HI/BG 7.6: Difference between revisions
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जितनी वस्तुएँ विद्यमान हैं, वे पदार्थ तथा आत्मा के प्रतिफल हैं | आत्मा सृष्टि का मूल क्षेत्र है और पदार्थ आत्मा द्वारा उत्पन्न किया जाता है | भौतिक विकास की किसी भी अवस्था में आत्मा की उत्पत्ति नहीं होती, अपितु यह भौतिक जगत् आध्यात्मिक शक्ति के आधार पर ही प्रकट होता है | इस भौतिक शरीर का इसीलिए विकास हुआ क्योंकि इसके भीतर आत्मा उपस्थित है | एक बालक धीरे-धीरे बढ़कर कुमार तथा अन्त में युवा बन जाता है, क्योंकि उसके भीतर आत्मा उपस्थित है | इसी प्रकार इस विराट ब्रह्माण्ड की समग्र सृष्टि का विकास परमात्मा विष्णु की उपस्थिति के कारण होता है | अतः आत्मा तथा पदार्थ मूलतः भगवान् की दो शक्तियाँ हैं, जिनके संयोग से विराट ब्रह्माण्ड प्रकट होता है | अतः भगवान् ही सभी वस्तुओं के आदि कारण हैं | भगवान् का अंश रूप जीवात्मा भले ही किसी गगनचुम्बी प्रासाद या किसी महान कारखाने या किसी महानगर का निर्माता हो सकता है, किन्तु वह विराट ब्रह्माण्ड का कारण नहीं हो सकता | इस विराट ब्रह्माण्ड का स्त्रष्टा भी विराट आत्मा या परमात्मा है | और परमेश्र्वर कृष्ण विराट तथा लघु दोनों ही आत्माओं के कारण हैं | अतः वे समस्त कारणों के कारण है | इसकी पुष्टि कठोपषद् में (२.२.१३) हुई है – नित्यो नित्यानां चेतनश्र्चेतनानाम्| | |||
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Latest revision as of 15:56, 4 August 2020
श्लोक 6
- एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।
- अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥६॥
शब्दार्थ
एतत्—ये दोनों शक्तियाँ; योनीनि—जिनके जन्म के स्रोत, योनियाँ; भूतानि—प्रत्येक सृष्ट पदार्थ; सर्वाणि—सारे; इति—इस प्रकार; उपधारय—जानो; अहम्—मैं; कृत्स्नस्य—सम्पूर्ण; जगत:—जगत का; प्रभव:—उत्पत्ति का कारण; प्रलय:—प्रलय, संहार; तथा—और।
अनुवाद
सारे प्राणियों का उद्गम इन दोनों शक्तियों में है | इस जगत् में जो कुछ भी भौतिक तथा आध्यात्मिक है, उसकी उत्पत्ति तथा प्रलय मुझे ही जानो |
तात्पर्य
जितनी वस्तुएँ विद्यमान हैं, वे पदार्थ तथा आत्मा के प्रतिफल हैं | आत्मा सृष्टि का मूल क्षेत्र है और पदार्थ आत्मा द्वारा उत्पन्न किया जाता है | भौतिक विकास की किसी भी अवस्था में आत्मा की उत्पत्ति नहीं होती, अपितु यह भौतिक जगत् आध्यात्मिक शक्ति के आधार पर ही प्रकट होता है | इस भौतिक शरीर का इसीलिए विकास हुआ क्योंकि इसके भीतर आत्मा उपस्थित है | एक बालक धीरे-धीरे बढ़कर कुमार तथा अन्त में युवा बन जाता है, क्योंकि उसके भीतर आत्मा उपस्थित है | इसी प्रकार इस विराट ब्रह्माण्ड की समग्र सृष्टि का विकास परमात्मा विष्णु की उपस्थिति के कारण होता है | अतः आत्मा तथा पदार्थ मूलतः भगवान् की दो शक्तियाँ हैं, जिनके संयोग से विराट ब्रह्माण्ड प्रकट होता है | अतः भगवान् ही सभी वस्तुओं के आदि कारण हैं | भगवान् का अंश रूप जीवात्मा भले ही किसी गगनचुम्बी प्रासाद या किसी महान कारखाने या किसी महानगर का निर्माता हो सकता है, किन्तु वह विराट ब्रह्माण्ड का कारण नहीं हो सकता | इस विराट ब्रह्माण्ड का स्त्रष्टा भी विराट आत्मा या परमात्मा है | और परमेश्र्वर कृष्ण विराट तथा लघु दोनों ही आत्माओं के कारण हैं | अतः वे समस्त कारणों के कारण है | इसकी पुष्टि कठोपषद् में (२.२.१३) हुई है – नित्यो नित्यानां चेतनश्र्चेतनानाम्|