HI/761129 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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Latest revision as of 05:01, 17 October 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक शरीर भौतिक आवरण से ढका हुआ है। यह हमारा वास्तविक शरीर नहीं है। लेकिन ईश्वरत्व की सर्वोच्च व्यक्तित्व के मामले में, ऐसा कोई अंतर नहीं है, देहा, देहि। जैसा कि हम में अंतर है... देहिनो 'स्मिन यथा देहा (भ.गी. ०२.१३)। देहा और देहि। देहि का अर्थ है शरीर का स्वामी । जैसे मैं कहता हूं, "यह मेरा शरीर है।" मैं ये नहीं कहता," मैं ही शरीर हूँ।" सभी को यह अनुभव हुआ है। यहां तक कि एक बच्चे को भी, उसे उंगली से इशारा करते हुए पूछें। वह कहेगा, "यह मेरी उंगली है।" कोई भी नहीं कहता," मैं ही उंगली हूं, "क्योंकि शरीर और आत्मा में अंतर है।"
761129 - प्रवचन श्री.भा. ०५.०६.०७ - वृन्दावन