HI/720629 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैंन डीयेगो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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Latest revision as of 17:46, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"श्री भगवान उवाचा। भगवान, देवता के सर्वोच्च व्यक्तित्व, कृष्ण, वह अवतरित होते हैं, अवतारा। संस्कृत शब्द अवतारा, अवतारा का अर्थ है, जो आरोहण से अवरोहण करता है; अवरोहण, अवरोहण। वह क्यों आता है? परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम (भ.गी. ४.८)। मानव के दो वर्ग हैं-एक है साधु और दूसरा है दुष्कर्मी। साधु का अर्थ है भगवान के भक्त और दुराचारी का अर्थ है हमेशा पापी कार्य करना। बस इतना। तो इस भौतिक संसार में आप कहीं भी जाएँ दो वर्ग के मानव हैं। एक को देवता या भक्त कहा जाता है, और दूसरे को नास्तिक या दानव कहा जाता है। इसलिए कृष्ण अवतरित होते हैं... दोनों बद्ध हैं, एक दानव हो गया है और एक हो गया है... बेशक, भक्त उच्च अवस्था में है, वह बद्ध नहीं है; वह मुक्त है, इस जीवन में मुक्त है। तो कृष्ण अवतरित होते हैं, उनके दो लक्ष्य हैं: भक्तों को पुनरुद्धार या उन्हें बचाने के लिए और दुष्टों का नाश करने के लिए।"
720629 - प्रवचन भ.गी. ०७. ०१ - सैंन डीयेगो