HI/Prabhupada 0822 - तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से: Difference between revisions
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हारिकेश: अनुवाद: "प्रभु की महिमा हमेशा गायन के योग्य है, क्योंकि उनकी महिमा उनके भक्तों की महिमा को बढ़ाती है । इसलिए हमें भगवान पर ध्यान करना चाहिए अौर उनके भक्तों पर । हमें ध्यान करना है भगवान के शाश्वत रूप पर जब तक मन स्थिर नहीं हो जाता | हारिकेश: अनुवाद: "प्रभु की महिमा हमेशा गायन के योग्य है, क्योंकि उनकी महिमा उनके भक्तों की महिमा को बढ़ाती है । इसलिए हमें पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान पर ध्यान करना चाहिए अौर उनके भक्तों पर । हमें ध्यान करना है भगवान के शाश्वत रूप पर जब तक मन स्थिर नहीं हो जाता है ।" | ||
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यही ध्यान कहा जाता | यही ध्यान कहा जाता है । यावन - जब तक मन परेशान है और ध्यान के हमारे विषय से भटक जाता है, हमें इस कीर्तन का अभ्यास करना चाहिए । कीर्तनीय: सदा हरि: ([[Vanisource:CC Adi 17.31|चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१]]) | चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं कि भक्त को हमेशा चौबीस घंटे जप करना चाहिए । कीर्तन्य: "यह गायन के योग्य है ।" यह गायन के योग्य है, क्यों ? पुण्य श्लोकस्य । पुण्य श्लोकस्य.... पुण्य श्लोकस्य यशस्करम | | ||
यदि तुम अपने मन को स्थिर नहीं करते हो - कीर्तन का अर्थ है अपने मन को स्थिर करना - लेकिन अगर तुम अपने मन को स्थिर नहीं करते हो, फिर भी तुम फायदे में हो । जितना अधिक तुम प्रभु की महिमा करते हो, तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से । यह जरूरी नहीं है कि तुम समझो, लेकिन अगर तुम हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप करते रहो, तो तुम पवित्र हो जाते हो । पुण्य-श्लोक । कृष्ण का दूसरा नाम है पुण्य श्लोक, उत्तम-श्लोक । केवल "कृष्ण" जपने से, तुम पवित्र हो जाते हो । तो ध्यायेद देवम समग्रांगम | ध्यान, चरण कमलों से शुरू करना चाहिए । जैसे ही तुम कीर्तन शुरू करते होते, सब से पहले चरण कमलों में अपने मन को केंद्रित करो, यह नहीं कि मुख पर अचानक से कूद पड़ो । अभ्यास करो चरण कमलों का ध्यान करने में, फिर उससे उपर, घुटने, फिर जांघें, फिर पेट, फिर छाती । | |||
इस तरह से अाखरी में मुख । यह प्रक्रिया है । यह दूसरे स्कंध में वर्णित है । प्रक्रिया है कि कैसे कृष्ण के बारे में सोचें, मन मना भव मद भक्त: ([[HI/BG 18.65|भ.गी. १८.६५]]) | यह ध्यान है । तो यह... कीर्तन करके यह बहुत आसान हो जाता है । अगर तुम हरिदास ठाकुर की तरह हरे कृष्ण महा-मंत्र चौबीस घंटे जाप करते हो... यह संभव नहीं है । तो जितना हो सके उतना करो । तीर्थ-यशस । कीर्तन... यह भी कीर्तन है । हम कृष्ण के बारे में बात कर रहे हैं, कृष्ण के बारे में पढ़ रहे हैं, भगवद गीता में कृष्ण के निर्देश पढ़ रहे हैं या श्रीमद-भागवतम में कृष्ण की महिमा को पढ़ रहे हैं । ये सभी कीर्तन हैं । यह नहीं की जब हम संगीत उपकरण के साथ गाते हैं, वह कीर्तन है । नहीं । जो भी तुम कृष्ण के बारे में बात करते हो, वह कीर्तन है । | |||
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Latest revision as of 17:45, 1 October 2020
Lecture on SB 3.28.18 -- Nairobi, October 27, 1975
हारिकेश: अनुवाद: "प्रभु की महिमा हमेशा गायन के योग्य है, क्योंकि उनकी महिमा उनके भक्तों की महिमा को बढ़ाती है । इसलिए हमें पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान पर ध्यान करना चाहिए अौर उनके भक्तों पर । हमें ध्यान करना है भगवान के शाश्वत रूप पर जब तक मन स्थिर नहीं हो जाता है ।"
प्रभुपाद:
- कीर्तन्य तीर्थ यशसम
- पुण्य श्लोक यशस्करम
- ध्यायेद देवम समग्रांगम
- यावन च च्यवते मन:
- (श्रीमद भागवतम ३.२८.१८) |
यही ध्यान कहा जाता है । यावन - जब तक मन परेशान है और ध्यान के हमारे विषय से भटक जाता है, हमें इस कीर्तन का अभ्यास करना चाहिए । कीर्तनीय: सदा हरि: (चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१) | चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं कि भक्त को हमेशा चौबीस घंटे जप करना चाहिए । कीर्तन्य: "यह गायन के योग्य है ।" यह गायन के योग्य है, क्यों ? पुण्य श्लोकस्य । पुण्य श्लोकस्य.... पुण्य श्लोकस्य यशस्करम |
यदि तुम अपने मन को स्थिर नहीं करते हो - कीर्तन का अर्थ है अपने मन को स्थिर करना - लेकिन अगर तुम अपने मन को स्थिर नहीं करते हो, फिर भी तुम फायदे में हो । जितना अधिक तुम प्रभु की महिमा करते हो, तुम पवित्र बनते हो केवल कीर्तन करने से । यह जरूरी नहीं है कि तुम समझो, लेकिन अगर तुम हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप करते रहो, तो तुम पवित्र हो जाते हो । पुण्य-श्लोक । कृष्ण का दूसरा नाम है पुण्य श्लोक, उत्तम-श्लोक । केवल "कृष्ण" जपने से, तुम पवित्र हो जाते हो । तो ध्यायेद देवम समग्रांगम | ध्यान, चरण कमलों से शुरू करना चाहिए । जैसे ही तुम कीर्तन शुरू करते होते, सब से पहले चरण कमलों में अपने मन को केंद्रित करो, यह नहीं कि मुख पर अचानक से कूद पड़ो । अभ्यास करो चरण कमलों का ध्यान करने में, फिर उससे उपर, घुटने, फिर जांघें, फिर पेट, फिर छाती ।
इस तरह से अाखरी में मुख । यह प्रक्रिया है । यह दूसरे स्कंध में वर्णित है । प्रक्रिया है कि कैसे कृष्ण के बारे में सोचें, मन मना भव मद भक्त: (भ.गी. १८.६५) | यह ध्यान है । तो यह... कीर्तन करके यह बहुत आसान हो जाता है । अगर तुम हरिदास ठाकुर की तरह हरे कृष्ण महा-मंत्र चौबीस घंटे जाप करते हो... यह संभव नहीं है । तो जितना हो सके उतना करो । तीर्थ-यशस । कीर्तन... यह भी कीर्तन है । हम कृष्ण के बारे में बात कर रहे हैं, कृष्ण के बारे में पढ़ रहे हैं, भगवद गीता में कृष्ण के निर्देश पढ़ रहे हैं या श्रीमद-भागवतम में कृष्ण की महिमा को पढ़ रहे हैं । ये सभी कीर्तन हैं । यह नहीं की जब हम संगीत उपकरण के साथ गाते हैं, वह कीर्तन है । नहीं । जो भी तुम कृष्ण के बारे में बात करते हो, वह कीर्तन है ।