HI/680611b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:34, 26 May 2019
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
इतनी सुविधा दी जाती है । और भगवद गीता भी है । आप अपने सभी कारणों के साथ, अपने सभी तर्क के साथ, अपनी सभी इंद्रियों के साथ समझ सकते हैं कि ईश्वर क्या है । यह कोई हठधर्मी नहीं है । यह सब उचित है, दार्शनिक है । दुर्भाग्य से उन्होंने निश्चय किया है कि ईश्वर मर चुके है । ईश्वर कैसे मृत हो सकता है ? यह एक और दुष्टता है । आप मरे नहीं हैं, ईश्वर कैसे मर सकते हैं ? तो ईश्वर के मृत होने का कोई प्रश्न ही नहीं है । वे हमेशा मौजूद है, जैसे सूर्य हमेशा मौजूद है । केवल बदमाश, वे कहते हैं कि कोई सूरज नहीं है । सूरज तो है ही । वह आपकी दृष्टि से बाहर है, बस इतना ही । इसी तरह, "क्योंकि हम भगवान को नहीं देख सकते हैं, इसलिए भगवान मर चुके हैं," ये दुष्टता हैं । यह बहुत अच्छा निष्कर्ष नहीं है । |
680611 - प्रवचन - मॉन्ट्रियल |