HI/750127b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद टोक्यो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७५]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७५]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - टोक्यो]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - टोक्यो]]
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/750127 बातचीत - श्रील प्रभुपाद टोक्यो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|750127|HI/750128 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद टोक्यो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|750128}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://vanipedia.s3.amazonaws.com/Nectar+Drops/750127BG-TOKYO_ND_01.mp3</mp3player>|"कई घर हैं, बहुत नीची, और झोपड़ी, इसलिए लोग सोचते हैं कि "यह बहुत अच्छा जीवन नहीं है। आइए हम एक बहुत अच्छी इमारत लें।" तो यह संघर्ष चल रहा है। वह मानव का स्वभाव है, कि जब तक ... जब तक वह खुशी के अंतिम पद या मंच पर नहीं पहुंचता, तब तक वह खुश नहीं होता है। इसे ही योग्यतम का अस्तित्व और अस्तित्व के लिए संघर्ष कहा जाता है। तो सुर-असुर (?) का अर्थ है जो जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं जहाँ खुशी की गारंटी है। जो इसके लिए प्रयास कर रहा है, उसे सुरा, देवता कहा जाता है। और जो इस अस्थायी तथाकथित सुख से संतुष्ट है, वह असुर कहलाता है। यही अंतर है।"|Vanisource:750127 - Lecture BG 16.07 - Tokyo|750127 - प्रवचन BG 16.07 - टोक्यो}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://vanipedia.s3.amazonaws.com/Nectar+Drops/750127BG-TOKYO_ND_01.mp3</mp3player>|"कई घर हैं, बहुत नीची, और झोपड़ी, इसलिए लोग सोचते हैं कि "यह बहुत अच्छा जीवन नहीं है। आइए हम एक बहुत अच्छी इमारत लें।" तो यह संघर्ष चल रहा है। वह मानव का स्वभाव है, कि जब तक ... जब तक वह खुशी के अंतिम पद या मंच पर नहीं पहुंचता, तब तक वह खुश नहीं होता है। इसे ही योग्यतम का अस्तित्व और अस्तित्व के लिए संघर्ष कहा जाता है। तो सुर-असुर (?) का अर्थ है जो जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं जहाँ खुशी की गारंटी है। जो इसके लिए प्रयास कर रहा है, उसे सुरा, देवता कहा जाता है। और जो इस अस्थायी तथाकथित सुख से संतुष्ट है, वह असुर कहलाता है। यही अंतर है।"|Vanisource:750127 - Lecture BG 16.07 - Tokyo|750127 - प्रवचन BG 16.07 - टोक्यो}}

Latest revision as of 05:27, 9 October 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कई घर हैं, बहुत नीची, और झोपड़ी, इसलिए लोग सोचते हैं कि "यह बहुत अच्छा जीवन नहीं है। आइए हम एक बहुत अच्छी इमारत लें।" तो यह संघर्ष चल रहा है। वह मानव का स्वभाव है, कि जब तक ... जब तक वह खुशी के अंतिम पद या मंच पर नहीं पहुंचता, तब तक वह खुश नहीं होता है। इसे ही योग्यतम का अस्तित्व और अस्तित्व के लिए संघर्ष कहा जाता है। तो सुर-असुर (?) का अर्थ है जो जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं जहाँ खुशी की गारंटी है। जो इसके लिए प्रयास कर रहा है, उसे सुरा, देवता कहा जाता है। और जो इस अस्थायी तथाकथित सुख से संतुष्ट है, वह असुर कहलाता है। यही अंतर है।"
750127 - प्रवचन BG 16.07 - टोक्यो