HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा: Difference between revisions
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प्रभुपाद: आप एक क्षण में | प्रभुपाद: आप एक क्षण में भगवद प्रेम को विकसित नहीं कर सकते । यदि आप गंभीर हो और भगवान आपसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तब आप कर सकते हो । वे आपको दे सकते हैं । वे आपको तुरंत दे सकते हैं । यह संभव है । लेकिन ऐसा कुछ दुर्लभ स्थितियों में ही हो सकता है । आमतौर पर, यह प्रक्रिया है: आदौ श्रद्धा तत: साधु-संगो । जैसे की अब आप इस मंदिर में आए हैं । आपके पास कुछ न कुछ आस्था है, हम सभी के पास है । उसे श्रद्धा कहते हैं, आदौ श्रद्धा । | ||
इस परिसर में कई लाखों लोग रहते हैं । वे क्यों नहीं आ रहे हैं ? यही शुरुआत है । आपको कुछ विश्वास है, श्रद्धा है । तो आप आए हो । आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो । और यदि आप यहा आना जारी रखते हैं... हम क्या कर रहे हैं ? हम इन वैदिक ग्रंथों से शिक्षाएँ लेने के लिए संग ले रहे हैं। इसे साधु-संग कहा जाता है । शराब की दुकान में हम एक तरह का संग करते हैं, हॉटेल में एक तरह का संग करतेे हैं, क्लबों में हम किसी और तरह का संग करते हैं, इस प्रकार के विभिन्न स्थान हैं । तो इस जगह पर भी एक प्रकार का संग है । यह साधु-संग कहा जाता है । भक्तों का संग । तो आप आए हो । | |||
आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो ([[Vanisource:CC Madhya 23.14-15|चैतन्य चरितामृत मध्य २३.१४-१५]])। और अगर कोई परिपक्व है, तो वह भक्ति सेवा करना चाहता है, भजन क्रिया । और जैसे ही भजन-क्रिया की शुरूआत होगी, तब अनावश्यक बकवास बातें गायब हो जाएगीं । न कोई अवैध स्त्री संग, न कोई नशा, और न ही शराब पीना, न कोई जुआ । सब बंध । अनर्थ-निवृत्ति: स्यात, सभी गलत आदतें चली जाती हैं, फिर निस्था, दृढ़ विश्वास, थोड़ा भी न बहकना। ततो निष्ठा ततः रूचि । फिर स्वाद । फिर आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल गया है । ततो निष्ठा ततः रुचिस, तथासक्तिस, फिर आकर्षण । फिर भाव । भाव का मतलब परमानंद: "ओह, कृष्ण ।" फिर प्रेम है । विभिन्न चरण होते हैं । तो यह... असली धर्म प्रेम होता है, कैसे भगवान से प्रेम करें । यही असली धर्म है । | |||
भक्त: जय | धर्म... वह क्या है? यतो भक्तिर ... स वै पुंसाम परो धर्मो ([[Vanisource:SB 1.2.6|श्रीमद भागवतम १.२.६]]) । धर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं । लेकिन असली धर्म वह है जो हमें भगवान से प्रेम करना सीखाए । बस इतना ही । इससे अधिक कुछ नहीं । कोई कर्मकांड समारोह, कोई सूत्र, कुछ नहीं । अगर आपका हृदय हमेशा भगवान के लिए रो रहा है, तो वही सबसे श्रेष्ठ धर्म है । यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु का कहना है, शुन्यायितम जगत सर्वम: "ओह, कृष्ण के बिना, मुझे सारी दुनिया शून्य लग रही है ।" शून्य, हाँ । | ||
तो हमे उस स्थिति पर आना है । बेशक, यह हम सभी के लिए संभव नहीं है, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिखाया है कि कैसे सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति बने । हमेशा महसूस करना, "ओह, कृष्ण के बिना, सब कुछ शून्य है।" शून्यायितम् जगत सर्वम गोविंद विरहेण । यही असली धर्म है, यही असली धर्म है । तो विष्णुदूत, इन यमदूतों का परीक्षण कर रहें हैं, धर्म का अर्थ क्या है, वह समझते हैं या नहीं । धर्म, हम खुद से नहीं बना सकते । धर्म न तो हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, ये धर्म, वो धर्म नहीं है । कुछ सांप्रदायिक समझ हो सकती है, लेकिन असली धर्म का मतलब है कि हमने भगवान से प्रेम करना कैसे सीखा है । | |||
बहुत बहुत धन्यवाद । | |||
भक्त: जय प्रभुपाद । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on SB 6.1.39 -- Los Angeles, June 5, 1976
प्रभुपाद: आप एक क्षण में भगवद प्रेम को विकसित नहीं कर सकते । यदि आप गंभीर हो और भगवान आपसे अत्यंत प्रसन्न हैं, तब आप कर सकते हो । वे आपको दे सकते हैं । वे आपको तुरंत दे सकते हैं । यह संभव है । लेकिन ऐसा कुछ दुर्लभ स्थितियों में ही हो सकता है । आमतौर पर, यह प्रक्रिया है: आदौ श्रद्धा तत: साधु-संगो । जैसे की अब आप इस मंदिर में आए हैं । आपके पास कुछ न कुछ आस्था है, हम सभी के पास है । उसे श्रद्धा कहते हैं, आदौ श्रद्धा ।
इस परिसर में कई लाखों लोग रहते हैं । वे क्यों नहीं आ रहे हैं ? यही शुरुआत है । आपको कुछ विश्वास है, श्रद्धा है । तो आप आए हो । आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो । और यदि आप यहा आना जारी रखते हैं... हम क्या कर रहे हैं ? हम इन वैदिक ग्रंथों से शिक्षाएँ लेने के लिए संग ले रहे हैं। इसे साधु-संग कहा जाता है । शराब की दुकान में हम एक तरह का संग करते हैं, हॉटेल में एक तरह का संग करतेे हैं, क्लबों में हम किसी और तरह का संग करते हैं, इस प्रकार के विभिन्न स्थान हैं । तो इस जगह पर भी एक प्रकार का संग है । यह साधु-संग कहा जाता है । भक्तों का संग । तो आप आए हो ।
आदौ श्रद्धा तत: साधु संगो (चैतन्य चरितामृत मध्य २३.१४-१५)। और अगर कोई परिपक्व है, तो वह भक्ति सेवा करना चाहता है, भजन क्रिया । और जैसे ही भजन-क्रिया की शुरूआत होगी, तब अनावश्यक बकवास बातें गायब हो जाएगीं । न कोई अवैध स्त्री संग, न कोई नशा, और न ही शराब पीना, न कोई जुआ । सब बंध । अनर्थ-निवृत्ति: स्यात, सभी गलत आदतें चली जाती हैं, फिर निस्था, दृढ़ विश्वास, थोड़ा भी न बहकना। ततो निष्ठा ततः रूचि । फिर स्वाद । फिर आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल गया है । ततो निष्ठा ततः रुचिस, तथासक्तिस, फिर आकर्षण । फिर भाव । भाव का मतलब परमानंद: "ओह, कृष्ण ।" फिर प्रेम है । विभिन्न चरण होते हैं । तो यह... असली धर्म प्रेम होता है, कैसे भगवान से प्रेम करें । यही असली धर्म है ।
धर्म... वह क्या है? यतो भक्तिर ... स वै पुंसाम परो धर्मो (श्रीमद भागवतम १.२.६) । धर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं । लेकिन असली धर्म वह है जो हमें भगवान से प्रेम करना सीखाए । बस इतना ही । इससे अधिक कुछ नहीं । कोई कर्मकांड समारोह, कोई सूत्र, कुछ नहीं । अगर आपका हृदय हमेशा भगवान के लिए रो रहा है, तो वही सबसे श्रेष्ठ धर्म है । यही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु का कहना है, शुन्यायितम जगत सर्वम: "ओह, कृष्ण के बिना, मुझे सारी दुनिया शून्य लग रही है ।" शून्य, हाँ ।
तो हमे उस स्थिति पर आना है । बेशक, यह हम सभी के लिए संभव नहीं है, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने हमें दिखाया है कि कैसे सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति बने । हमेशा महसूस करना, "ओह, कृष्ण के बिना, सब कुछ शून्य है।" शून्यायितम् जगत सर्वम गोविंद विरहेण । यही असली धर्म है, यही असली धर्म है । तो विष्णुदूत, इन यमदूतों का परीक्षण कर रहें हैं, धर्म का अर्थ क्या है, वह समझते हैं या नहीं । धर्म, हम खुद से नहीं बना सकते । धर्म न तो हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म, ये धर्म, वो धर्म नहीं है । कुछ सांप्रदायिक समझ हो सकती है, लेकिन असली धर्म का मतलब है कि हमने भगवान से प्रेम करना कैसे सीखा है ।
बहुत बहुत धन्यवाद ।
भक्त: जय प्रभुपाद ।