HI/BG 2.35: Difference between revisions

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==== श्लोक 35 ====
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:भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।
 
:येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥३५॥
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Latest revision as of 14:28, 28 July 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 35

भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥३५॥

शब्दार्थ

भयात्—भय से; रणात्—युद्धभूमि से; उपरतम्—विमुख; मंस्यन्ते—मानेंगे; त्वाम्—तुमको; महा-रथा:—बड़े-बड़े योद्धा; येषाम्—जिनके लिए; च—भी; त्वम्—तुम; बहु-मत:—अत्यन्त सम्मानित; भूत्वा—हो कर; यास्यसि—जाओगे; लाघवम्—तुच्छता को।

अनुवाद

जिन-जिन महाँ योद्धाओं ने तुम्हारे नाम तथा यश को सम्मान दिया है वे सोचेंगे कि तुमने डर के मारे युद्धभूमि छोड़ दी है और इस तरह वे तुम्हें तुच्छ मानेंगे |

तात्पर्य

भगवान् कृष्ण अर्जुन को अपना निर्णय सुना रहे हैं, “तुम यह मत सोचो कि दुर्योधन, कर्ण तथा अन्य समकालीन महारथी यह सोचेंगे कि तुमने अपने भाईओं तथा पितामह पर दया करके युद्धभूमि छोड़ी है | वे तो यही सोचेंगे कि तुमने अपने प्राणों के भय से युद्धभूमि छोड़ी है | इस प्रकार उनकी दृष्टि में तुम्हारे प्रति जो सम्मान है वह धूल में मिल जायेगा |