HI/730907b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद स्टॉकहोम में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 04:20, 5 December 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह ही कृष्ण भावनामृत आंदोलन की परिभाषा है : सर्वोपाधि-विनिर्मुक्तं तत-परत्वेन निर्मलम, हृषीकेन (श्री चैतन्य चरितामृत मध्यलीला १९.१७०), अनुकूल्येन कृष्णनुशीलनं भक्तिर उत्तमा(श्री चैतन्य चरितामृत मध्यलीला १९.१६७)। भक्ति, भक्तिमय परिचर्या, प्रथम श्रेणी की भक्तिमय परिचर्या, की उपलब्धि हो सकती है जब व्यक्ति सभी उपाधियों से मुक्त हो जाता है। जब तक व्यक्ति स्वयं को उपाधि युक्त अनुभव करता है, कि " मैं अमेरिकन हूँ," "मैं भारतीय हूँ," "मैं अँगरेज़ हूँ," "मैं जर्मन हूँ," "मैं श्यामवर्ण हूँ," "मैं गौरवर्ण हूँ," नहीं। तुम्हें स्वयं को अनुभव करना है। अनुभव ही नहीं; व्यवहारिक अभ्यास करना कि, "मैं जीवात्मा हूँ। मैं परम पुरुषोत्तम भगवान का सनातन भाग और अंश हूँ।" जब आप इस स्तर पर आ जाओगे, इसको सर्वोपाधि- विनिर्मुक्तं कहा जाता है, सभी उपाधियों से विमुक्त।" |
730907 - प्रवचन BG 18.41 to Uppsala University Student Assembly - स्टॉकहोम |