HI/Prabhupada 0762 - बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें । आपका यह जीवन सुरक्षित् है, आपका अगला जीवन सुरक्षित् है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: तो हमारा यह श्री कृष्ण भावनामृत आंदोलन मनुष्य को शिक्षा प्रदान करने के लिए है। आप विश्वास करें या न करें,उससे कोई फर्क नहीं पडता । भगवान हैं। वे मालिक हैं । लेकिन वे स्वयं आ रहे हैं और कह रहे हैं, भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् सुहृदं सर्व भूतानां ([[Vanisource:BG 5.29|गीता 5.29]]) "मैं ही परमेश्वर हूँ, परम भोक्ता हूँ, और समस्त जीवों का हितैषी हूँ।" यदी आप भौतिक जीवन की इस दयनीय हालत से विमुक्त होना चाहते हैं, तो मैं तुम्हारा सबसे अच्छा मित्र हूँ। "सुहृदं सर्व भूतानाम्" श्री कृष्ण। क्योंकि वे पिता हैं। अहं बीज प्रदः ([[Vanisource:BG 14.4|गीता 14.4]]) । पिता से बेहतर दोस्त कौन हो सकता है ? हाँ ? पिता हमेशा देखना चाहता है "मेरा बेटा खुश है।" यह स्वाभाविक है। "पिताजी, मुझ पर दया कीजिये ।" ऐसे पिता से भीख माँगने की आवश्यकता नहीं होती । नहीं । पिता तो पहले से ही दयालु होते हैं । यदि आप पिता के खिलाफ विद्रोह करते हैं, तो आपको संकटों का सामना करना पड़ेगा । इस तरह, भगवान हमारे पिता है, इसीलिए स्वाभाविक रूप से, हमारे दोस्त है । और वे कहते हैं कि सुहृदं सर्व भूतानां, अहं बीज प्रदः पिता ([[Vanisource:BG 14.4|गीता 14.4]]): " मैं बीज प्रदाता हूँ ।" सिर्फ मनुष्य के लिये ही नहीं मगर सभी प्रजातियों के लिए । फिर, अपने कर्म के अनुसार, ऊन्हें अलग अलग शरीर मिला हुआ है। उसी तरह जैसे हम सब यहाँ इस सभा में अलग अलग कपड़े पहने हुए हैं। तो अब हम सब मानव जाति हैं; पोशाक अलग हो सकता है। वह एक और बात है। इस तरह, जीव भगवान का अंश है, लेकिन कोई मनुष्य बन गया है, कोई बिल्ली बन गया है, तो कोई पेड़ बन गया है । कुछ कीड़े, देवता के रूप में कुछ, ब्रह्मा के रूप में कुछ, चींटी-किस्मों के रूप में कुछ, वे उस तरह बनना चाहते थे, और भगवान ने उसे मौका दे दिया है, "ठीक है। आप इस तरह बनकर जीवन भोगना चाहते हो ? ठीक है, तो आप इस तरह बन जाओ।" इस प्रकार व्यवस्था है, भगवान हैं, और वे सब के पिता हैं। वे सब के मित्र हैं। वे हमेशा तैयार हैं। इस बात का प्रचार करने के लिए वे स्वयं आते हैं । वे बहुत दयालु हैं। सुनते ही...
प्रभुपाद: तो हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मनुष्य को शिक्षा प्रदान करने के लिए है की आप विश्वास करें या न करें, उससे कोई फर्क नहीं पडता । भगवान हैं। वे मालिक हैं । लेकिन वे स्वयं आ रहे हैं और कह रहे हैं, भोक्तारम यज्ञतपसाम सर्वलोक महेश्वरम सुहृदम सर्व भूतानाम ([[HI/BG 5.29|भ.गी. ५.२९]]): "मैं परमेश्वर हूँ, परम भोक्ता हूँ, और समस्त जीवों का हितैषी हूँ । यदी आप भौतिक जीवन की इस दयनीय हालत से मुक्त होना चाहते हैं, तो मैं तुम्हारा सबसे अच्छा मित्र हूँ ।" सुहृदम सर्व भूतानाम । कृष्ण । क्योंकि वे पिता हैं । अहम बीज प्रदः ([[HI/BG 14.4|भ.गी. १४.]]) । पिता से बेहतर दोस्त कौन हो सकता है ? हाँ ? पिता हमेशा देखना चाहता है "मेरा बेटा खुश है ।" यह स्वाभाविक है ।  


:तुरंत। निष्म्य म्रियमाण्स्य
"पिताजी, मुझ पर दया कीजिये ।" ऐसे पिता से भीख माँगने की आवश्यकता नहीं होती । नहीं । पिता तो पहले से ही दयालु होते हैं । यदि आप पिता के खिलाफ विद्रोह करते हैं, तो आपको संकटों का सामना करना पड़ेगा । इस तरह, भगवान हमारे पिता है, इसीलिए स्वाभाविक रूप से, हमारे दोस्त है । और वे कहते हैं कि सुहृदम सर्व भूतानाम, अहम बीज प्रदः पिता ([[HI/BG 14.4|भ.गी. १४.]]): "मैं बीज प्रदाता हूँ..." सिर्फ मनुष्य के लिए ही नहीं पर सभी प्रजातियों के लिए । फिर, अपने कर्म के अनुसार, ऊन्हें अलग अलग शरीर मिला हुआ है । उसी तरह जैसे हम सब यहाँ इस सभा में अलग अलग कपड़े पहने हुए हैं ।
:मुखतो हरिकीर्तनम्
:भर्तुर्नाम नाम महाराजा
:पार्षदाः सहसापतन्
:([[Vanisource:SB 6.1.30|भागवत् 6.1.30]])


भगवान ने इतने सारे दूत भेजे हैं। "जरा देखो के कोई एक मेरे पास आने के लिए इच्छुक है ।" जरा देखो। तो जैसे ही वे दूत... जो की सर्वत्र भ्रमण कर रहे हैं... तो... "यहाँ पर एक व्यक्ति है, और वह जप रहा है... 'नारायण'। चलो उसे ले चलो। " जरा देखो। "यहाँ, वह व्यक्ति जप रहा है 'नारायण'हाँ। " भर्तुर नाम महाराजा निषम्य । "ओह, यह अद्भुत है। वह 'नारायण' जप रहा है। " इसके तत्काल बाद। यमदूत वहाँ थे - "कौन उसे परेशान कर रहा है ? बंद करो !"  
तो अभी हम सब मानव जाति हैं; पोशाक अलग हो सकता है । वह एक और बात है । इस तरह, जीव भगवान का अंश है, लेकिन कोई मनुष्य बन गया है, कोई बिल्ली बन गया है, तो कोई पेड़ बन गया है । कुछ कीड़े, कुछ देवता के रूप में, कुछ ब्रह्मा के रूप में, चींटी -किस्मों के रूप में कुछ | वे उस तरह बनना चाहते थे, और भगवान ने उसे मौका दे दिया है, "ठीक है । आप इस तरह बनकर जीवन भोगना चाहते हो ? ठीक है, तो आप इस तरह बन जाओ ।" इस प्रकार व्यवस्था है, भगवान हैं, और वे सब के पिता हैं । वे सब के मित्र हैं । वे हमेशा तैयार हैं । इस बात का प्रचार करने के लिए वे स्वयं आते हैं । वे बहुत दयालु हैं । केवल सुनो, तुरंत।


तो जप का यह मौका ले लो। हरेर् नाम हरेर् नाम हरेर् नामैव केवलम् ([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत् आदि 17.21]])। आप हमेशा सुरक्षित रहेंगे । यमदूत, छू भी नहीं सकेंगे । यह बहुत ही प्रभावशाली है। तो इस अवसर का लाभ उठाइये, हरे कृष्ण जपिये । मुझे बहुत खुशी है कि आप (जप) कर रहे हैं, लेकिन बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें । आपका यह जीवन सुरक्षित् है, आपका अगला जीवन सुरक्षित् है, सब कुछ ठीक रहेगा।
:निशम्य म्रियमाण्स्य
:मुखतो हरिकीर्तनम
:भर्तुर नाम महाराज
:पार्षदाः सहसापतन
:([[Vanisource:SB 6.1.30|श्रीमद भागवतम ६.१.३०]])  


बहुत बहुत धन्यवाद।
भगवान ने इतने सारे दूत भेजे हैं । "जरा देखो के कोई एक मेरे पास आने के लिए इच्छुक है ।" जरा देखो । तो जैसे ही वे दूत... जो की सर्वत्र भ्रमण कर रहे हैं - तो "यहाँ पर एक व्यक्ति है, और वह जप कर रहा है... 'नारायण' । चलो | उसे ले चलो ।" जरा देखो । "यहाँ, वह व्यक्ति जप कर रहा है 'नारायण' । हाँ ।" भर्तुर नाम महाराज निशम्य । "ओह, यह अद्भुत है । वह 'नारायण' जप कर रहा है ।" तुरंत । यमदूत वहाँ थे - "आप कौन हो जो उसे परेशान कर रहे हो ? बंद करो !"


भक्त: जय।
तो जप का यह मौका ले लो । हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम ([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत आदि १७.२१]]) । आप हमेशा सुरक्षित रहेंगे । यमदूत, यमराजा के दूत, छू भी नहीं सकेंगे । यह बहुत ही प्रभावशाली है । तो इस अवसर का लाभ उठाइये, हरे कृष्ण जपिये । मुझे बहुत खुशी है कि आप (जप) कर रहे हैं, लेकिन बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें - आपका यह जीवन सुरक्षित है, आपका अगला जीवन सुरक्षित है, सब कुछ ठीक रहेगा ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय ।
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Latest revision as of 19:15, 17 September 2020



Lecture on SB 6.1.30 -- Honolulu, May 29, 1976

प्रभुपाद: तो हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मनुष्य को शिक्षा प्रदान करने के लिए है की आप विश्वास करें या न करें, उससे कोई फर्क नहीं पडता । भगवान हैं। वे मालिक हैं । लेकिन वे स्वयं आ रहे हैं और कह रहे हैं, भोक्तारम यज्ञतपसाम सर्वलोक महेश्वरम । सुहृदम सर्व भूतानाम (भ.गी. ५.२९): "मैं परमेश्वर हूँ, परम भोक्ता हूँ, और समस्त जीवों का हितैषी हूँ । यदी आप भौतिक जीवन की इस दयनीय हालत से मुक्त होना चाहते हैं, तो मैं तुम्हारा सबसे अच्छा मित्र हूँ ।" सुहृदम सर्व भूतानाम । कृष्ण । क्योंकि वे पिता हैं । अहम बीज प्रदः (भ.गी. १४.४) । पिता से बेहतर दोस्त कौन हो सकता है ? हाँ ? पिता हमेशा देखना चाहता है "मेरा बेटा खुश है ।" यह स्वाभाविक है ।

"पिताजी, मुझ पर दया कीजिये ।" ऐसे पिता से भीख माँगने की आवश्यकता नहीं होती । नहीं । पिता तो पहले से ही दयालु होते हैं । यदि आप पिता के खिलाफ विद्रोह करते हैं, तो आपको संकटों का सामना करना पड़ेगा । इस तरह, भगवान हमारे पिता है, इसीलिए स्वाभाविक रूप से, हमारे दोस्त है । और वे कहते हैं कि सुहृदम सर्व भूतानाम, अहम बीज प्रदः पिता (भ.गी. १४.४): "मैं बीज प्रदाता हूँ..." सिर्फ मनुष्य के लिए ही नहीं पर सभी प्रजातियों के लिए । फिर, अपने कर्म के अनुसार, ऊन्हें अलग अलग शरीर मिला हुआ है । उसी तरह जैसे हम सब यहाँ इस सभा में अलग अलग कपड़े पहने हुए हैं ।

तो अभी हम सब मानव जाति हैं; पोशाक अलग हो सकता है । वह एक और बात है । इस तरह, जीव भगवान का अंश है, लेकिन कोई मनुष्य बन गया है, कोई बिल्ली बन गया है, तो कोई पेड़ बन गया है । कुछ कीड़े, कुछ देवता के रूप में, कुछ ब्रह्मा के रूप में, चींटी -किस्मों के रूप में कुछ | वे उस तरह बनना चाहते थे, और भगवान ने उसे मौका दे दिया है, "ठीक है । आप इस तरह बनकर जीवन भोगना चाहते हो ? ठीक है, तो आप इस तरह बन जाओ ।" इस प्रकार व्यवस्था है, भगवान हैं, और वे सब के पिता हैं । वे सब के मित्र हैं । वे हमेशा तैयार हैं । इस बात का प्रचार करने के लिए वे स्वयं आते हैं । वे बहुत दयालु हैं । केवल सुनो, तुरंत।

निशम्य म्रियमाण्स्य
मुखतो हरिकीर्तनम
भर्तुर नाम महाराज
पार्षदाः सहसापतन
(श्रीमद भागवतम ६.१.३०)

भगवान ने इतने सारे दूत भेजे हैं । "जरा देखो के कोई एक मेरे पास आने के लिए इच्छुक है ।" जरा देखो । तो जैसे ही वे दूत... जो की सर्वत्र भ्रमण कर रहे हैं - तो "यहाँ पर एक व्यक्ति है, और वह जप कर रहा है... 'नारायण' । चलो | उसे ले चलो ।" जरा देखो । "यहाँ, वह व्यक्ति जप कर रहा है 'नारायण' । हाँ ।" भर्तुर नाम महाराज निशम्य । "ओह, यह अद्भुत है । वह 'नारायण' जप कर रहा है ।" तुरंत । यमदूत वहाँ थे - "आप कौन हो जो उसे परेशान कर रहे हो ? बंद करो !"

तो जप का यह मौका ले लो । हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम (चैतन्य चरितामृत आदि १७.२१) । आप हमेशा सुरक्षित रहेंगे । यमदूत, यमराजा के दूत, छू भी नहीं सकेंगे । यह बहुत ही प्रभावशाली है । तो इस अवसर का लाभ उठाइये, हरे कृष्ण जपिये । मुझे बहुत खुशी है कि आप (जप) कर रहे हैं, लेकिन बहुत सख्त रहें, ईमानदारी से जपें - आपका यह जीवन सुरक्षित है, आपका अगला जीवन सुरक्षित है, सब कुछ ठीक रहेगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय ।