HI/BG 6.9: Difference between revisions

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:सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु ।
 
:साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥९॥
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Latest revision as of 11:30, 2 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 9

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु ।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥९॥

शब्दार्थ

सु-हृत्—स्वभाव से; मित्र—स्नेहपूर्ण हितेच्छु; अरि—शत्रु; उदासीन—शत्रुओं में तटस्थ; मध्य-स्थ—शत्रुओं में पंच; द्वेष्य—ईष्र्यालु; बन्धुषु—सम्बन्धियों या शुभेच्छुकों में; साधुषु—साधुओं में; अपि—भी; च—तथा; पापेषु—पापियों में; सम-बुद्धि:—समान बुद्धि वाला; विशिष्यते—आगे बढ़ा हुआ होता है।

अनुवाद

जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों, प्रिय मित्रों, तटस्थों, मध्यस्थों, ईर्ष्यालुओं, शत्रुओं तथा मित्रों, पुण्यात्माओं एवं पापियों को समान भाव से देखता है, तो वह और भी उन्नत माना जाता है | |