HI/BG 8.18: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:11, 5 August 2020
श्लोक 18
- अव्यक्ताद् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
- रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥१८॥
शब्दार्थ
अव्यक्तात्—अव्यक्त से; व्यक्तय:—जीव; सर्वा:—सारे; प्रभवन्ति—प्रकट होते हैं; अह:-आगमे—दिन होने पर; रात्रि-आगमे—रात्रि आने पर; प्रलीयन्ते—विनष्ट हो जाते हैं; तत्र—उसमें; एव—निश्चय ही; अव्यक्त—अप्रकट; संज्ञके—नामक, कहे जाने वाले।
अनुवाद
ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं |