HI/650728 - बूरो को लिखित पत्र, बॉम्बे: Difference between revisions

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His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda



28 जुलाई, 1965, बम्बई

मेरे प्रिय बुरो,

9 अगस्त 1965 को भारत से अमरीका को मेरे प्रस्थान की पिछली शाम को मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ, चूंकि अभी तक हो चुके मेरी श्रीमद्भागवतम के प्रकाशन के संदर्भ में मैं तुम्हें रुपए व पुस्तकें सौंपना चाहता हूँ।

केवल श्रील प्रभुपाद की कृपा पर निर्भर करते हुए, मैं अपनी श्रीमद्भागवतम् प्रकाशन का प्रसार करने के मेरे लक्ष्य के लिए मैं अमरीका जा रहा हूँ, और अपने साथ में 3 पुस्तकों के 200 सेट ले जा रहा हूँ। मुझे पासपोर्ट प्राप्त करने में तो कोई परेशानी नहीं हुई, किन्तु विदेशी मुद्रा पर सख्ती के चलते पी फॉर्म प्राप्त करना बहुत ही कठिन साबित हुआ। पर कल, श्रील प्रभुपाद की कृपा से, ऐक्सचेंज नियंत्रक ने मुझे जाने की अनुमति दे दी।

1922 में डॉ.बोस लैबोर्टरी लि. में एक युवा प्रबंधक के रूप में जब मैं पहली बार श्रील प्रभुपाद से मिला था, उस समय उन्होंने मुझसे यह इच्छा प्रकट की थी, जिसे मैं अब पूरा करने जा रहा हूँ। और केवल उनके आदेश का पालन करने के लिए ही मैंने जीवन के सभी जोखिम उठाए हैं। जब वे बम्बई आए थे और तुम मात्र चार वर्ष के बालक थ, तो तुम्हारे द्वारा दण्डवत् प्रणाम किए जाने पर वे तुम्हें आशीर्वाद देकर बहुत प्रसन्न थे। चूंकि उस समय तुम हर क्षण मेरे साथ में रहते थे, इसलिए इसके छः महीने बाद मैं तुम्हारे साथ ही उनसे राधा कुण्ड में मिला था। और कृष्णकृपाश्रीमूर्ति ने बड़े प्रेम से तुम्हें कृष्ण का ग्वाल सखा कह कर तुमसे पूछा कि तुम्हारी गाएं कहां पर हैं। तो कृष्ण के एक महान व अंतरंग संगी की ऐसी अहैतुकी कृपा को मत भूलो और मेरी इस बूढ़ी अवस्था व सत्तर वर्ष की आयु में बस इस महान मिशन में मेरे साथ सहयोग मात्र कर दो।

अब परेशानी यह है कि मेरी अनुपस्थिति में, निरीक्षण के अभाव में, छपाई कार्य स्थगित रहेगा।

मैं यह चाहता हूँ कि तुम यह जिम्मेवारी ले लो और मैं तुम्हें रु.100 प्रतिमाह देने को तैयार हूँ। कृपया(अपठनीय)श्रील प्रभुपाद के इस मिशन। श्रील प्रभुपाद के मिशन की सेवा करके तुम भौतिक व आध्यात्मिक, दोनों ही प्रकार से फ़ायदे में रहोगे। मैं यह स्पष्ट रूप से देख पा रहा हूँ। एक बार यह प्रकाशन कार्य स्थापित हो जाए, फिर तुम(अपठनीय) लाखों और करोड़ों मिलेंगे। और मेरे द्वारा तुम्हें बिलकुल अकेला छोड़ जाने से जो तुम अपना नुकसान सोच रहे हो, उसकी भी समुचित भरपाई हो जाएगी। यदि तुम इस महान कार्य में सहयोग करो तो।

पैसे की कोई चिन्ता नहीं है और मैं सारे प्रबन्ध कर दूंगा। तुम्हें केवल कार्य का संचालन करना है और अपना वेतन लेना है। चूंकि मुझे विश्वास है कि मेरी अनुपस्थिति में तुम यह कार्य अच्छे से कर लोगे, इसलिए मैं यह जिम्मेदारी किसी तीसरे व्यक्ति के सुपुर्द नहीं करनी चाहता। छपाई कार्य अवश्य ही जारी रहना चाहिए। अन्यथा इतनी बड़ी परियोजना फलिभूत नहीं हो पाएगी। डाउन कलकत्ता मेल वाया नागपुर से मैं तीन अगस्त 1965 को प्रातः 11 बजे कलकत्ता(हावड़ा स्टेशन) पंहुच रहा हूँ। इसलिए कृपा कर मुझे उपरोक्त नियत समय पर स्टेशन पर मिलो। किन्तु यदि तुम(अपठनीय) मुझसे मिलने में(3-8-1965 को प्रातः11 बजे)तो कृपया मुझे इस निम्नलिखित पते पर मिलो जहा मैं ठहरुंगा, यथा, 65 ए, पथुरियाघाटा स्ट्रीट(अपठनीय)गोविन्दलाल बांगुर का घर। आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो और(अपठनीय)मिलने पर।

स्नेहपूर्वक तुम्हारा,

(प्रभुपाद के हस्ताक्षर)