HI/720221 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद विशाखापट्नम में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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:मांहिपार्थव्यपाश्रित्ययेSपिस्यु: पापयोनयः
मांहिपार्थव्यपाश्रित्ययेSपिस्यु: पापयोनयः |
:स्त्रियोवैश्यास्तथा शुद्रास्तेSपियान्तिपरांगतिम्  
स्त्रियोवैश्यास्तथा शुद्रास्तेSपियान्तिपरांगतिम् ||भ.ग.९.३२ ||
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तथ्य यह है की उसे कृष्ण-चेतना को स्वीकार करना है,फिर इसकी परवाह नहीं है की उसका जन्म कहा हुआ है। वह पारलौकिक जीवन की उच्चतम स्थिति में उन्नत हो सकता है।"|Vanisource:720221 - Lecture at Andhra College - Visakhapatnam|७२०२२१  - प्रवचन - आंध्रा कॉलेज - विशाखापट्नम}}
तथ्य यह है की उसे कृष्ण-चेतना को स्वीकार करना है ,फिर इसकी परवाह नहीं है की उसका जन्म कहा हुआ है। वह पारलौकिक जीवन की उच्चतम स्थिति में उन्नत हो सकता है। "|Vanisource:720221 - Lecture at Andhra College - Visakhapatnam|७२०२२१  - प्रवचन - आंध्रा कॉलेज - विशाखापट्नम}}

Latest revision as of 17:45, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण भगवद गीता में कहते है;
मांहिपार्थव्यपाश्रित्ययेSपिस्यु: पापयोनयः
स्त्रियोवैश्यास्तथा शुद्रास्तेSपियान्तिपरांगतिम्
(भ.ग.९.३२)

तथ्य यह है की उसे कृष्ण-चेतना को स्वीकार करना है,फिर इसकी परवाह नहीं है की उसका जन्म कहा हुआ है। वह पारलौकिक जीवन की उच्चतम स्थिति में उन्नत हो सकता है।"

७२०२२१ - प्रवचन - आंध्रा कॉलेज - विशाखापट्नम