HI/BG 17.22: Difference between revisions
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Latest revision as of 17:01, 14 August 2020
श्लोक 22
- अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते ।
- असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ॥२२॥
शब्दार्थ
अदेश—अशुद्ध स्थान; काले—तथा अशुद्ध समय में; यत्—जो; दानम्—दान; अपात्रेभ्य:—अयोग्य व्यक्तियों को; च—भी; दीयते—दिया जाता है; असत्-कृतम्—सम्मान के बिना; अवज्ञातम्—समुचित ध्यान दिये बिना; तत्—वह; तामसम्—तमोगुणी; उदाहृतम्—कहा जाता है।
अनुवाद
तथा जो दान किसी अपवित्र स्थान में, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से दिया जाता है, वह तामसी कहलाता है ।
तात्पर्य
यहाँ पर मद्यपान तथा द्यूतक्रीड़ा में व्यसनी के लिए दान देने को प्रोत्साहन नहीं दिया गया । ऐसा दान तामसी है । ऐसा दान लाभदायक नहीं होता, वरन् इससे पापी पुरुषों को प्रोत्साहन मिलता है । इसी प्रकार, यदि बिना सम्मान तथा ध्यान दिये किसी उपयुक्त व्यक्ति को दान दिया जाय, तो वह भी तामसी है ।