हुए भी, यदि आप भक्ति-योग के नियमों का पालन करेंगे, वासुदेवे भगवती-भक्ति-योग वासुदेव के द्वारा किसी और के द्वारा नही-वासुदेवे भगवती भक्ति योगः प्रायोजितः-फिर धीरे धीरे आप मुक्त हो जाएंगे। "|Vanisource:720326 - Lecture SB 01.02.06 - Bombay|720326 - प्रवचन श्री.भा. ०१.०२.०६ - बॉम्बे}} |
Latest revision as of 15:37, 14 June 2024
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"नरोत्तम दास ठाकुर ने बहुत अच्छा भजन गाया है: देह स्मृति नाहि यार संसार बंधन कहां तार: "वो व्यक्ति जो इस जीवन के भौतिक धारणा से मुक्त हो चुका है, अब वह बद्ध जीव नही रहा। ऐसे व्यक्ति की मुक्ति हो चूका है।" देह स्मृति नाही यार। यह संभव है। यह संभव है। इस संदर्भ में उदाहरण दिया गया है, जैसे एक नारियल जब वह कच्चा है, तो वह पूरा नारियल जुड़ा हुआ है, किंतु जब वह सूखा हुआ है और आप उसे हिलाएंगे तो आपको ध्वनि सुनाई देगी कर्ट-कर्ट कर्ट-कर्ट। इसका अर्थ की नारियल के भीतर की खोल नारियल के जड़ से प्रथक हो चुकी है। यह संभव है। वैसे ही यह भौतिक शरीर के भीतर होते हुए भी, यदि आप भक्ति-योग के नियमों का पालन करेंगे, वासुदेवे भगवती-भक्ति-योग वासुदेव के द्वारा किसी और के द्वारा नही-वासुदेवे भगवती भक्ति योगः प्रायोजितः-फिर धीरे धीरे आप मुक्त हो जाएंगे। " |
720326 - प्रवचन श्री.भा. ०१.०२.०६ - बॉम्बे |