HI/Prabhupada 0399 - श्री नाम, गाये गौर मधुर स्वरे तात्पर्य: Difference between revisions

 
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'''<big>[[Vaniquotes:Sri Nama, CD 3 - Either you stay at your home as a householder, or you stay in the forest as the renounced order of life, it does not make difference, but you have to chant the maha-mantra, Hare Krsna|Original Vaniquotes page in English]]</big>'''
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'''[[Vanisource:Purport to Bhajahu Re Mana -- The Cooperation of Our Mind|Purport to Bhajahu Re Mana -- The Cooperation of Our Mind]]'''
'''[[Vanisource:Purport to Sri Nama, Gay Gaura Madhur Sware -- Los Angeles, June 20, 1972|Purport to Sri Nama, Gay Gaura Madhur Sware -- Los Angeles, June 20, 1972]]'''
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गाये गौरनंद मघु स्वरे । यह भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा गाया गया एक गीत है । वे कहते हैं कि भगवान चैतन्य, गौर, गौरा का मतलब है भगवान चैतन्य, गौरसुन्दर, गोर रंग । गाये गौरनंद मघु स्वरे । मीठी आवाज में वे महा मंत्र गा रहे हैं, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे ।
गाये गौराचाँद मघु स्वरे । यह भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा रचित गीत है । वे कहते हैं कि भगवान चैतन्य, गौर, गौर का मतलब है भगवान चैतन्य, गौरसुन्दर, गोर वर्ण । गाये गौरचंद मघुर स्वरे । मीठी आवाज़ में वे महामंत्र गा रहे हैं, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । बहुत मधुर अावाज़ में वे गा रहे हैं, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनका अनुसरण महामंत्र गाकर करें । तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं... गृहे थाको, वने थाको, सदा हरि बोले ड़ाको । गृहे थाको का मतलब है कि या तो तुम एक गृहस्थ के रूप में अपने घर में रहो, या तुम जंगल में रहो सन्यासी के रूप में, कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन तुम्हें महामंत्र, हरे कृष्ण, का जप करना ही होगा ।  


बहुत प्यारी अावाज़ में वे गा रहे हैं, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनका अनुसरण करें महा मंत्र गाने में । तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, , गृहे थाको, वने थाको, सदा हरि बोले थाको । गृहे थाको का मतलब है कि या तो तुम एक गृहस्थ के रूप में अपने घर में रहो, या तुम जंगल में रहो सन्यासी के रूप में , कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन तुम महा मंत्र का जाप करना ही होगा, हरे कृष्ण । गृहे, वने थाको, सदा हरि बोले थाको । हमेशा इस महा मंत्र का जाप करो । सुखे दुक्खे भुलो नाको "संकट में या खुशी में जप करना मत भूलना ।" वदने हरि-नाम कोरो रे । जहॉ तक जप का ( सवाल है), कोई भी रोक टोक नहीं है, क्योंकि मैं किसी भी हालत में रहूँ, मैं लगातार इस महा मंत्र का जप कर सकता हूँ, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हर
गृहे वने थाको, सदा 'हरि' बोले ड़ाको । हमेशा इस महामंत्र का जप करो । सुखे दुःखे भूलो नाको, "संकट में या सुख में जप करना मत भूलना ।" वदने हरि-नाम कोरो रे । जहाँ तक जप का सवाल है, कोई भी रोक-टोक नहीं है, क्योंकि मैं किसी भी हालत में रहूँ, मैं लगातार इस महामंत्र का जप कर सकता हूँ, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, "कोई बात नहीं, तुम संकट या सुख में हो, तुम लगातार इस महामंत्र का जप करो ।"


तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, " कोई बात नहीं, कि तुम संकट या खुशी में हो, तुम लगातार इस महा मंत्र का जप करो ।" माया-जाले बद्ध होए अाछो मिछे काज लोये । तुम भ्रामक ऊर्जा के जाल में फँस गए हो । माया-जाले बद्ध होए, जैसे मछुआरे पकडता है, समुद्र से, सभी प्रकार के जीवों को अपने जाल में । इसी तरह हम भी भ्रामक ऊर्जा के जाल में हैं, और क्योंकि हमारी कोई स्वतंत्रता नहीं है, इसलिए हमारी सभी गतिविधियों बेकार हैं । स्वतंत्रता में कर्म का कुछ अर्थ है, लेकिन जब हम स्वतंत्र हैं ही नहीं, माया के चंगुल में, माया के जाल में, फिर हमारी तथाकथित आजादी का कोई मूल्य नहीं है । इसलिए, हम जो भी कर रहे हैं, यह बस हार है । हमारी संवैधानिक स्थिति को जाने बिना, यदि तुम्हे कुछ करने के लिए मजबूर किया जाता है, भ्रामक ऊर्जा के दबाव से, यह बस समय की बर्बादी है । इसलिए भक्ितविनोद ठाकुर कहते हैं, "अब आप मनुष्य जीवन में तुम्हें पूर्ण चेतना मिली है । तो सिर्फ हरे कृष्ण का जप करो, राधा माधव, ये सभी नाम । कोई नुकसान नहीं है, लेकिन महान लाभ है ।" जीवन हौयलो शेष, ना भजिले ऋषिकेश । अब धीरे - धीरे सब लोग मौत के कगार पर हैं, कोई नहीं कह सकता है कि "मैं रहूँ्गा, मैं अौर सौ साल के लिए जीवित रहूँगा ।" नहीं, हम किसी भी क्षण मर सकते हैं । इसलिए, वे सलाह देते हैं जीवन हौयलो शेष : हमारा जीवन का किसी भी क्षण अंत हो सकता है, और हम ऋषिकेष कृष्ण की सेवा नहीं कर सके । भक्तिविनोदोपदेशे । इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, एकबार नाम-रसे मातो रे : "कृपया मुग्ध हो जाअो, नाम रसे, दिव्य नाम के जप के मधुर में । इस समुद्र के भीतर तुम गोता लगाअो । यही मेरा अनुरोध है ।"
माया-जाले बद्ध होये, अाछो मिछे काज लोये । तुम भ्रामक शक्ति के जाल में फँस गए हो । माया-जाले बद्ध होये, जैसे मछुआरा पकड़ता है, समुद्र से, सभी प्रकार के जीवों को अपने जाल में । इसी तरह हम भी भ्रामक शक्ति के जाल में हैं, और क्योंकि हमारी कोई स्वतंत्रता नहीं है, इसलिए हमारी सभी गतिविधियाँ बेकार हैं । स्वतंत्रता में कर्म का कुछ अर्थ है, लेकिन जब हम स्वतंत्र ही नहीं हैं, माया के चंगुल में, माया के जाल में, फिर हमारी तथाकथित आज़ादी का कोई मूल्य नहीं है । इसलिए, हम जो भी कर रहे हैं, यह बस हार है । हमारी वास्तविक स्थिति को जाने बिना, यदि तुम्हें कुछ करने के लिए मजबूर किये जाते हो, भ्रामक शक्ति के दबाव से, यह केवल समय की बर्बादी है ।  
 
इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, "अब आपको मनुष्य जीवन में पूर्ण चेतना मिली है । तो सिर्फ हरे कृष्ण, राधा माधव, ये सभी नाम का जप करो । कोई नुकसान नहीं है, लेकिन महान लाभ है ।" जीवन हौयलो शेष, ना भजिले हृषिकेश । अब धीरे-धीरे सब लोग मृत्यु की कगार पर हैं, कोई नहीं कह सकता है कि, "मैं रहूँगा, मैं अौर सौ साल के लिए जीवित रहूँगा ।" नहीं, हम किसी भी क्षण मर सकते हैं । इसलिए, वे सलाह देते हैं जीवन हौयलो शेष: हमारे जीवन का किसी भी क्षण अंत हो सकता है, और हम हृषिकेश कृष्ण की सेवा नहीं कर सके । भक्तिविनोदोपदेश । इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, एकबार नाम-रसे मातो रे: "कृपया मुग्ध हो जाअो, नाम रसे, दिव्य नाम के जप के रस में । इस समुद्र के भीतर तुम गोता लगाअो । यही मेरा अनुरोध है ।"  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Purport to Sri Nama, Gay Gaura Madhur Sware -- Los Angeles, June 20, 1972

गाये गौराचाँद मघु स्वरे । यह भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा रचित गीत है । वे कहते हैं कि भगवान चैतन्य, गौर, गौर का मतलब है भगवान चैतन्य, गौरसुन्दर, गोर वर्ण । गाये गौरचंद मघुर स्वरे । मीठी आवाज़ में वे महामंत्र गा रहे हैं, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । बहुत मधुर अावाज़ में वे गा रहे हैं, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनका अनुसरण महामंत्र गाकर करें । तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं... गृहे थाको, वने थाको, सदा हरि बोले ड़ाको । गृहे थाको का मतलब है कि या तो तुम एक गृहस्थ के रूप में अपने घर में रहो, या तुम जंगल में रहो सन्यासी के रूप में, कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन तुम्हें महामंत्र, हरे कृष्ण, का जप करना ही होगा ।

गृहे वने थाको, सदा 'हरि' बोले ड़ाको । हमेशा इस महामंत्र का जप करो । सुखे दुःखे भूलो नाको, "संकट में या सुख में जप करना मत भूलना ।" वदने हरि-नाम कोरो रे । जहाँ तक जप का सवाल है, कोई भी रोक-टोक नहीं है, क्योंकि मैं किसी भी हालत में रहूँ, मैं लगातार इस महामंत्र का जप कर सकता हूँ, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । तो भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, "कोई बात नहीं, तुम संकट या सुख में हो, तुम लगातार इस महामंत्र का जप करो ।"

माया-जाले बद्ध होये, अाछो मिछे काज लोये । तुम भ्रामक शक्ति के जाल में फँस गए हो । माया-जाले बद्ध होये, जैसे मछुआरा पकड़ता है, समुद्र से, सभी प्रकार के जीवों को अपने जाल में । इसी तरह हम भी भ्रामक शक्ति के जाल में हैं, और क्योंकि हमारी कोई स्वतंत्रता नहीं है, इसलिए हमारी सभी गतिविधियाँ बेकार हैं । स्वतंत्रता में कर्म का कुछ अर्थ है, लेकिन जब हम स्वतंत्र ही नहीं हैं, माया के चंगुल में, माया के जाल में, फिर हमारी तथाकथित आज़ादी का कोई मूल्य नहीं है । इसलिए, हम जो भी कर रहे हैं, यह बस हार है । हमारी वास्तविक स्थिति को जाने बिना, यदि तुम्हें कुछ करने के लिए मजबूर किये जाते हो, भ्रामक शक्ति के दबाव से, यह केवल समय की बर्बादी है ।

इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, "अब आपको मनुष्य जीवन में पूर्ण चेतना मिली है । तो सिर्फ हरे कृष्ण, राधा माधव, ये सभी नाम का जप करो । कोई नुकसान नहीं है, लेकिन महान लाभ है ।" जीवन हौयलो शेष, ना भजिले हृषिकेश । अब धीरे-धीरे सब लोग मृत्यु की कगार पर हैं, कोई नहीं कह सकता है कि, "मैं रहूँगा, मैं अौर सौ साल के लिए जीवित रहूँगा ।" नहीं, हम किसी भी क्षण मर सकते हैं । इसलिए, वे सलाह देते हैं जीवन हौयलो शेष: हमारे जीवन का किसी भी क्षण अंत हो सकता है, और हम हृषिकेश कृष्ण की सेवा नहीं कर सके । भक्तिविनोदोपदेश । इसलिए भक्तिविनोद ठाकुर सलाह देते हैं, एकबार नाम-रसे मातो रे: "कृपया मुग्ध हो जाअो, नाम रसे, दिव्य नाम के जप के रस में । इस समुद्र के भीतर तुम गोता लगाअो । यही मेरा अनुरोध है ।"