HI/640523 - मथुरा प्रसाद को लिखित पत्र, वृंदावन: Difference between revisions

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२३ मई, १९६४
 
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मेरे प्रिय मथुरा प्रसाद जी,
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सुरक्षित वितरण सुनिश्चित करने के लिए कृपया मेरे बॉक्स नंबर १८४६ के सभी पत्राचार को संबोधित करें।
सुरक्षित वितरण सुनिश्चित करने के लिए कृपया मेरे बॉक्स नंबर १८४६ के सभी पत्राचार को संबोधित करें।


जी.पी.ओ. पोस्ट बॉक्स नंबर १८४६, दिल्ली -६। आपके शीघ्र उत्तर की प्रतीक्षा में, सादर,
जी.पी.ओ. पोस्ट बॉक्स नंबर १८४६, दिल्ली -६। आपके शीघ्र उत्तर की प्रतीक्षा में, सादर, <br/>
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(ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी)
(ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी)

Latest revision as of 11:35, 14 March 2021

श्री बैले को पत्र (पृष्ठ १ से २)
श्री बैले को पत्र (पृष्ठ २ से २)


२३ मई, १९६४

मेरे प्रिय मथुरा प्रसाद जी,

मैं भगवतम मिशन के मामले में आपके सहयोग के लिए धन्यवाद देता हूं। मैं हाथरस के उन सज्जन को देखने की कोशिश करूंगा, जिनका आपने मुझे नाम और पता दिया है। कृपया मुझे सज्जनों के कुछ और पते भेजें ताकि मैं उन्हें उनके द्वारा किए गए काम के महत्व के बारे में समझाने के लिए किताबें और अन्य आवश्यक कागजात भेज दे। हाथरस के सज्जन को देखने के बाद मैं दिल्ली जाऊंगा और वहां से आपको रेलवे पार्सल के अनुसार कुछ सेट बुक और अन्य साहित्य आपके लिए भेजूंगा और फिर मैं भक्तों के समूहों जो एक दान प्राप्त करने के लिए आयकर में छूट का प्रमाण पत्र रखने वाला समाज पंजीकृत है उसके कुछ सदस्यों को सुरक्षित करने के लिए दिल्ली से आगरा जाऊंगा।

सेठजी, आप एक साधारण व्यापारी नहीं हैं। आप पर्याप्त रूप से शिक्षित हैं और सही तरीके से व्यवसाय को लिया हैं। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से आप बहुत महत्वपूर्ण व्यावसायिक दिग्गज में से एक हैं और मैं आपको महान आचार्य और ज्ञान की पुस्तकों के अधिकार पर सूचित कर सकता हूं कि यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पैसे का सबसे अच्छा उपयोग करें जितनी देर वो हमारे पास है। प्रकृति के नियम से भौतिक दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है हमारे भौतिक शरीर सहित और इसलिए महान राजनीतिज्ञ पंडित चाणक्य जो कभी भारत के माननीय प्रधान मंत्री थे, उन्होंने सलाह दी कि हर वस्तु की प्रकृति नाशवंत है खराब सौदेबाजी का सबसे अच्छा उपयोग स्थायी संपत्ति के लिए अस्थायी संपत्ति का उपयोग करना है।

वर्तमान समय में लोग स्थायी आत्मा और अपने भगवान के साथ किसी भी व्यावहारिक स्पर्श के बजाय अस्थायी शरीर अर्थात् स्थूल शरीर और सूक्ष्म दिमाग से अधिक चिंतित हैं। इसका परिणाम यह है कि हमने इश्वरहीन सभ्यता का निर्माण किया है और पूरी दुनिया इस सभ्यता की धारणा से दुखी है।

श्रीमद-भागवतम हमें सभी मानवों को सभी समस्याओं के लिए राजनीतिक, सामाजिक, वैचारिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक और दिव्य ज्ञान का व्यावहारिक समाधान देता है। श्रीमद-भागवतम सभी मनुष्यों के लिए है और संपूर्ण विश्व में इसके महान ज्ञान का प्रसार करने के कर्तव्य हिंदुओं का विशेष रूप से वैष्णवो का है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने शक्तिशाली परियोजना को अपनाया है और मेरी इच्छा है कि आप सज्जन मेरे साथ पूर्ण सहयोग करें। सहयोग जीवन, धन, बुद्धि या शब्दों द्वारा किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को उपरोक्त चार सिद्धांतों में से कुछ उपरोक्त संपत्ति मिली है यदि नहीं तो कम से कम उनमें से एक हमारे पास होनी चाहिए और हम उसे प्रभु की सेवा में समर्पित कर सकते हैं।

श्रीमद-भागवतम चल रहे वर्तमान जीवन और मृत्यु के बाद दोनों जीवन की उच्चतम पूर्णता प्राप्त करने के लिए सभी सुझाव देता है।

मैं आपसे विनम्रता के साथ इस मिशन के साथ सहयोग करने का अनुरोध करूंगा और इस प्रकार आप स्वयं भी लाभान्वित होंगे। यह कम से कम अतिशयोक्ति नहीं है, लेकिन वास्तविक तथ्य है और इस मिशन के लिए अपने हित के लिए एक सदस्य बनना है। और दूसरों की भी मदद करें जो आपको ज्ञात हो।

मैं आपसे आगरा से कम से कम दस सदस्यों को देने का अनुरोध कर रहा हूं क्योंकि आपने पहले ही एक कल दे दिया है और मैं आपको एक बार फिर धन्यवाद दे रहा हूं।

सुरक्षित वितरण सुनिश्चित करने के लिए कृपया मेरे बॉक्स नंबर १८४६ के सभी पत्राचार को संबोधित करें।

जी.पी.ओ. पोस्ट बॉक्स नंबर १८४६, दिल्ली -६। आपके शीघ्र उत्तर की प्रतीक्षा में, सादर,

(ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी)