HI/550919 - गोस्वामी महाराज को लिखित पत्र, दिल्ली: Difference between revisions
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दिव्य प्रेम पाने के लिए मिशन <br/> | दिव्य प्रेम पाने के लिए मिशन <br/> | ||
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सितंबर १९, १९५५ <br/> | सितंबर १९, १९५५ <br/> | ||
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मेरे प्रिय श्रीपाद गोस्वामी महाराज, | मेरे प्रिय श्रीपाद गोस्वामी महाराज, | ||
कृपया मेरा आदरणीय दंडवत प्रणाम स्वीकार करें। मुझे उम्मीद है कि इस बीच आपको मेरा पिछला पत्र मिला होगा। इस दिन मैं हमारे मित्र श्री होरेंद्र नाथ शोम और श्रीपाद अकिंचन महाराज के साथ डाक सेवा निदेशक के कार्यालय में गया था। कुछ होनेवाले-ग्राहक ऐसे थे जिनके पते पंजीकरण के लिए दिए गए थे परंतु उन्होंने हमारे सशुल्क ग्राहक होने से इनकार कर दिया और यह पंजीकरण प्रमाण पत्र के खिलाफ था। हमने सहायक निदेशक के साथ कुछ बातचीत की, जो एक आदर्श सज्जन थे। हेरोन बाबू उनमें से एक थे, उन्होंने बताया कि वह भी एक ग्राहक हैं। जब उन्होंने अपने संस्करण को सादा लिखा तो निर्देशक इसे पंजीकृत करने के लिए सहमत हो गए और मुझे इस दिन आपको सूचित करने में खुशी हो रही है कि हमारा “श्री सज्जनतोषनी” पंजीकरण संख्या डी७९७ के तहत एक मासिक समाचार पत्र के रूप में डाक विभाग में पंजीकृत है। बस रास्ते में मैं कपूर आर्ट प्रेस में जा पंहुचा और मैंने उन्हें कवर पर छपाई के लिए नंबर दे दिया। हमारी पोस्टिंग की तारीख २६ और २७ दिनांक को तय की गई है। मुझे नहीं पता कि प्रेस उस तारीख तक काम पूरा कर पाएगी या नहीं। मैंने पहले से ही उन पर दबाव डाला है और मैं देखूंगा कि यह उपरोक्त तिथि तक प्रकाशित और पोस्ट किया जाए। यदि यह नहीं हुआ, तो हमें पोस्टिंग की तारीख बदलने के लिए एक और आवेदन करना होगा। <br/> | कृपया मेरा आदरणीय दंडवत प्रणाम स्वीकार करें। मुझे उम्मीद है कि इस बीच आपको मेरा पिछला पत्र मिला होगा। इस दिन मैं हमारे मित्र श्री होरेंद्र नाथ शोम और श्रीपाद अकिंचन महाराज के साथ डाक सेवा निदेशक के कार्यालय में गया था। कुछ होनेवाले-ग्राहक ऐसे थे जिनके पते पंजीकरण के लिए दिए गए थे परंतु उन्होंने हमारे सशुल्क ग्राहक होने से इनकार कर दिया और यह पंजीकरण प्रमाण पत्र के खिलाफ था। हमने सहायक निदेशक के साथ कुछ बातचीत की, जो एक आदर्श सज्जन थे। हेरोन बाबू उनमें से एक थे, उन्होंने बताया कि वह भी एक ग्राहक हैं। जब उन्होंने अपने संस्करण को सादा लिखा तो निर्देशक इसे पंजीकृत करने के लिए सहमत हो गए और मुझे इस दिन आपको सूचित करने में खुशी हो रही है कि हमारा “श्री सज्जनतोषनी” पंजीकरण <u>संख्या डी७९७</u> के तहत एक मासिक समाचार पत्र के रूप में डाक विभाग में पंजीकृत है। बस रास्ते में मैं कपूर आर्ट प्रेस में जा पंहुचा और मैंने उन्हें कवर पर छपाई के लिए नंबर दे दिया। हमारी पोस्टिंग की तारीख २६ और २७ दिनांक को तय की गई है। मुझे नहीं पता कि प्रेस उस तारीख तक काम पूरा कर पाएगी या नहीं। मैंने पहले से ही उन पर दबाव डाला है और मैं देखूंगा कि यह उपरोक्त तिथि तक प्रकाशित और पोस्ट किया जाए। यदि यह नहीं हुआ, तो हमें पोस्टिंग की तारीख बदलने के लिए एक और आवेदन करना होगा। <br/> | ||
मैं समझता हूं कि सितंबर के लिए आपने श्रीपाद अकिंचन महाराज को केवल ५०० पत्र छापने के लिए लिखा है। इस संबंध में मैंने प्रेस से पूछा कि वे संस्करण की इस कम संख्या के लिए शुल्क कम कर सकें। उन्होंने कहा कि शुल्क समान होंगे। मुझे लगता है कि हमें इसे हमेशा की तरह, यानी १००० तक छापाना चाहिए। अकिंचन महाराज ने कागज़ के तीन रीलों (२४ पाउंड) का योगदान हासिल किया है और डाक शुल्क पिछले महीने का केवल १/४वां होगा। तो कुछ कागजों को बचाने की बात के लिए हम पूरी संख्या क्यों नहीं छापें। मेरी राय में हमें हर महीने १००० से अधिक प्रतियां छापनी चाहिए और उन्हें बड़े पैमाने पर वितरित करना चाहिए। मुझे लगता है कि आप इस मामले पर पुनर्विचार करेंगे और मुझे अपनी अगली राय बताएंगे। छपाई कल से शुरू हो जाएगी और आप इसे प्राप्त होने पर कृपया इसका उत्तर देंगे। <br/> | मैं समझता हूं कि सितंबर के लिए आपने श्रीपाद अकिंचन महाराज को केवल ५०० पत्र छापने के लिए लिखा है। इस संबंध में मैंने प्रेस से पूछा कि वे संस्करण की इस कम संख्या के लिए शुल्क कम कर सकें। उन्होंने कहा कि शुल्क समान होंगे। मुझे लगता है कि हमें इसे हमेशा की तरह, यानी १००० तक छापाना चाहिए। अकिंचन महाराज ने कागज़ के तीन रीलों (२४ पाउंड) का योगदान हासिल किया है और डाक शुल्क पिछले महीने का केवल १/४वां होगा। तो कुछ कागजों को बचाने की बात के लिए हम पूरी संख्या क्यों नहीं छापें। मेरी राय में हमें हर महीने १००० से अधिक प्रतियां छापनी चाहिए और उन्हें बड़े पैमाने पर वितरित करना चाहिए। मुझे लगता है कि आप इस मामले पर पुनर्विचार करेंगे और मुझे अपनी अगली राय बताएंगे। छपाई कल से शुरू हो जाएगी और आप इसे प्राप्त होने पर कृपया इसका उत्तर देंगे। <br/> | ||
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मुझे उम्मीद है कि जब तक यह पत्र आपके पास पहुंचेगा, तब तक आप नवद्वीप से लौट चुके होंगे। आशा है कि आप अच्छे हैं। <br/> | मुझे उम्मीद है कि जब तक यह पत्र आपके पास पहुंचेगा, तब तक आप नवद्वीप से लौट चुके होंगे। आशा है कि आप अच्छे हैं। <br/> | ||
स्नेह से आपका, | स्नेह से आपका, <br/> | ||
ए. सी. भक्तिवेदांत | [[File:SP Signature.png|300px]] | ||
ए.सी. भक्तिवेदांत |
Latest revision as of 07:50, 18 March 2021
गौड़ीय संघ
दिव्य प्रेम पाने के लिए मिशन
२३ डॉक्टर गली, कलकत्ता - १४।
सितंबर १९, १९५५
मेरे प्रिय श्रीपाद गोस्वामी महाराज,
कृपया मेरा आदरणीय दंडवत प्रणाम स्वीकार करें। मुझे उम्मीद है कि इस बीच आपको मेरा पिछला पत्र मिला होगा। इस दिन मैं हमारे मित्र श्री होरेंद्र नाथ शोम और श्रीपाद अकिंचन महाराज के साथ डाक सेवा निदेशक के कार्यालय में गया था। कुछ होनेवाले-ग्राहक ऐसे थे जिनके पते पंजीकरण के लिए दिए गए थे परंतु उन्होंने हमारे सशुल्क ग्राहक होने से इनकार कर दिया और यह पंजीकरण प्रमाण पत्र के खिलाफ था। हमने सहायक निदेशक के साथ कुछ बातचीत की, जो एक आदर्श सज्जन थे। हेरोन बाबू उनमें से एक थे, उन्होंने बताया कि वह भी एक ग्राहक हैं। जब उन्होंने अपने संस्करण को सादा लिखा तो निर्देशक इसे पंजीकृत करने के लिए सहमत हो गए और मुझे इस दिन आपको सूचित करने में खुशी हो रही है कि हमारा “श्री सज्जनतोषनी” पंजीकरण संख्या डी७९७ के तहत एक मासिक समाचार पत्र के रूप में डाक विभाग में पंजीकृत है। बस रास्ते में मैं कपूर आर्ट प्रेस में जा पंहुचा और मैंने उन्हें कवर पर छपाई के लिए नंबर दे दिया। हमारी पोस्टिंग की तारीख २६ और २७ दिनांक को तय की गई है। मुझे नहीं पता कि प्रेस उस तारीख तक काम पूरा कर पाएगी या नहीं। मैंने पहले से ही उन पर दबाव डाला है और मैं देखूंगा कि यह उपरोक्त तिथि तक प्रकाशित और पोस्ट किया जाए। यदि यह नहीं हुआ, तो हमें पोस्टिंग की तारीख बदलने के लिए एक और आवेदन करना होगा।
मैं समझता हूं कि सितंबर के लिए आपने श्रीपाद अकिंचन महाराज को केवल ५०० पत्र छापने के लिए लिखा है। इस संबंध में मैंने प्रेस से पूछा कि वे संस्करण की इस कम संख्या के लिए शुल्क कम कर सकें। उन्होंने कहा कि शुल्क समान होंगे। मुझे लगता है कि हमें इसे हमेशा की तरह, यानी १००० तक छापाना चाहिए। अकिंचन महाराज ने कागज़ के तीन रीलों (२४ पाउंड) का योगदान हासिल किया है और डाक शुल्क पिछले महीने का केवल १/४वां होगा। तो कुछ कागजों को बचाने की बात के लिए हम पूरी संख्या क्यों नहीं छापें। मेरी राय में हमें हर महीने १००० से अधिक प्रतियां छापनी चाहिए और उन्हें बड़े पैमाने पर वितरित करना चाहिए। मुझे लगता है कि आप इस मामले पर पुनर्विचार करेंगे और मुझे अपनी अगली राय बताएंगे। छपाई कल से शुरू हो जाएगी और आप इसे प्राप्त होने पर कृपया इसका उत्तर देंगे।
मुझे उम्मीद है कि जब तक यह पत्र आपके पास पहुंचेगा, तब तक आप नवद्वीप से लौट चुके होंगे। आशा है कि आप अच्छे हैं।
स्नेह से आपका,
ए.सी. भक्तिवेदांत
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