HI/701107 बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701107R1-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"तो हमें उस स्थिति की तैयारी करनी होगी, घर वापस कैसे जाना है, कृष्ण के पास वापस कैसे जाना है, और अपनी सेवा में खुद को व्यस्त रखना है। फिर माँ या दोस्त के रूप में या ... का प्रश्न बाद में माना जाएगा। सबसे पहले हम यह कोशिश करें कि हम ईश्वर के राज्य में कैसे प्रवेश करें। यह शर्त है, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं ([[Vanisource:BG 18.66 (1972)|BG 18.66]]), कि 'तुम मेरे प्रति समर्पण करो,अपने अन्य सभी कार्यों को छोड़ दो। तब मैं आपका कार्यभार संभालता हूं। अहं त्वां मोक्षयिष्यामि . मोक्षा  है। कृष्ण-भक्त के लिए, मोक्ष या मुक्ति कुछ भी नहीं है। वह कर लेंगे। वह इसकी देखभाल करेंगे। |Vanisource:701107 - Conversation - Bombay|701107 - बातचीत - बॉम्बे}}
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Latest revision as of 14:13, 4 February 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
हमें उस स्थिति की तैयारी करनी होगी, कैसे भगवद धाम जाए, कैसे कृष्ण पास जाए, और ख़ुद को उनकी सेवा में प्रवृत्त करे। फिर माँ या दोस्त के रूप में या ... ये प्रश्न बाद में आता है। सबसे पहले हम यह कोशिश करें कि हम भगवद धाम में कैसे प्रवेश करें। यह शर्त है, सर्वधर्मान् परित्यज्य माम एकम शरणम (भ.गी. १८.६६), कि 'तुम मेरे प्रति पूर्ण समर्पण करो, अपने अन्य सभी कार्यों को छोड़ कर। फिर मैं आपका कार्यभार संभालता हूं।' अहम त्वाम मोक्षयिष्यामि। मोक्ष है। कृष्ण-भक्त के लिए, मोक्ष या मुक्ति कुछ भी नहीं है। वे (कृष्ण) कर लेंगे वे (कृष्ण) इसकी देखभाल करेंगे।
701107 - बातचीत - बॉम्बे