HI/690915 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 02:56, 20 August 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"तो यह आंदोलन केवल आपकी चेतना को पुनर्जीवित करने के लिए है, आपकी मूल चेतना, जोकि कृष्ण भावनामृत है। तथा अन्य सभी चेतनाएँ जो आपने वर्तमान में अर्जित कर ली हैं, वे सतही हैं, अस्थायी हैं। "मैं भारतीय हूं," "मैं अंग्रेज हूं," "मैं यह हूँ," "मैं वह हूँ "- यह सभी सतही चेतना है। वास्तविक चेतना है अहम् ब्रह्मास्मि। इसलिए भगवान चैतन्य, जिन्होंने इस आंदोलन का आरम्भ पांच सौ वर्ष पूर्व बंगाल में किया वे सीधे सूचित करते हैं कि जीवेर स्वरुप हय नित्य कृष्ण दास (चै.च. मध्य २०.१०८), हमारी वास्तविक पहचान, वास्तविक स्थिति, है कि हम कृष्ण या भगवान के अंश एवं भाग हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि आपका क्या कर्तव्य है।" |
690915 - कॉनवे हॉल में प्रवचन - लंडन |