HI/Prabhupada 0296 - हालांकि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया था, उन्होंने अपनी राय कभी नहीं बदली: Difference between revisions

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वेदों में सबूत है कि ईश्वर है । हर शास्त्र में, हर महान व्यक्तित्व, भक्त, भगवान का प्रतिनिधि ... जैसे प्रभु यीशु मसीह की तरह, उन्होंने भगवान की जानकारी दी है । हालांकि उन्हे क्रूस पर चढ़ाया गया था, उन्होंने अपनी राय कभी नहीं बदली । तो शास्त्र से सबूत है, वेदों से, महान व्यक्तित्व से, फिर भी, अगर मैं कहता हूँ, "ईश्वर मर चुका है । कोई भगवान नहीं है ।" तो मैं किस तरह आदमी हूँ ? इसे दानव कहा जाता है । वे यह कभी विश्वास नहीं करेंगे । वे कभी विश्वास नहीं करेंगे ... बस विपरीत (से) दानव से बुद्धा हैं । बुद्धा का मतलब है बहुत बुद्धिमान, बुद्धिमान व्यक्ति चैतन्य-Caritamrta में यह कहा जाता है, इसलिए, कृष्ण ये भजे से बड़ा चतुर । कृष्ण से जो आकर्षित हो जाता है और जो कोई उसे प्यार करता है ... पूजा का मतलब है प्यार । शुरुआत में यह पूजा होती है, लेकिन अंत में यह प्यार है । पूजा ।
वेदों में सबूत है कि ईश्वर है । हर शास्त्र में, हर महान व्यक्तित्व, भक्त, भगवान का प्रतिनिधि ... जैसे प्रभु ईशु मसीह की तरह, उन्होंने भगवान की जानकारी दी है । हालांकि उन्हे क्रूस पर चढ़ाया गया था, उन्होंने अपनी राय कभी नहीं बदली । तो शास्त्र से सबूत है, वेदों से, महान व्यक्तिओ से, फिर भी, अगर मैं कहता हूँ, "ईश्वर मर चुके है । कोई भगवान नहीं है ।" तो मैं किस तरह का आदमी हूँ ? इसे दानव कहा जाता है । वे यह कभी विश्वास नहीं करेंगे । वे कभी विश्वास नहीं करेंगे ... बस दानव से विपरीत बुधा हैं । बुधा का मतलब है बहुत बुद्धिमान, बुद्धिमान व्यक्ति | चैतन्य चरितामृत में यह कहा जाता है, इसलिए, कृष्ण ये भजे से बड़ा चतुर । कृष्ण से जो आकर्षित हो जाता है और जो कोई उनसे प्रेम करता है ... पूजा का मतलब है प्रेम । शुरुआत में यह पूजा होती है, लेकिन अंत में यह प्रेम है । पूजा ।  


तो इति मत्वा भजन्ते माम बुद्धा । जो बुद्धिमान है, बुद्धिमान है, जो जानता है कि कृष्ण ही सभी कारणों के कारण है ...
तो इति मत्वा भजन्ते माम बुधा । जो समझदार है, बुद्धिमान है, जो जानता है कि कृष्ण ही सभी कारणों के कारण है ...  


:ईशवर: परम: कृष्ण:
:ईश्वर: परम: कृष्ण:  
:सच-चिद-अानन्द विग्रह:
:सच-चिद-अानन्द विग्रह:  
:अनादिर अदिर गोविन्द:
:अनादिर अदिर गोविन्द:  
:सर्व-कारण- कारणम
:सर्व-कारण-कारणम  
:( ब्र स ५।१)
:(ब्रह्मसंहिता ५.१) सर्व-कारण:


सर्व-करण: सब कुछ का कारण, कारण और प्रभाव होता है । तो तुम इस तरह से खोजते जाअो, इस का कारण क्या है, इसका कारण क्या है, इस का कारण क्या है, तो तुम्हे कृष्ण मिलेंगे । सर्व-करण-कारणम । और वेदांत कहता है, जन्मादि अस्य तय: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रइ भ १।१।१]]) तुम नहीं कह सकते कि सब कुछ स्वचालित रूप से उपजा है । यह मूर्खता है । हर चीज़ का एक स्रोत है । सब कुछ । यही बुद्धिमत्ता है । मत कहो ... जैसे आधुनिक विज्ञान में कहते हैं, कि "एक हिस्सा था और फिर निर्माण हुअा - शायद" यह भी "शायद," तुम देखो । तो इस तरह का ज्ञान बेकार है । तुम्हे पता लगाना चाहिए । अगर मैं वैज्ञानिक से पूछता हूँ, "यह टुकड़े का कारण क्या है?" वे उत्तर नहीं दे सकते हैं । इसलिए कारणों का पता लगाअो, और तुम पाअोगे कि ... अगर मैं नहीं पता लगा सकता हूँ, तो हमें अनुसरन करना चाहिए ... महाजनो येन गत: स पंथ: ([[Vanisource:CC Madhya 17.186|चै च मध्य १७।१८६]]) हमें अधिकृत अाचार्यों का अनुसरन करना चाहिए । तुम ईसाई हो, तो यीशु मसीह का अनुसरन करो । वे कहते हैं, "भगवान हैं ।" तो फिर तुम स्वीकार करो कि भगवान हैं । वे कहते हैं, कि "भगवान ने यह बनाया है ।" वे कहते हैं, ' निर्माण होने दो' और सृजन हुअा । तो हम यह स्वीकार करते हैं, "हाँ । भगवान ने बनाया है ।" यहाँ भी भगवद गीता में भगवान कहते हैं, कृष्ण कहते हैं, अहम् सर्वस्य प्रभवो ([[Vanisource:BG 10.8|भ गी १०।८]]) "मैं मूल हूँ ।" तब परमेश्वर सृष्टि के मूल हैं । सर्व-करण-कारणम: (ब्र स ५।१) वह सभी कारणों के कारण हैं ।
हर किसीके का कारण, कारण और प्रभाव होता है । तो तुम इस तरह से खोजते जाअो, इस का कारण क्या है, इसका कारण क्या है, इस का कारण क्या है, तो तुम्हे कृष्ण मिलेंगे । सर्व-कारण-कारणम । और वेदांत कहता है, जन्मादि अस्य यत: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) | तुम नहीं कह सकते कि सब कुछ स्वचालित रूप से उपजा है । यह मूर्खता है । हर चीज़ का एक स्रोत है । सब कुछ । यही बुद्धिमत्ता है । मत कहो ... जैसे आधुनिक विज्ञान में कहते हैं, कि "एक हिस्सा था और फिर निर्माण हुअा - शायद" यह भी "शायद," तुम देखो । तो इस तरह का ज्ञान बेकार है । तुम्हे पता लगाना चाहिए । अगर मैं वैज्ञानिक से पूछता हूँ, "यह टुकड़े का कारण क्या है?" वे उत्तर नहीं दे सकते हैं । इसलिए कारणों का पता लगाअो, और तुम पाअोगे कि ... अगर मैं नहीं पता लगा सकता हूँ, तो हमें अनुसरन करना चाहिए ... महाजनो येन गत: स पंथ: ([[Vanisource:CC Madhya 17.186|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६]]) | हमें अधिकृत अाचार्यों का अनुसरन करना चाहिए । तुम ईसाई हो, तो ईशु मसीह का अनुसरन करो । वे कहते हैं, "भगवान हैं ।" तो फिर तुम स्वीकार करो कि भगवान हैं । वे कहते हैं, कि "भगवान ने यह बनाया है ।" वे कहते हैं, ' निर्माण होने दो' और सृजन हुअा । तो हम यह स्वीकार करते हैं, "हाँ । भगवान ने बनाया है ।" यहाँ भी भगवद गीता में भगवान कहते हैं, कृष्ण कहते हैं, अहम् सर्वस्य प्रभवो ([[HI/BG 10.8|भ.गी. १०.८]]), "मैं मूल हूँ ।" तब परमेश्वर सृष्टि के मूल हैं । सर्व-कारण-कारणम: (ब्रह्मसंहिता ५.१) वह सभी कारणों के कारण हैं ।  


तो हमें महान हस्तियों का उदाहरण लेना है, हमें अधिकृत पुस्तकें और वेदों का अध्ययन करना है, और हमें उनके उदाहरण का अनुसरन करना है; तब कृष्ण भावनामृत या ईश्वर प्राप्ति या भगवान भावनामृत मुश्किल नहीं है । यह बहुत आसान है । वहाँ कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोई भी रुकावट नही है समझने में कि भगवान क्या है । सब कुछ है ।भगवद गीता है, श्रीमद-भागवत है । तुम भी मानते हो, तुम्हारा बाइबिल है, कुरान है, हर जगह । भगवान के बिना, कोई भी पुस्तक या शास्त्र नहीं हो सकता है । आजकल, ज़ाहिर है, वे इतनी सारी चीज़ें का निर्माण कर रहे हैं । लेकिन किसी भी मानव समाज में भगवान की अवधारणा है - समय के अनुसार, लोगों के अनुसार, लेकिन विचार तो है । अब तुम समझो, जिज्ञासा । इसलिए वेदांत सूत्र कहता है कि तुम जांच से भगवान को समझने की कोशिश करो, जांच । यह जांच बहुत महत्वपूर्ण है .
तो हमें महान हस्तिओ का उदाहरण लेना है, हमें अधिकृत पुस्तकें और वेदों का अध्ययन करना है, और हमें उनके उदाहरण का अनुसरन करना है; फिर कृष्ण भावनामृत या ईश्वर प्राप्ति या भगवद भावनामृत मुश्किल नहीं है । यह बहुत आसान है । वहाँ कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोई भी रुकावट नही है समझने में कि भगवान क्या है । सब कुछ है ।भगवद गीता है, श्रीमद-भागवत है । तुम भी मानते हो, तुम्हारा बाइबिल है, कुरान है, हर जगह । भगवान के बिना, कोई भी पुस्तक या शास्त्र नहीं हो सकता है । आजकल, ज़ाहिर है, वे इतनी सारी चीज़ों का निर्माण कर रहे हैं । लेकिन किसी भी मानव समाज में भगवान की अवधारणा है - समय के अनुसार, लोगों के अनुसार, लेकिन विचार तो है । अब तुम समझो, जिज्ञासा । इसलिए वेदांत सूत्र कहता है कि तुम पृच्छा से भगवान को समझने की कोशिश करो, पृच्छा । यह पृच्छा बहुत महत्वपूर्ण है |
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 4, 1968

वेदों में सबूत है कि ईश्वर है । हर शास्त्र में, हर महान व्यक्तित्व, भक्त, भगवान का प्रतिनिधि ... जैसे प्रभु ईशु मसीह की तरह, उन्होंने भगवान की जानकारी दी है । हालांकि उन्हे क्रूस पर चढ़ाया गया था, उन्होंने अपनी राय कभी नहीं बदली । तो शास्त्र से सबूत है, वेदों से, महान व्यक्तिओ से, फिर भी, अगर मैं कहता हूँ, "ईश्वर मर चुके है । कोई भगवान नहीं है ।" तो मैं किस तरह का आदमी हूँ ? इसे दानव कहा जाता है । वे यह कभी विश्वास नहीं करेंगे । वे कभी विश्वास नहीं करेंगे ... बस दानव से विपरीत बुधा हैं । बुधा का मतलब है बहुत बुद्धिमान, बुद्धिमान व्यक्ति | चैतन्य चरितामृत में यह कहा जाता है, इसलिए, कृष्ण ये भजे से बड़ा चतुर । कृष्ण से जो आकर्षित हो जाता है और जो कोई उनसे प्रेम करता है ... पूजा का मतलब है प्रेम । शुरुआत में यह पूजा होती है, लेकिन अंत में यह प्रेम है । पूजा ।

तो इति मत्वा भजन्ते माम बुधा । जो समझदार है, बुद्धिमान है, जो जानता है कि कृष्ण ही सभी कारणों के कारण है ...

ईश्वर: परम: कृष्ण:
सच-चिद-अानन्द विग्रह:
अनादिर अदिर गोविन्द:
सर्व-कारण-कारणम
(ब्रह्मसंहिता ५.१) सर्व-कारण:

हर किसीके का कारण, कारण और प्रभाव होता है । तो तुम इस तरह से खोजते जाअो, इस का कारण क्या है, इसका कारण क्या है, इस का कारण क्या है, तो तुम्हे कृष्ण मिलेंगे । सर्व-कारण-कारणम । और वेदांत कहता है, जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | तुम नहीं कह सकते कि सब कुछ स्वचालित रूप से उपजा है । यह मूर्खता है । हर चीज़ का एक स्रोत है । सब कुछ । यही बुद्धिमत्ता है । मत कहो ... जैसे आधुनिक विज्ञान में कहते हैं, कि "एक हिस्सा था और फिर निर्माण हुअा - शायद" यह भी "शायद," तुम देखो । तो इस तरह का ज्ञान बेकार है । तुम्हे पता लगाना चाहिए । अगर मैं वैज्ञानिक से पूछता हूँ, "यह टुकड़े का कारण क्या है?" वे उत्तर नहीं दे सकते हैं । इसलिए कारणों का पता लगाअो, और तुम पाअोगे कि ... अगर मैं नहीं पता लगा सकता हूँ, तो हमें अनुसरन करना चाहिए ... महाजनो येन गत: स पंथ: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६) | हमें अधिकृत अाचार्यों का अनुसरन करना चाहिए । तुम ईसाई हो, तो ईशु मसीह का अनुसरन करो । वे कहते हैं, "भगवान हैं ।" तो फिर तुम स्वीकार करो कि भगवान हैं । वे कहते हैं, कि "भगवान ने यह बनाया है ।" वे कहते हैं, ' निर्माण होने दो' और सृजन हुअा । तो हम यह स्वीकार करते हैं, "हाँ । भगवान ने बनाया है ।" यहाँ भी भगवद गीता में भगवान कहते हैं, कृष्ण कहते हैं, अहम् सर्वस्य प्रभवो (भ.गी. १०.८), "मैं मूल हूँ ।" तब परमेश्वर सृष्टि के मूल हैं । सर्व-कारण-कारणम: (ब्रह्मसंहिता ५.१) वह सभी कारणों के कारण हैं ।

तो हमें महान हस्तिओ का उदाहरण लेना है, हमें अधिकृत पुस्तकें और वेदों का अध्ययन करना है, और हमें उनके उदाहरण का अनुसरन करना है; फिर कृष्ण भावनामृत या ईश्वर प्राप्ति या भगवद भावनामृत मुश्किल नहीं है । यह बहुत आसान है । वहाँ कोई नहीं है, मेरे कहने का मतलब है, कोई भी रुकावट नही है समझने में कि भगवान क्या है । सब कुछ है ।भगवद गीता है, श्रीमद-भागवत है । तुम भी मानते हो, तुम्हारा बाइबिल है, कुरान है, हर जगह । भगवान के बिना, कोई भी पुस्तक या शास्त्र नहीं हो सकता है । आजकल, ज़ाहिर है, वे इतनी सारी चीज़ों का निर्माण कर रहे हैं । लेकिन किसी भी मानव समाज में भगवान की अवधारणा है - समय के अनुसार, लोगों के अनुसार, लेकिन विचार तो है । अब तुम समझो, जिज्ञासा । इसलिए वेदांत सूत्र कहता है कि तुम पृच्छा से भगवान को समझने की कोशिश करो, पृच्छा । यह पृच्छा बहुत महत्वपूर्ण है |