HI/730709 बातचीत - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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" | "कृष्ण बाहर से, भीतर से सहायता कर रहे हैं। भीतर से परमात्मा के रूप में, और बाहर से आध्यात्मिक गुरु के रूप में उपस्थित हैं। तो वह आपकी सहायता करने के लिए तैयार हैं, दोनों प्रकार से। उनकी दया का उपयोग करें। तब आपका जीवन परिपूर्ण है। वह आपकी सहायता के लिए तैयार हैं, भीतर से और बाहर से। कृष्ण इतने दयालु हैं। कृष्ण की कृपालुता, दयालुता का कोई भी मूल्य नहीं चुका सकता है। हर जन्म में, वह आपके साथ हैं। भगवान कहते हैं : 'आप क्यों पागलपन कर रहे हैं? केवल मेरे मार्ग पर मुड़ जाइए। इसलिए वह हर प्रकार के शरीर में जीव के साथ जा रहे है - चाहे देवता का शरीर या सूअर के शरीर में, हर जगह कृष्ण हैं। सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो [(भ.गी.१५.१५]'"|Vanisource:730709 - Conversation A - London|730709 - बातचीत अ - लंडन}} |
Latest revision as of 15:21, 29 November 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कृष्ण बाहर से, भीतर से सहायता कर रहे हैं। भीतर से परमात्मा के रूप में, और बाहर से आध्यात्मिक गुरु के रूप में उपस्थित हैं। तो वह आपकी सहायता करने के लिए तैयार हैं, दोनों प्रकार से। उनकी दया का उपयोग करें। तब आपका जीवन परिपूर्ण है। वह आपकी सहायता के लिए तैयार हैं, भीतर से और बाहर से। कृष्ण इतने दयालु हैं। कृष्ण की कृपालुता, दयालुता का कोई भी मूल्य नहीं चुका सकता है। हर जन्म में, वह आपके साथ हैं। भगवान कहते हैं : 'आप क्यों पागलपन कर रहे हैं? केवल मेरे मार्ग पर मुड़ जाइए। इसलिए वह हर प्रकार के शरीर में जीव के साथ जा रहे है - चाहे देवता का शरीर या सूअर के शरीर में, हर जगह कृष्ण हैं। सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो [(भ.गी.१५.१५]'" |
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