HI/BG 18.65: Difference between revisions
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Latest revision as of 09:45, 18 August 2020
श्लोक 65
- मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
- मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥६५॥
शब्दार्थ
मत्-मना:—मेरे विषय में सोचते हुए; भव—होओ; मत्-भक्त:—मेरा भक्त; मत्याजी—मेरा पूजक; माम्—मुझको; नमस्कुरु—नमस्कार करो; माम्—मेरे पास; एव—ही; एष्यसि—आओगे; सत्यम्—सच-सच; ते—तुमसे; प्रतिजाने—वायदा या प्रतिज्ञा करता हूँ; प्रिय:—प्रिय; असि—हो; मे—मुझको।
अनुवाद
सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो |
तात्पर्य
ज्ञान का गुह्यतम अंश है कि मनुष्य कृष्ण का शुद्ध भक्त बने, सदैव उन्हीं का चिन्तन करे और उन्हीं के लिए कर्म करे | व्यावसायिक ध्यानी बनना कठिन नहीं | जीवन को इस प्रकार ढालना चाहिए कि कृष्ण का चिन्तन करने का सदा अवसर प्राप्त हो | मनुष्य इस प्रकार कर्म करे कि उसके सारे नित्य कर्म कृष्ण के लिए हों | वह अपने जीवन को इस प्रकार व्यवस्थित करे कि चौबीसों घण्टे कृष्ण का ही चिन्तन करता रहे और भगवान् की प्रतिज्ञा है कि जो इस प्रकार कृष्णभावनामाय होगा, वह निश्चित रूप से कृष्णधाम को जाएगा जहाँ वह साक्षात् कृष्ण के सान्निध्य में रहेगा | यह गुह्यतम ज्ञान अर्जुन को इसीलिए बताया गया, क्योंकि वह कृष्ण का प्रिय मित्र (सखा) है | जो कोई भी अर्जुन के पथ का अनुसरण करता है, वह कृष्ण का प्रिय सखा बनकर अर्जुन जैसी ही सिद्धि प्राप्त कर सकता है | . ये शब्द इस बात पर बल देते हैं कि मनुष्य को अपना मन उस कृष्ण पर एकाग्र करना चाहिए जो दोनों हाथों में वंशीधारण किये, सुन्दर मुखवाले तथा अपने बालों में मोर पंख धारण किये हुए साँवले बालक के रूप में हैं | कृष्ण का वर्णन ब्रह्मसंहिता तथा अन्य ग्रथों में पाया जाता है | मनुष्य को परम ईश्र्वर के आदि रूप कृष्ण पर अपने मन को एकाग्र करना चाहिए | उसे अपने मन को भगवान् के अन्य रूपों की ओर नहीं मोड़ना चाहिए | भगवान् के नाना रूप हैं, यथा विष्णु, नारायण,राम, वराह आदि | किन्तु भक्त को चाहिए कि अपने मन को उस एक रूप पर केन्द्रित करे जो अर्जुन के समक्ष था | कृष्ण के रूप पर मन की यह एकाग्रता ज्ञान का गुह्यतम अंश है जिसका प्रकटीकरण अर्जुन के लिए किया गया, क्योंकि वह कृष्ण का अत्यन्त प्रिय सखा है |