HI/670327b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 05:12, 1 May 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
“तो मेरे आज के कर्म आगे की एक और नयी तस्वीर बना रहे हैं। जिस प्रकार मेरे भूतकाल के कर्मों से मैंने इस शरीर का सृजन किया। उसी प्रकार अपने वर्तमान कर्म से भी मैं अपने अगले शरीर का सृजन कर रहा हूँ। तो यह आत्मा का आवागमन चल रहा है। परन्तु यदि तुम इस कृष्ण भावना की विधि को अपनाओगे, तब कर्म -ग्रन्थि -निबन्धनम छिन्दन्ति . यह ग्रंथि, एक के बाद दूसरी, यह कट जाएगी। तो यदि यह (कृष्ण भावना विधि ) इतनी अच्छी है...भागवत कहती है यद -अनुद्यासीना। सरलता से इस विधि का पालन करने से, यद -अनुद्यासीना युक्ताः सँलग्न रहने से कर्म-बंध-निबन्धनम, हमारे कर्मफलों की श्रंखला एक के बाद दूसरी, छिन्दन्ति, कट जाती है। कोविदः, यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति है, तस्य को न कुर्यात कथा-रातिम। बुद्धिमान व्यक्ति को स्वयं को कृष्ण के विषयों के बारे में श्रवण करने में क्यों नहीं लगाना चाहिए? क्या इसमें कोई कठिनाई है?” |
670327 - प्रवचन स.ब ०१. ०२. १४-१६ - सैन फ्रांसिस्को |