HI/720817 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | {{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/720815b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|720815b|HI/720901 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|720901}} | ||
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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | |||
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे (भ.गी ४.८) | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे (भ.गी ४.८) | ||
कृष्ण | कृष्ण अत्यधिक चिंतित हैं। हम यहां पीड़ित हैं, सड़ रहे हैं। हम कृष्ण की संतानें हैं। कृष्ण यह देखना पसंद नहीं करते कि हम यहां सड़े। वह चाहते हैं, कि हम अपने वास्तविक घर लौट जाएं, उनके साथ नृत्य करें, उनके साथ खाएं'। परंतु यह बदमाश लोग नहीं जाना चाहते। वे यंही रहना चाहते हैं: 'नहीं, महोदय। मैं यहां प्रसन्न हूँ। मैं शूकर बनूँगा और मल खाऊंगा। यह बहुत सुखद है।' तो यह हमारी स्थिति है।”|Vanisource:720817 - Lecture SB 01.02.14 - Los Angeles|७२०८१७ - प्रवचन श्री.भा. ०१.०२.१४ - लॉस एंजेलेस}} |
Latest revision as of 04:25, 18 November 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"आप प्रश्न करते हैं कि 'आप मानव समाज को बचाने के लिए क्यों इच्छुक हैं?' तो यह कृष्ण का व्यवसाय है। कृष्ण चाहते हैं, भगवान चाहते हैं, कि सभी जीवात्मायें, उन्हें अपने वास्तविक घर वापस जाना चाहिए, उन्हें भगवद्धाम लौट जाना चाहिए। यह जीवात्माएं पीड़ित हैं।' इसलिए कृष्ण स्वयं आते हैं।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे (भ.गी ४.८) कृष्ण अत्यधिक चिंतित हैं। हम यहां पीड़ित हैं, सड़ रहे हैं। हम कृष्ण की संतानें हैं। कृष्ण यह देखना पसंद नहीं करते कि हम यहां सड़े। वह चाहते हैं, कि हम अपने वास्तविक घर लौट जाएं, उनके साथ नृत्य करें, उनके साथ खाएं'। परंतु यह बदमाश लोग नहीं जाना चाहते। वे यंही रहना चाहते हैं: 'नहीं, महोदय। मैं यहां प्रसन्न हूँ। मैं शूकर बनूँगा और मल खाऊंगा। यह बहुत सुखद है।' तो यह हमारी स्थिति है।” |
७२०८१७ - प्रवचन श्री.भा. ०१.०२.१४ - लॉस एंजेलेस |