HI/760506b - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७६]]
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760506SB-HONOLULU_ND_01.mp3</mp3player>|"भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[[Vanisource:BG 8.19(1972)|भ.गी. ८.१९]])। तुम्हें अपनी इच्छा के अनुसार जन्म लेना होगा, या तो ब्रह्मा के रूप में या चींटी के रूप में, बिल्ली के रूप में, कुत्ते के रूप में, देवता के रूप में, और अपनी क्षमता के अनुसार, कृष्ण तुम्हें देंगे: "ठीक है।" ये यथा मां प्रपद्यन्ते ताम्स तथैव भजाम्य अहम् ([[Vanisource:BG 4.11|भ.गी. ४.११]])। यदि तुम कृष्ण से इंद्रिय भोग चाहते हो, तो वे तुम्हें सभी सुविधाएँ देंगे। लेकिन कृष्ण नहीं चाहते हैं। कृष्ण ने कहा, सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम एकं शरणं व्रज ([[[Vanisource:BG 18.66 (1972)|भ.गी. १८.६६]])। यही उनका मिशन है, कि "आप इस प्रवृत्ति-मार्ग की प्रक्रिया में कभी भी खुश नहीं होंगे।"|Vanisource:760506 - Lecture SB 06.01.02 - Honolulu|760506 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.०२ - होनोलूलू}}
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Revision as of 10:51, 20 August 2024

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भूत्वा भूत्वा प्रलीयते (भ.गी. ८.१९)। तुम्हें अपनी इच्छा के अनुसार जन्म लेना होगा, या तो ब्रह्मा के रूप में या चींटी के रूप में, बिल्ली के रूप में, कुत्ते के रूप में, देवता के रूप में, और अपनी क्षमता के अनुसार, कृष्ण तुम्हें देंगे: "ठीक है।" ये यथा मां प्रपद्यन्ते ताम्स तथैव भजाम्य अहम् (भ.गी. ४.११)। यदि तुम कृष्ण से इंद्रिय भोग चाहते हो, तो वे तुम्हें सभी सुविधाएँ देंगे। लेकिन कृष्ण नहीं चाहते हैं। कृष्ण ने कहा, सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम एकं शरणं व्रज ([[[Vanisource:BG 18.66 (1972)|भ.गी. १८.६६]])। यही उनका मिशन है, कि "आप इस प्रवृत्ति-मार्ग की प्रक्रिया में कभी भी खुश नहीं होंगे।"
760506 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.०२ - होनोलूलू