HI/680930 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६८ Category:HI/अम...") |
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items) |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - सिएटल]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - सिएटल]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680930LE-SEATTLE_ND_01.mp3</mp3player>| | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
हम लोगों को कृष्ण से प्रेम | {{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680927b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680927b|HI/680930b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680930b}} | ||
पर रखना | <!-- END NAVIGATION BAR --> | ||
उचित स्थान पर | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680930LE-SEATTLE_ND_01.mp3</mp3player>|हमारा कार्य प्रेम और भक्ति के साथ गोविंद, मूल व्यक्ति, की पूजा करना है । गोविंदम आदि-पुरूषं । यह कृष्ण भावनामृत है । हम लोगों को कृष्ण से प्रेम करना सिखा रहे है, बस । हमारा कार्य प्रेम करना है, और अपने प्रेम को उचित स्थान पर रखना है । यही हमारा कार्य है । हर कोई प्रेम करना चाहता है, लेकिन वह निराश हो रहा है क्योंकि वो अपने प्रेम को उचित स्थान पर नहीं लगा रहा है । लोग इसे नहीं समझते । उन्हे यह सिखाया जा रहा है कि, 'सबसे पहले तुम अपने शरीर से प्रेम करो' । फिर थोड़ा विस्तारित मे, 'तुम अपने पिता और माता को प्रेम करो' । फिर 'अपने भाई और बहन से प्रेम करो' । फिर ‘अपने समाज को प्रेम करो, अपने देश को प्रेम करो, पूरे मानव समाज से प्रेम करो, मानवता से' । लेकिन यह सब विस्तारित प्रेम, तथाकथित प्रेम, आपको संतुष्टि नहीं देंगे जब तक आप कृष्ण को प्रेम करने के इस बिंदु तक नहीं पहुंचते । तब ही आप संतुष्ट होंगे ।|Vanisource:680930 - Lecture - Seattle|680930 - प्रवचन - सिएटल}} | ||
से प्रेम करो | |||
फिर थोड़ा विस्तारित मे, | |||
समाज को | |||
लेकिन यह सब विस्तारित प्रेम, तथाकथित प्रेम, आपको संतुष्टि नहीं देंगे जब तक आप कृष्ण को | |||
बिंदु तक नहीं |
Revision as of 00:21, 13 January 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
हमारा कार्य प्रेम और भक्ति के साथ गोविंद, मूल व्यक्ति, की पूजा करना है । गोविंदम आदि-पुरूषं । यह कृष्ण भावनामृत है । हम लोगों को कृष्ण से प्रेम करना सिखा रहे है, बस । हमारा कार्य प्रेम करना है, और अपने प्रेम को उचित स्थान पर रखना है । यही हमारा कार्य है । हर कोई प्रेम करना चाहता है, लेकिन वह निराश हो रहा है क्योंकि वो अपने प्रेम को उचित स्थान पर नहीं लगा रहा है । लोग इसे नहीं समझते । उन्हे यह सिखाया जा रहा है कि, 'सबसे पहले तुम अपने शरीर से प्रेम करो' । फिर थोड़ा विस्तारित मे, 'तुम अपने पिता और माता को प्रेम करो' । फिर 'अपने भाई और बहन से प्रेम करो' । फिर ‘अपने समाज को प्रेम करो, अपने देश को प्रेम करो, पूरे मानव समाज से प्रेम करो, मानवता से' । लेकिन यह सब विस्तारित प्रेम, तथाकथित प्रेम, आपको संतुष्टि नहीं देंगे जब तक आप कृष्ण को प्रेम करने के इस बिंदु तक नहीं पहुंचते । तब ही आप संतुष्ट होंगे । |
680930 - प्रवचन - सिएटल |