HI/760308 - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हम सीमित हैं, या हमारा ज्ञान सीमित है, अपूर्ण है, इसलिए हमें बहस नहीं करना चाहिए। हमें वेद में जो कहा गया है, उसे स्वीकार करना चाहिए। और अगर हम बहस करेंगे, तो हमें अनावश्यक रूप से विरोधाभास मिलेगा और हम गुमराह हो जाएँगे। बहस मत करो। वेद-वचन . . . का कोई सवाल ही नहीं है। वेद-वचन का मतलब है वेद-प्रमाण, श्रुति-प्रमाण। यह वैदिक सभ्यता का तरीका है। अगर आप वेदों से उद्धरण देकर कुछ साबित कर सकते हैं, तो आप विजयी हैं। वेद-प्रमाण। श्रुति-प्रमाण। कई प्रमाण हैं, लेकिन प्रथम श्रेणी का प्रमाण श्रुति-प्रमाण है। श्रुति-स्मृति-पुराणादि-पंचरात्रिकि-विधिं विना (भक्ति-रसामृत-सिन्धु १.२.१०१)।"
760308 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०९.३० - मायापुर