HI/720630 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैंन डीयेगो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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Latest revision as of 23:07, 12 August 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सभी को अपना विशेष प्रकार का धर्म या व्यवसाय मिला है। यह ठीक है।धर्म स्वनुसतीतः पुंसां (श्री.भा ०१.०२.०८]। परिणाम होगा... आपके विशेष प्रकार के धर्म को क्रियान्वित करने के लिए, परिणाम अवश्य होना चाहिए। परिणाम यह है, 'मैं धाम, भगवत धाम कैसे वापस जाऊँ'। यदि यह इच्छा विकसित नहीं हुई है, तो यह केवल समय की बर्बादी है। आप इस धर्म या उस धर्म का दावा कर सकते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप बस इस या उस हठधर्मिता और कर्मकांड का पालन करके समय बर्बाद कर रहे हैं। इससे आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। फलेना परिचियते। चाहे आप इस भावनामृत में आए हों, 'मैं क्या हूं? मैं विषयवस्तु नहीं हूँ; मैं आत्मा हूं। मुझे अपने आध्यात्मिक... में वापस जाना होगा। उसका..., उसका जरूरत है। इसलिए या तो आप यहूदी हो सकते हैं या हिंदू या ईसाई हो सकते हैं-हम यह देखना चाहते हैं कि क्या भावनामृत उत्पन्न हुई है। नहीं है, तो आपने बस समय बर्बाद किया है। या तो आप हिंदू हैं या ब्राह्मण या यह या वह, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। श्रम एव ही केवलं (श्री.भा. ०१.०२.०८)। बस समय बर्बाद करना।"
720630 - भारतीय के घर में प्रवचन - सैंन डीयेगो