HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0767 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1976 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in USA, Los Angeles]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, Los Angeles]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0766 - किसी भी स्थिति में, बस श्रीमद भागवत पढ़ कर, आप खुश रहेंगें|0766|HI/Prabhupada 0768 - मुक्ति अर्थात् पुनः भौतिक शरीर प्राप्त करने की जरूरत न होना । इसी को मुक्ति कहा जाता है|0768}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|nu2GSHr5BUo|ततः रूचि। तो फिर स्वाद। आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा। स्वाद बदल जाएगा<br />- Prabhupāda 0767}}
{{youtube_right|4pVcACqWncI|ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा<br />- Prabhupāda 0767}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>File:760605SB-LOS_ANGELES_clip1.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/760605SB-LOS_ANGELES_clip1.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
प्रभुपाद: आप एक क्षण में भगवद् प्रेम को पैदा नहीं कर सकते । यदि आप निष्कपट हो और भगवान आपसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तब आप कर सकते हो। वे आपको दे सकते हैं। वे आपको तुरंत दे सकते हैं। यह संभव है। लेकिन ऐसा कुछ दुर्लभ स्थितियों में ही हो सकता है। आमतौर पर, यह प्रक्रिया है: आदौ श्रद्धा तत: साधु-संगो। जैसे की अब आप इस मंदिर में आए हैं। आपके पास कुछ न कुछ आस्था है, हम सभी के पास है। उसे श्रद्धा कहते हैं, आदौ श्रद्धा। इस परिसर में कई लाखों लोग रहते हैं। वे क्यों नहीं आ रहे हैं? यही शुरुआत है। आपको कुछ विश्वास है, श्रद्धा है। तो आप आए हो। आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो । और यदि आप यहा आना जारी रखते हैं ... तो हम क्या कर रहे हैं? हम इन वैदिक ग्रंथों से शिक्षाएँ लेने के लिए संघ ले रहे हैं। इसे साधु-संघ कहा जाता है। दारु की दुकान में हम एक तरह का संघ करते हैं, हॉटेल में एक तरह का संघ करतेे हैं क्लबों में हम किसी और तरह का संघ करते हैं, इस प्रकार विभिन्न स्थान हैं। तो इस जगह पर भी एक प्रकार का संघ है। यह साधु-संघ कहा जाता है। भक्तों का संघ।तो आप आए हो। आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो ([[Vanisource:CC Madhya 23.14-15|चैतन्य चरित्रामृत मध्य 23.14-15]])। और अगर कोई परिपक्व है, तो वह भक्ति सेवा करना चाहता है, भजन क्रिया। और जैसे ही भजन-क्रिया की शुरूआत होगी, तब अनावश्यक बकवास बातें गायब हो जाएगीं। न कोई अवैध स्त्री संघ, न कोई नशा, और न ही शराब पीना, न कोई जुआ। सब बंद। अनर्थ-नीवृतीः स्यात, तब सभी गलत आदतें चली जाती हैं, फिर निस्था, दृढ़ विश्वास, थोड़ा भी न बहकना। ततो निस्था ततः रूचि। तो फिर स्वाद। फिर आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा। स्वाद बदल जाएगा। ततो निस्था ततः रुचिस्, तथाशक्तिस्, तो आकर्षण होगा। तब भाव। भाव का मतलब परमानंद : " ओह, श्री कृष्ण" फिर प्रेम है। विभिन्न चरण होते हैं। तो यह ... असली धर्म प्रेम होता है, कैसे भगवान से प्रेम करें। यही असली धर्म है।
प्रभुपाद: आप एक क्षण में भगवद प्रेम को विकसित नहीं कर सकते । यदि आप गंभीर हो और भगवान आपसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तब आप कर सकते हो । वे आपको दे सकते हैं । वे आपको तुरंत दे सकते हैं । यह संभव है । लेकिन ऐसा कुछ दुर्लभ स्थितियों में ही हो सकता है । आमतौर पर, यह प्रक्रिया है: आदौ श्रद्धा तत: साधु-संगो । जैसे की अब आप इस मंदिर में आए हैं । आपके पास कुछ न कुछ आस्था है, हम सभी के पास है । उसे श्रद्धा कहते हैं, आदौ श्रद्धा ।  


धर्म ... वह क्या है? यतो भक्तिर् ... सा वै पुंमसाम् परो धर्मो ([[Vanisource:SB 1.2.6|भागवताम् 1.2.6]])धर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं। लेकिन असली धर्म वह है जो हमें भगवान से प्रेम करना सीखाए। बस इतना ही। इससे अधिक कुछ नहीं। कोई कर्मकांड समारोह, कोई सूत्र, कुछ नहीं। अगर आपका ह्रदय हमेशा भगवान के लिए रो रहा है, तो वही सबसे श्रेष्ठ धर्म है। यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। इसलिए चैतन्य महाप्रभु का कहना है , शुन्यायितम् जगत सर्वम : "ओह, श्री कृष्ण के बिना, मुझे सारी दुनिया अर्थहीन लग रही है।" अर्थहीन, हाँ। तो हमे उस स्थिति पर आना है। बेशक, यह हम सभी के लिए संभव नहीं है, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिखाया है कि कैसे सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति बने हमेशा महसूस करना, "ओह, श्री कृष्ण के बिना, सब कुछ अर्थहीन है।" शुन्यायितम् जगत सर्वम गोविंदा विरहेन्। यही असली धर्म है, यही असली धर्म है। तो विष्णुदूत, इन यमदूतों का परीक्षण कर रहें हैं, धर्म का अर्थ क्या है, वह समझते हैं या नहीं। धर्म, हम खुद से नहीं बना सकते। धर्म न तो हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, ये धर्म, वो धर्म नहीं है। कुछ सांप्रदायिक समझ हो सकती है, लेकिन असली धर्म का मतलब है कि भगवान से प्रेम करना कैसे सीखा जाए ।  
इस परिसर में कई लाखों लोग रहते हैं । वे क्यों नहीं आ रहे हैं ? यही शुरुआत है । आपको कुछ विश्वास है, श्रद्धा है तो आप आए हो । आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो । और यदि आप यहा आना जारी रखते हैं... हम क्या कर रहे हैं ? हम इन वैदिक ग्रंथों से शिक्षाएँ लेने के लिए संग ले रहे हैं। इसे साधु-संग कहा जाता है । शराब की दुकान में हम एक तरह का संग करते हैं, हॉटेल में एक तरह का संग करतेे हैं, क्लबों में हम किसी और तरह का संग करते हैं, इस प्रकार के विभिन्न स्थान हैं तो इस जगह पर भी एक प्रकार का संग है । यह साधु-संग कहा जाता है । भक्तों का संग । तो आप आए हो ।  


बहुत बहुत धन्यवाद।
आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो ([[Vanisource:CC Madhya 23.14-15|चैतन्य चरितामृत मध्य २३.१४-१५]])। और अगर कोई परिपक्व है, तो वह भक्ति सेवा करना चाहता है, भजन क्रिया । और जैसे ही भजन-क्रिया की शुरूआत होगी, तब अनावश्यक बकवास बातें गायब हो जाएगीं । न कोई अवैध स्त्री संग, न कोई नशा, और न ही शराब पीना, न कोई जुआ । सब बंध । अनर्थ-निवृत्ति: स्यात, सभी गलत आदतें चली जाती हैं, फिर निस्था,  दृढ़ विश्वास, थोड़ा भी न बहकना। ततो निष्ठा ततः रूचि । फिर स्वाद । फिर आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल गया है । ततो निष्ठा ततः रुचिस, तथासक्तिस, फिर आकर्षण । फिर भाव । भाव का मतलब परमानंद: "ओह, कृष्ण ।" फिर प्रेम है । विभिन्न चरण होते हैं । तो यह... असली धर्म प्रेम होता है, कैसे भगवान से प्रेम करें । यही असली धर्म है ।


भक्त: जय प्रभुपाद।
धर्म... वह क्या है? यतो भक्तिर ... स वै पुंसाम परो धर्मो ([[Vanisource:SB 1.2.6|श्रीमद भागवतम १.२.६]]) । धर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं । लेकिन असली धर्म वह है जो हमें भगवान से प्रेम करना सीखाए । बस इतना ही । इससे अधिक कुछ नहीं । कोई कर्मकांड समारोह, कोई सूत्र, कुछ नहीं । अगर आपका हृदय हमेशा भगवान के लिए रो रहा है, तो वही  सबसे श्रेष्ठ धर्म है । यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु का कहना है, शुन्यायितम जगत सर्वम: "ओह, कृष्ण के बिना, मुझे सारी दुनिया शून्य लग रही है ।" शून्य, हाँ ।
 
तो हमे उस स्थिति पर आना है । बेशक, यह हम सभी के लिए संभव नहीं है, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिखाया है कि कैसे सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति बने । हमेशा महसूस करना, "ओह, कृष्ण के बिना, सब कुछ शून्य है।" शून्यायितम् जगत सर्वम गोविंद विरहेण । यही असली धर्म है, यही असली धर्म है । तो विष्णुदूत, इन यमदूतों का परीक्षण कर रहें हैं, धर्म का अर्थ क्या है, वह समझते हैं या नहीं । धर्म, हम खुद से नहीं बना सकते । धर्म न तो हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, ये धर्म, वो धर्म नहीं है । कुछ सांप्रदायिक समझ हो सकती है, लेकिन असली धर्म का मतलब है कि हमने भगवान से प्रेम करना कैसे सीखा है ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय प्रभुपाद ।
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 6.1.39 -- Los Angeles, June 5, 1976

प्रभुपाद: आप एक क्षण में भगवद प्रेम को विकसित नहीं कर सकते । यदि आप गंभीर हो और भगवान आपसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तब आप कर सकते हो । वे आपको दे सकते हैं । वे आपको तुरंत दे सकते हैं । यह संभव है । लेकिन ऐसा कुछ दुर्लभ स्थितियों में ही हो सकता है । आमतौर पर, यह प्रक्रिया है: आदौ श्रद्धा तत: साधु-संगो । जैसे की अब आप इस मंदिर में आए हैं । आपके पास कुछ न कुछ आस्था है, हम सभी के पास है । उसे श्रद्धा कहते हैं, आदौ श्रद्धा ।

इस परिसर में कई लाखों लोग रहते हैं । वे क्यों नहीं आ रहे हैं ? यही शुरुआत है । आपको कुछ विश्वास है, श्रद्धा है । तो आप आए हो । आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो । और यदि आप यहा आना जारी रखते हैं... हम क्या कर रहे हैं ? हम इन वैदिक ग्रंथों से शिक्षाएँ लेने के लिए संग ले रहे हैं। इसे साधु-संग कहा जाता है । शराब की दुकान में हम एक तरह का संग करते हैं, हॉटेल में एक तरह का संग करतेे हैं, क्लबों में हम किसी और तरह का संग करते हैं, इस प्रकार के विभिन्न स्थान हैं । तो इस जगह पर भी एक प्रकार का संग है । यह साधु-संग कहा जाता है । भक्तों का संग । तो आप आए हो ।

आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो (चैतन्य चरितामृत मध्य २३.१४-१५)। और अगर कोई परिपक्व है, तो वह भक्ति सेवा करना चाहता है, भजन क्रिया । और जैसे ही भजन-क्रिया की शुरूआत होगी, तब अनावश्यक बकवास बातें गायब हो जाएगीं । न कोई अवैध स्त्री संग, न कोई नशा, और न ही शराब पीना, न कोई जुआ । सब बंध । अनर्थ-निवृत्ति: स्यात, सभी गलत आदतें चली जाती हैं, फिर निस्था, दृढ़ विश्वास, थोड़ा भी न बहकना। ततो निष्ठा ततः रूचि । फिर स्वाद । फिर आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल गया है । ततो निष्ठा ततः रुचिस, तथासक्तिस, फिर आकर्षण । फिर भाव । भाव का मतलब परमानंद: "ओह, कृष्ण ।" फिर प्रेम है । विभिन्न चरण होते हैं । तो यह... असली धर्म प्रेम होता है, कैसे भगवान से प्रेम करें । यही असली धर्म है ।

धर्म... वह क्या है? यतो भक्तिर ... स वै पुंसाम परो धर्मो (श्रीमद भागवतम १.२.६) । धर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं । लेकिन असली धर्म वह है जो हमें भगवान से प्रेम करना सीखाए । बस इतना ही । इससे अधिक कुछ नहीं । कोई कर्मकांड समारोह, कोई सूत्र, कुछ नहीं । अगर आपका हृदय हमेशा भगवान के लिए रो रहा है, तो वही सबसे श्रेष्ठ धर्म है । यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु का कहना है, शुन्यायितम जगत सर्वम: "ओह, कृष्ण के बिना, मुझे सारी दुनिया शून्य लग रही है ।" शून्य, हाँ ।

तो हमे उस स्थिति पर आना है । बेशक, यह हम सभी के लिए संभव नहीं है, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिखाया है कि कैसे सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति बने । हमेशा महसूस करना, "ओह, कृष्ण के बिना, सब कुछ शून्य है।" शून्यायितम् जगत सर्वम गोविंद विरहेण । यही असली धर्म है, यही असली धर्म है । तो विष्णुदूत, इन यमदूतों का परीक्षण कर रहें हैं, धर्म का अर्थ क्या है, वह समझते हैं या नहीं । धर्म, हम खुद से नहीं बना सकते । धर्म न तो हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, ये धर्म, वो धर्म नहीं है । कुछ सांप्रदायिक समझ हो सकती है, लेकिन असली धर्म का मतलब है कि हमने भगवान से प्रेम करना कैसे सीखा है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद ।