HI/BG 10.22: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:48, 7 August 2020
श्लोक 22
- वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
- इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥२२॥
शब्दार्थ
वेदानाम्—वेदों में; साम-वेद:—सामवेद; अस्मि—हूँ; देवानाम्—देवताओं में; अस्मि—हूँ; वासव:—स्वर्ग का राजा; इन्द्रियाणाम्—इन्द्रियों में; मन:—मन; च—भी; अस्मि—हूँ; भूतानाम्—जीवों में; अस्मि—हूँ; चेतना—प्राण, जीवनी शक्ति।
अनुवाद
मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में स्वर्ग का राजा इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ, तथा समस्त जीवों में जीवनशक्ति (चेतना) हूँ |
तात्पर्य
पदार्थ तथा जीव में यह अन्तर है कि पदार्थ में जीवों के समान चेतना नहीं होती, अतः यह चेतना परम तथा शाश्र्वत है | पदार्थों के संयोग से चेतना उत्पन्न नहीं की जा सकती |