HI/BG 14.18: Difference between revisions

(Bhagavad-gita Compile Form edit)
 
No edit summary
 
Line 6: Line 6:
==== श्लोक 18 ====
==== श्लोक 18 ====


<div class="verse">
<div class="devanagari">
:''j''
:ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
 
:जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥१८॥
</div>
</div>



Latest revision as of 16:26, 11 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 18

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥१८॥

शब्दार्थ

ऊध्र्वम्—ऊपर; गच्छन्ति—जाते हैं; सत्त्व-स्था:—जो सतोगुण में स्थित हैं; मध्ये—मध्य में; तिष्ठन्ति—निवास करते हैं; राजसा:—रजोगुणी; जघन्य—गॢहत; गुण—गुण; वृत्ति-स्था:—जिनकी वृत्तियाँ या व्यवसाय; अध:—नीचे, निम्न; गच्छन्ति—जाते हैं; तामसा:—तमोगुणी लोग।

अनुवाद

सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं,रजोगुणी इसी पृथ्वीलोक में रह जाते हैं, और जो अत्यन्त गर्हित तमोगुण में स्थित हैं, वे नीचे नरक लोकों को जाते हैं ।‌

तात्पर्य

इस श्लोक में तीनों गुणों के कर्मों के फल को स्पष्ट रूप से बताया गया है । ऊपर के लोकों या स्वर्गलोकों में, प्रत्येक व्यक्ति अत्यन्त उन्नत होता है । जीवों में जिस मात्रा में सतोगुण का विकास होता है, उसी के अनुसार उसे विभिन्न स्वर्ग-लोकों में भेजा जाता है । सर्वोच्च-लोक सत्य-लोक या ब्रह्मलोक है,जहाँ इस ब्रह्माण्ड के प्रधान व्यक्ति, ब्रह्माजी निवास करते हैं । हम पहले ही देख चुके हैं कि ब्रह्मलोक में जिस प्रकार जीवन की आश्चर्यजनक परिस्थिति है, उसका अनुमान करना कठिन है । तो भी सतोगुण नामक जीवन की सर्वोच्च अवस्था हमें वहाँ तक पहुँचा सकती है ।

रजोगुण मिश्रित होता है । यह सतो तथा तमोगुण के मध्य में होता है । मनुष्य सदैव शुद्ध नहीं होता,लेकिन यदि वह पूर्णतया रजोगुणी हो, तो वह इस पृथ्वी पर केवल राजा या धनि व्यक्ति के रूप में रहता है । लेकिन गुणों का मिश्रण होते रहने से वह नीचे भी जा सकता है । इस पृथ्वी पर रजो या तमोगुणी लोग बलपूर्वक किसी मशीन के द्वारा उच्चतर-लोकों में नहीं पहुँच सकते । रजोगुण में इसकी सम्भावना है कि अगले जीवन में कोई प्रमत्त हो जाये ।

यहाँ पर निम्नतम गुण, तमोगुण, को अत्यन्त गर्हित (जघन्य) कहा गया है । अज्ञानता (तमोगुण) विकसित करने का परिणाम अत्यन्त भयावह होता है । यह प्रकृति का निम्नतम गुण है । मनुष्य-योनि से नीचे पक्षियों, पशुओं, सरीसृपों, वृक्षों आदि की अस्सी लाख योनियाँ हैं, और तमोगुण के विकास के अनुसार ही लोगों को ये अधम योनियाँ प्राप्त होती रहती हैं । यहाँ पर तामसाः शब्द अत्यन्त सार्थक है । यह उनका सूचक है, जो उच्चतर गुणों तक ऊपर न उठ कर निरन्तर तमोगुण में ही बने रहते हैं । उनका भविष्य अत्यन्त अंधकारमय होता है ।

तमोगुणी तथा रजोगुणी लोगों के लिए सतोगुणी बनने का सुअवसर है और यह कृष्णभावनामृत विधि से मिल सकता है । लेकिन जो इस सुअवसर का लाभ नहीं उठाता, वह निम्नतर गुणों में बना रहेगा ।