HI/BG 18.70: Difference between revisions
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Latest revision as of 09:51, 18 August 2020
श्लोक 70
- अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः ।
- ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः ॥७०॥
शब्दार्थ
अध्येष्यते—अध्ययन या पाठ करेगा; च—भी; य:—जो; इमम्—इस; धम्र्यम्—पवित्र; संवादम्—वार्तालाप या संवाद को; आवयो:—हम दोनों के; ज्ञान—ज्ञान रूपी; यज्ञेन—यज्ञ से; तेन—उसके द्वारा; अहम्—मैं; इष्ट:—पूजित; स्याम्—होऊँगा; इति—इस प्रकार; मे—मेरा; मति:—मत।
अनुवाद
और मैं घोषित करता हूँ कि जो हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करता है, वह अपनी बुद्धि से मेरी पूजा करता है |