HI/BG 18.69: Difference between revisions
(Bhagavad-gita Compile Form edit) |
No edit summary |
||
Line 6: | Line 6: | ||
==== श्लोक 69 ==== | ==== श्लोक 69 ==== | ||
<div class=" | <div class="devanagari"> | ||
: | :न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः । | ||
:भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ॥६९॥ | |||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 09:50, 18 August 2020
श्लोक 69
- न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः ।
- भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ॥६९॥
शब्दार्थ
न—कभी नहीं; च—तथा; तस्मात्—उसकी अपेक्षा; मनुष्येषु—मनुष्यों में; कश्चित्—कोई; मे—मुझको; प्रिय-कृत्-तम:—अत्यन्त प्रिय; भविता—होगा; न—न तो; च—तथा; मे—मुझको; तस्मात्—उसकी अपेक्षा, उससे; अन्य:—कोई दूसरा; प्रिय-तर:—अधिक प्रिय; भुवि—इस संसार में।
अनुवाद
इस संसार में उसकी अपेक्षा कोई अन्य सेवक न तो मुझे अधिक प्रिय है और न कभी होगा |