HI/Prabhupada 0710 - हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं: Difference between revisions
(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0710 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1975 Category:HI-Quotes - Lec...") |
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->") |
||
Line 7: | Line 7: | ||
[[Category:HI-Quotes - in India, Bombay]] | [[Category:HI-Quotes - in India, Bombay]] | ||
<!-- END CATEGORY LIST --> | <!-- END CATEGORY LIST --> | ||
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | |||
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0709 - भगवान की परिभाषा|0709|HI/Prabhupada 0711 - कृपया आपने जो शुरू किया है, उसे तोड़ें नहीं है बहुत आनंद के साथ उसे जारी रखें|0711}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | <!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | ||
<div class="center"> | <div class="center"> | ||
Line 15: | Line 18: | ||
<!-- BEGIN VIDEO LINK --> | <!-- BEGIN VIDEO LINK --> | ||
{{youtube_right| | {{youtube_right|OWx3SjL1QRE|हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं - Prabhupāda 0710}} | ||
<!-- END VIDEO LINK --> | <!-- END VIDEO LINK --> | ||
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page --> | <!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page --> | ||
<mp3player> | <mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/750114SB-BOMBAY_clip1.mp3</mp3player> | ||
<!-- END AUDIO LINK --> | <!-- END AUDIO LINK --> | ||
Line 27: | Line 30: | ||
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) --> | <!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) --> | ||
इसलिए योग की कोई भी प्रणाली, या हठ योग, ज्ञान योग, या ... कर्म योग न्यूनतम मानक में है । और सबसे ऊपर, भक्ति योग । फिर जब तुम भक्ति योग में आते हो, वह जीवन की पूर्णता है । भक्ति-योगेन मनसा सम्यक प्रनिहिते अमले ([[Vanisource:SB 1.7.4| | इसलिए योग की कोई भी प्रणाली, या हठ योग, ज्ञान योग, या... कर्म योग न्यूनतम मानक में है । और सबसे ऊपर, भक्ति योग । फिर जब तुम भक्ति योग में आते हो, वह जीवन की पूर्णता है । भक्ति-योगेन मनसा सम्यक प्रनिहिते अमले ([[Vanisource:SB 1.7.4|श्रीमद भागवतम १.७.४]]) । भक्ति-योगेन अमल: "मन शुद्ध हो जाता है ।" चेतो-दर्पण-मार्जनम ([[Vanisource:CC Antya 20.12|चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२]]) | यही भक्ति योग का प्रभाव है, प्रत्यक्ष प्रभाव । क्योंकि अभी मन दूषित है, और इंद्रियों और इंद्रिय गतिविधियों के तहत है, हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं । | ||
तो गुरु क्या है? गुरु को कारुण्य प्राप्त है । कारुण्य का मतलब है जैसे बादल को समुद्र से पानी प्राप्त हुआ है इसी तरह, एक गुरु, आध्यात्मिक गुरु, दया का बादल प्राप्त करता है दया के सागर कृष्ण से । घनाघनात्वम । और यह एकमात्र बादल है जो जंगल की आग बुझा सकता है | हमें लाखों अरबों शरीरों को स्वीकार करना होगा और फिर जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के चक्र में जाना होगा । यह परिणाम है । इसलिए मन को शुद्ध करो । यही हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप है । चेतो दर्पण मार्जनम भव महा दावाग्नि निर्वापणम । जब हमारा मन शुद्ध होगा... यह महा-दावाग्नि है । यह मानसिक विचारों का फैलाव, हजारों लाखों में, यही महा, भव-महा-दावाग्नि है । भव-महा-दावाग्नि । तो यह गुरू का कर्तव्य है अपने शिष्य को बाहर निकलना इस भव-महा-दावाग्नि से । संसार-दावानल-लीढ-लोक-त्राणाय कारुण्य-धनाघनात्वम । कारुण्य, करुणा । | ||
तो गुरु क्या है? गुरु को कारुण्य प्राप्त है । कारुण्य का मतलब है जैसे बादल को समुद्र से पानी प्राप्त हुआ है, इसी तरह, एक गुरु, आध्यात्मिक गुरु, दया का बादल प्राप्त करता है दया के सागर कृष्ण से । घनाघनात्वम । और यह एकमात्र बादल है जो जंगल की, संसार की, आग बुझा सकता है । कोई अन्य पानी की व्यवस्था मदद नहीं करेगी । आग जंगल में अाग है, तुम्हारे फायर ब्रिगेड या पानी की बाल्टी मदद नहीं करेगी । यह असंभव है । न तो तुम वहां जा सकते हो; न तो तुम कोई भी सेवा प्रदान कर सकते हो अपने फायर ब्रिगेड और बाल्टी से । तो फिर आग कैसे बुझाया जा सकता है? घनाघनात्वम । अगर बादल आकाश में है और वर्षा होती है, तो फिर विशाल जंगल की आग को तुरंत बुझाया जा सकता है । तो वह बादल आध्यात्मिक गुरु माना जाता है । वे पानी बरसाते हैं । वे पानी बरसाते हैं । श्रवण-कीर्तन-जले करये सेचन ([[Vanisource:CC Madhya 19.152|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५२]]) । वह पानी क्या है? पानी है यह श्रवण-कीर्तन । | |||
भव-महा-दावाग्नि, आग, भौतिक अस्तित्व की जंगल की आग, लगातार प्रज्वलित है । तो तुम्हे बादल से वर्षा द्वारा इसे बुझाना होगा, और वह वर्षा का मतलब है श्रवण-कीर्तन । श्रवण का मतलब है सुनना, और कीर्तन का मतलब है जप करना । यही एक तरीका है । श्रवण-कीर्तन-जले करये सेचन । | |||
<!-- END TRANSLATED TEXT --> | <!-- END TRANSLATED TEXT --> |
Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on SB 3.26.39 -- Bombay, January 14, 1975
इसलिए योग की कोई भी प्रणाली, या हठ योग, ज्ञान योग, या... कर्म योग न्यूनतम मानक में है । और सबसे ऊपर, भक्ति योग । फिर जब तुम भक्ति योग में आते हो, वह जीवन की पूर्णता है । भक्ति-योगेन मनसा सम्यक प्रनिहिते अमले (श्रीमद भागवतम १.७.४) । भक्ति-योगेन अमल: "मन शुद्ध हो जाता है ।" चेतो-दर्पण-मार्जनम (चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२) | यही भक्ति योग का प्रभाव है, प्रत्यक्ष प्रभाव । क्योंकि अभी मन दूषित है, और इंद्रियों और इंद्रिय गतिविधियों के तहत है, हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं ।
हमें लाखों अरबों शरीरों को स्वीकार करना होगा और फिर जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के चक्र में जाना होगा । यह परिणाम है । इसलिए मन को शुद्ध करो । यही हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप है । चेतो दर्पण मार्जनम भव महा दावाग्नि निर्वापणम । जब हमारा मन शुद्ध होगा... यह महा-दावाग्नि है । यह मानसिक विचारों का फैलाव, हजारों लाखों में, यही महा, भव-महा-दावाग्नि है । भव-महा-दावाग्नि । तो यह गुरू का कर्तव्य है अपने शिष्य को बाहर निकलना इस भव-महा-दावाग्नि से । संसार-दावानल-लीढ-लोक-त्राणाय कारुण्य-धनाघनात्वम । कारुण्य, करुणा ।
तो गुरु क्या है? गुरु को कारुण्य प्राप्त है । कारुण्य का मतलब है जैसे बादल को समुद्र से पानी प्राप्त हुआ है, इसी तरह, एक गुरु, आध्यात्मिक गुरु, दया का बादल प्राप्त करता है दया के सागर कृष्ण से । घनाघनात्वम । और यह एकमात्र बादल है जो जंगल की, संसार की, आग बुझा सकता है । कोई अन्य पानी की व्यवस्था मदद नहीं करेगी । आग जंगल में अाग है, तुम्हारे फायर ब्रिगेड या पानी की बाल्टी मदद नहीं करेगी । यह असंभव है । न तो तुम वहां जा सकते हो; न तो तुम कोई भी सेवा प्रदान कर सकते हो अपने फायर ब्रिगेड और बाल्टी से । तो फिर आग कैसे बुझाया जा सकता है? घनाघनात्वम । अगर बादल आकाश में है और वर्षा होती है, तो फिर विशाल जंगल की आग को तुरंत बुझाया जा सकता है । तो वह बादल आध्यात्मिक गुरु माना जाता है । वे पानी बरसाते हैं । वे पानी बरसाते हैं । श्रवण-कीर्तन-जले करये सेचन (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५२) । वह पानी क्या है? पानी है यह श्रवण-कीर्तन ।
भव-महा-दावाग्नि, आग, भौतिक अस्तित्व की जंगल की आग, लगातार प्रज्वलित है । तो तुम्हे बादल से वर्षा द्वारा इसे बुझाना होगा, और वह वर्षा का मतलब है श्रवण-कीर्तन । श्रवण का मतलब है सुनना, और कीर्तन का मतलब है जप करना । यही एक तरीका है । श्रवण-कीर्तन-जले करये सेचन ।