HI/750706 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७५]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७५]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - शिकागो]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - शिकागो]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/750706SB-CHICAGO_ND_01.mp3</mp3player>|"आध्यात्मिक दुनिया में शरीर को बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। शरीर आध्यात्मिक है। जैसा कि हम इस भौतिक दुनिया में प्राप्त कर चुके हैं यह शरीर, इस शरीर को बनाए रखने के लिए मुझे खाने की आवश्यकता है, मुझे सोने की आवश्यकता है, मुझे अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने की आवश्यकता है और मुझे अपनी रक्षा करने की आवश्यकता है - यह चार आवश्यकताऍं हैं। आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च। और आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है ये चार प्रकार की शारीरिक मांगें शून्य हैं, और नहीं हैं। यही आध्यात्मिक जीवन है। इसका मतलब है न खाना, न सोना, न सेक्स और न बचाव। वह गोस्वामी, वृंदावन में छह गोस्वामी, उन्होंने अभ्यास किया। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ। उन्होंने सोने, खाने, संभोग करने और प्रतिवाद पर विजय प्राप्त की। निद्रा का अर्थ है सोना, आहार का अर्थ है भोजन करना, विहार का अर्थ है संभोग करना। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ। विजय प्राप्ति। तो यह आध्यात्मिक जीवन की उन्नति है। जब हम इन चीजों पर विजय प्राप्त करते हैं, इसका मतलब है कि हम आध्यात्मिक मंच पर आ गए हैं।"|Vanisource:750706 - Lecture SB 06.01.22 - Chicago|७५०७०६ - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.२२ - शिकागो}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/750704 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|750704|HI/750708 सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|750708}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/750706SB-CHICAGO_ND_01.mp3</mp3player>|"आध्यात्मिक दुनिया में शरीर को बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। शरीर आध्यात्मिक है। जैसा कि हम इस भौतिक दुनिया में प्राप्त कर चुके हैं यह शरीर, इस शरीर को बनाए रखने के लिए मुझे खाने की आवश्यकता है, मुझे सोने की आवश्यकता है, मुझे अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने की आवश्यकता है और मुझे अपनी रक्षा करने की आवश्यकता है - यह चार आवश्यकताऍं हैं। आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च। और आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है ये चार प्रकार की शारीरिक मांगें शून्य हैं, और नहीं हैं। यही आध्यात्मिक जीवन है। इसका मतलब है न खाना, न सोना, न सेक्स और न बचाव। वह गोस्वामी, वृंदावन में छह गोस्वामी, उन्होंने अभ्यास किया। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ। उन्होंने सोने, खाने, संभोग करने और प्रतिवाद पर विजय प्राप्त की। निद्रा का अर्थ है सोना, आहार का अर्थ है भोजन करना, विहार का अर्थ है संभोग करना। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ। विजय प्राप्ति। तो यह आध्यात्मिक जीवन की उन्नति है। जब हम इन चीजों पर विजय प्राप्त करते हैं, इसका मतलब है कि हम आध्यात्मिक मंच पर आ गए हैं।"|Vanisource:750706 - Lecture SB 06.01.22 - Chicago|750706 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.२२ - शिकागो}}

Latest revision as of 23:13, 24 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक दुनिया में शरीर को बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। शरीर आध्यात्मिक है। जैसा कि हम इस भौतिक दुनिया में प्राप्त कर चुके हैं यह शरीर, इस शरीर को बनाए रखने के लिए मुझे खाने की आवश्यकता है, मुझे सोने की आवश्यकता है, मुझे अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने की आवश्यकता है और मुझे अपनी रक्षा करने की आवश्यकता है - यह चार आवश्यकताऍं हैं। आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च। और आध्यात्मिक शरीर का अर्थ है ये चार प्रकार की शारीरिक मांगें शून्य हैं, और नहीं हैं। यही आध्यात्मिक जीवन है। इसका मतलब है न खाना, न सोना, न सेक्स और न बचाव। वह गोस्वामी, वृंदावन में छह गोस्वामी, उन्होंने अभ्यास किया। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ। उन्होंने सोने, खाने, संभोग करने और प्रतिवाद पर विजय प्राप्त की। निद्रा का अर्थ है सोना, आहार का अर्थ है भोजन करना, विहार का अर्थ है संभोग करना। निद्राहार-विहारकादि-विजितौ। विजय प्राप्ति। तो यह आध्यात्मिक जीवन की उन्नति है। जब हम इन चीजों पर विजय प्राप्त करते हैं, इसका मतलब है कि हम आध्यात्मिक मंच पर आ गए हैं।"
750706 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.२२ - शिकागो