HI/Prabhupada 0825 - मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें: Difference between revisions
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यह वेदों में कहा गया है, | यह वेदों में कहा गया है, | ||
:नित्यो | :नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम | ||
:एको | :एको बहुनाम यो विदधाति कामान | ||
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भगवान का वह एश्वर्य क्या है? यह है: एको | भगवान का वह एश्वर्य क्या है ? यह है: एको बहुनाम यो विदधाति कामान । भगवान, एक, और नित्यो नित्यानाम और नित्यानाम, बहुवचन । तो ये जीव, हम बहुवचन संख्या में हैं । जीव भाग: स विज्ञेय: स चानन्त्याय कल्पते । कितने जीव हैं, कोई सीमा नहीं है । कोई भी गिन नहीं सकता है । अनंत । अनंत मतलब तुम सीमा नहीं पता कर सकते हो, "इतने लाख या हजार" नहीं । तुम गिन नहीं सकते । तो ये सभी जीव, हम, जीव, हम उस एक द्वारा पोषित हैं । यह वैदिक जानकारी है । एको यो बहुनाम यो विदधाति कामान । जैसे हम अपने परिवार को पोषण करते हैं । | ||
एक आदमी कमा रहा है, और वह अपने परिवार, पत्नी, बच्चे, नौकर, आश्रितों, श्रमिकों को पोषित कर रहा है, इतने सारे । इसी तरह, वह एक, भगवान, सभी जीवों को पोषित कर रहे है । तुम्हे पता नहीं है की कितने हैं । अफ्रीका में लाखों हाथी हैं । वे भी एक समय में चालीस किलो खा रहे हैं । तो वे भी पोषित हैं । और छोटी चींटी, वह भी पोषित है । ८४,००,००० प्रकार के विभिन्न शरीर के रूप हैं । कौन पोषित कर रहा है उन्हें ? पोषित, भगवान, वह एक: । एको बहुनाम यो विदधाति कामान । यह एक तथ्य है । | |||
तो क्यों वे हमें पोषित नहीं करेंगे ? खास तौर पर जो भक्त हैं, जिन्होंने परम भगवान के चरण कमलों में शरण ली है, सब कुछ छोडक़र केवल उनकी सेवा के लिए । जैसे हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में । हमारे एक सौ केंद्र से अधिक हैं । और एक केंद्र... हम अभी नव भारत टाइम्स का बयान पढ़ रहे थे कि वे किस तरह से सुप्रबंधित हैं । लेकिन हमारा कोई व्यापार नहीं है । हमारी आय का कोई स्रोत नहीं है । आय का एकमात्र स्रोत यह है - कृष्ण की शरण । | |||
समाश्रिता ये पाद पल्लव प्लवम । इसलिए शास्त्र कहते हैं की "तुम कृष्ण की शरण लो ।" कृष्ण भी अाते हैं वही सच्चाई कहने के लिए । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) | उन्होंने कभी नहीं कहा की, "तुम ऐसा करो अौर वैसा करो । फिर मैं तुम्हे पोषित करूँगा ।" नहीं । अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि: "मैं सिर्फ पोषित ही नहीं करूँगा, लेकिन पापी जीवन की प्रतिक्रियाअों से तुम्हारी रक्षा भी करूँगा ।" इतना आश्वासन है । | |||
इसलिए शास्त्र भी कहते हैं, तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो न लभ्यते यद भ्रमताम उपरि अध: ([[Vanisource:SB 1.5.18|श्रीमद भागवतम १.५.१८]]) | तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो । कोविद मतलब बुद्धिमान, बहुत बुद्धिमान व्यक्ति । तो उसे किसके लिए प्रयास करना चाहिए ? तस्यैव हेतो: कृष्ण के चरण कमलों की शरण पाने के लिए । मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें । यही केवल हमारा काम होना चाहिए । | |||
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Latest revision as of 19:21, 17 September 2020
741102 - Lecture SB 03.25.02 - Bombay
यह वेदों में कहा गया है,
- नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम
- एको बहुनाम यो विदधाति कामान
- (कठ उपनिषद २.२.१३) |
भगवान का वह एश्वर्य क्या है ? यह है: एको बहुनाम यो विदधाति कामान । भगवान, एक, और नित्यो नित्यानाम और नित्यानाम, बहुवचन । तो ये जीव, हम बहुवचन संख्या में हैं । जीव भाग: स विज्ञेय: स चानन्त्याय कल्पते । कितने जीव हैं, कोई सीमा नहीं है । कोई भी गिन नहीं सकता है । अनंत । अनंत मतलब तुम सीमा नहीं पता कर सकते हो, "इतने लाख या हजार" नहीं । तुम गिन नहीं सकते । तो ये सभी जीव, हम, जीव, हम उस एक द्वारा पोषित हैं । यह वैदिक जानकारी है । एको यो बहुनाम यो विदधाति कामान । जैसे हम अपने परिवार को पोषण करते हैं ।
एक आदमी कमा रहा है, और वह अपने परिवार, पत्नी, बच्चे, नौकर, आश्रितों, श्रमिकों को पोषित कर रहा है, इतने सारे । इसी तरह, वह एक, भगवान, सभी जीवों को पोषित कर रहे है । तुम्हे पता नहीं है की कितने हैं । अफ्रीका में लाखों हाथी हैं । वे भी एक समय में चालीस किलो खा रहे हैं । तो वे भी पोषित हैं । और छोटी चींटी, वह भी पोषित है । ८४,००,००० प्रकार के विभिन्न शरीर के रूप हैं । कौन पोषित कर रहा है उन्हें ? पोषित, भगवान, वह एक: । एको बहुनाम यो विदधाति कामान । यह एक तथ्य है ।
तो क्यों वे हमें पोषित नहीं करेंगे ? खास तौर पर जो भक्त हैं, जिन्होंने परम भगवान के चरण कमलों में शरण ली है, सब कुछ छोडक़र केवल उनकी सेवा के लिए । जैसे हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में । हमारे एक सौ केंद्र से अधिक हैं । और एक केंद्र... हम अभी नव भारत टाइम्स का बयान पढ़ रहे थे कि वे किस तरह से सुप्रबंधित हैं । लेकिन हमारा कोई व्यापार नहीं है । हमारी आय का कोई स्रोत नहीं है । आय का एकमात्र स्रोत यह है - कृष्ण की शरण ।
समाश्रिता ये पाद पल्लव प्लवम । इसलिए शास्त्र कहते हैं की "तुम कृष्ण की शरण लो ।" कृष्ण भी अाते हैं वही सच्चाई कहने के लिए । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) | उन्होंने कभी नहीं कहा की, "तुम ऐसा करो अौर वैसा करो । फिर मैं तुम्हे पोषित करूँगा ।" नहीं । अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि: "मैं सिर्फ पोषित ही नहीं करूँगा, लेकिन पापी जीवन की प्रतिक्रियाअों से तुम्हारी रक्षा भी करूँगा ।" इतना आश्वासन है ।
इसलिए शास्त्र भी कहते हैं, तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो न लभ्यते यद भ्रमताम उपरि अध: (श्रीमद भागवतम १.५.१८) | तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो । कोविद मतलब बुद्धिमान, बहुत बुद्धिमान व्यक्ति । तो उसे किसके लिए प्रयास करना चाहिए ? तस्यैव हेतो: कृष्ण के चरण कमलों की शरण पाने के लिए । मानव जीवन का एकमात्र प्रयास होना चाहिए कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों की अाश्रय लें । यही केवल हमारा काम होना चाहिए ।