HI/700312 - चंदनाचार्य को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस: Difference between revisions

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'''<big>[[Vanisource:700312 - Letter to Candanacarya written from Los Angeles|Original Vanisource page in English]]</big>'''
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त्रिदंडी गोस्वामी
त्रिदंडी गोस्वामी
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संस्थापक-आचार्य: <br/>
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अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ <br/>
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1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड बुलेवार्ड <br>
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड <br>
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034


7 मार्च, 1970
12 मार्च, 1970


मेरे प्रिय चन्दनाचार्य,


कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे सराहना युक्त पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। इस संदर्भ में जो उदार शब्द तुमने प्रयोग किए हैं, वे अत्यन्त आनन्दप्रद हैं, किन्तु सारा श्रेय तो मेरे गुरु महाराज को जाता है। जब 1922 मेरी उनसे प्रथम भेंट हुई थी, तभी उन्होंने मुझे यह कार्य करने के लिए कहा था, पर मैं ऐसा नालायक था कि मैंने बात को 1965 तक टाले रखा। पर वे इतने कृपालु हैं कि उन्होंने ज़बरदस्ती मुझे अपनी सेवा में लगा लिया और चूंकि मैं बिलकुल बेकार हूँ, उन्होंने तुम्हारे जैसे अनेकों सुन्दर अमरीकी युवक व युवतियों को मेरे पास भेजा, जोकि स्वयं उन्हीं के प्रतिनिधि हैं। मेरे अपने गुरु महाराज के प्रति कर्तव्य के पालन में जो तुम सभी मेरी सहायता कर रहे हो, उसके लिए मैं तुम्हारा बहुत ही आभारी हूँ, हालांकि मैं इन कर्तव्यों का पालन करने को बिलकुल अनिच्छुक था। आखिरकार हम सब कृष्ण के नित्य दास हैं और हालांकि मूलतः हमारा जन्म विश्व के पृथक् कोनों में हुआ है और हम एक दूसरे से अनजान थे, फिर भी श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर की दिव्य इच्छा से अब हमारा मिलन हुआ है।


यही कृष्ण की शैली है। तो हमें अत्यधिक उत्साह के साथ, इस परम्परा का विश्व भर में प्रचार कर, जनसाधारण को प्रसन्न बना देना चाहिए। वे केन्द्रबिन्दु, कृष्ण, से चूक रहे हैं और हमारा कर्तव्य है कि उन्हें स्मरण कराएं---तब सबकुछ ठीक हो जाएगा। तो हमारे पूर्वजों द्वारा निर्धारित मार्ग का अनुसरण करो और सफलता निश्चित है।


सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,</br>
मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम्हारे वहां जाने के बाद से, कोलम्बस केन्द्र सुव्यवस्थित हो गया है और अब वहां सबकुछ सुचारु रूप से चल रहा है। इसी बीच मुझे बॉस्टन से समाचार प्राप्त हुआ है कि अकेला अरविन्द वहां लेआउट शीघ्रता से तैयार नहीं कर सकता। इसलिए मैं सोचता हूँ कि यदि तुम बीच-बीच में वहां जाकर इस संदर्भ में उसकी सहयता कर लौट आया करो तो बहुत अच्छा रहेगा। यदि तुम चाहो तो बॉस्टन में रह सकते हो और लेआउट कार्य का जिम्मा ले सकते हो। और कभी-कभार तुम कीर्तनानन्द महाराज के साथ जा सकते हो। यह अच्छा रहेगा।
 
अब हमारा विकास हो रहा हहै और यदि हम आपसी सहयोग से कार्य करें तो हमारे बल का भी विकास होगा। और फिर मिशन की उन्नति में रुकावट नहीं आएगी।
 
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
 
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,<br/>


''(हस्ताक्षरित)''<br/>
''(हस्ताक्षरित)''<br/>


ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी<br/>
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी<br/>
एसीबीएस:डी बी

Revision as of 09:57, 7 March 2019

Letter to Chandanacarya


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034

12 मार्च, 1970

मेरे प्रिय चन्दनाचार्य,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे सराहना युक्त पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। इस संदर्भ में जो उदार शब्द तुमने प्रयोग किए हैं, वे अत्यन्त आनन्दप्रद हैं, किन्तु सारा श्रेय तो मेरे गुरु महाराज को जाता है। जब 1922 मेरी उनसे प्रथम भेंट हुई थी, तभी उन्होंने मुझे यह कार्य करने के लिए कहा था, पर मैं ऐसा नालायक था कि मैंने बात को 1965 तक टाले रखा। पर वे इतने कृपालु हैं कि उन्होंने ज़बरदस्ती मुझे अपनी सेवा में लगा लिया और चूंकि मैं बिलकुल बेकार हूँ, उन्होंने तुम्हारे जैसे अनेकों सुन्दर अमरीकी युवक व युवतियों को मेरे पास भेजा, जोकि स्वयं उन्हीं के प्रतिनिधि हैं। मेरे अपने गुरु महाराज के प्रति कर्तव्य के पालन में जो तुम सभी मेरी सहायता कर रहे हो, उसके लिए मैं तुम्हारा बहुत ही आभारी हूँ, हालांकि मैं इन कर्तव्यों का पालन करने को बिलकुल अनिच्छुक था। आखिरकार हम सब कृष्ण के नित्य दास हैं और हालांकि मूलतः हमारा जन्म विश्व के पृथक् कोनों में हुआ है और हम एक दूसरे से अनजान थे, फिर भी श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर की दिव्य इच्छा से अब हमारा मिलन हुआ है।

यही कृष्ण की शैली है। तो हमें अत्यधिक उत्साह के साथ, इस परम्परा का विश्व भर में प्रचार कर, जनसाधारण को प्रसन्न बना देना चाहिए। वे केन्द्रबिन्दु, कृष्ण, से चूक रहे हैं और हमारा कर्तव्य है कि उन्हें स्मरण कराएं---तब सबकुछ ठीक हो जाएगा। तो हमारे पूर्वजों द्वारा निर्धारित मार्ग का अनुसरण करो और सफलता निश्चित है।

मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम्हारे वहां जाने के बाद से, कोलम्बस केन्द्र सुव्यवस्थित हो गया है और अब वहां सबकुछ सुचारु रूप से चल रहा है। इसी बीच मुझे बॉस्टन से समाचार प्राप्त हुआ है कि अकेला अरविन्द वहां लेआउट शीघ्रता से तैयार नहीं कर सकता। इसलिए मैं सोचता हूँ कि यदि तुम बीच-बीच में वहां जाकर इस संदर्भ में उसकी सहयता कर लौट आया करो तो बहुत अच्छा रहेगा। यदि तुम चाहो तो बॉस्टन में रह सकते हो और लेआउट कार्य का जिम्मा ले सकते हो। और कभी-कभार तुम कीर्तनानन्द महाराज के साथ जा सकते हो। यह अच्छा रहेगा।

अब हमारा विकास हो रहा हहै और यदि हम आपसी सहयोग से कार्य करें तो हमारे बल का भी विकास होगा। और फिर मिशन की उन्नति में रुकावट नहीं आएगी।

आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(हस्ताक्षरित)

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी