HI/731110 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७३]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७३]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - दिल्ली]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - दिल्ली]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/731110LE-DELHI_ND_01.mp3</mp3player>|"धर्म, धर्म का सरल विवरण 'वे नियम हैं जो ईश्वर द्वारा दिए गए हैं। यह मायने नहीं रखता कि आप हिंदू हैं, मुस्लिम हैं या ईसाई हैं। सभी को,किसी भी सभ्य व्यक्ति को कोई न कोई धर्म मिला हुआ है। क्योंकि- धर्मेन हिना पशुभि समाना (हितोपदेश २५)। यदि आपका नहीं है ..., धर्म नहीं ... यह कोई फर्क नहीं पड़ता कि हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म। आपका कुछ धर्म अवस्य होना चाहिए। धर्म का अर्थ है ईश्वर को समझना। यही धर्म है। ”|Vanisource:731110 - Lecture Pandal - Delhi|731110 - प्रवचन पंडाल - दिल्ली}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/731108 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|731108|HI/731110b बातचीत - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|731110b}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/731110LE-DELHI_ND_01.mp3</mp3player>|"धर्म, धर्म का सरल विवरण 'वे नियम हैं जो ईश्वर द्वारा दिए गए हैं। यह मायने नहीं रखता कि आप हिंदू हैं, मुस्लिम हैं या ईसाई हैं। सभी को, किसी भी सभ्य व्यक्ति को कोई न कोई धर्म मिला हुआ है। क्योंकि- धर्मेन हिना पशुभि समाना(हितोपदेश २५)। यदि आपका कोई धर्म नहीं है ..., चाहे वह कोई भी धर्म हो। आपका कुछ धर्म अवश्य होना चाहिए। धर्म का अर्थ है ईश्वर को समझना। यह ही धर्म है।”|Vanisource:731110 - Lecture Pandal - Delhi|731110 - प्रवचन पंडाल - दिल्ली}}

Latest revision as of 02:55, 27 December 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"धर्म, धर्म का सरल विवरण 'वे नियम हैं जो ईश्वर द्वारा दिए गए हैं। यह मायने नहीं रखता कि आप हिंदू हैं, मुस्लिम हैं या ईसाई हैं। सभी को, किसी भी सभ्य व्यक्ति को कोई न कोई धर्म मिला हुआ है। क्योंकि- धर्मेन हिना पशुभि समाना(हितोपदेश २५)। यदि आपका कोई धर्म नहीं है ..., चाहे वह कोई भी धर्म हो। आपका कुछ धर्म अवश्य होना चाहिए। धर्म का अर्थ है ईश्वर को समझना। यह ही धर्म है।”
731110 - प्रवचन पंडाल - दिल्ली