HI/661219 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661219BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"श्भाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्म बन्धना: । ([[Vanisource:BG 9.28 (1972)|भा.गी ९.२८]])" यदि तुम अपने सभी कार्यों को कृष्ण भावना में स्थिर हो कर करोगे तो तुम सभी शुभ व अशुभ कर्मों के फल से मुक्त हो सकोगे।" दिव्य क्योंकि कृष्ण भावना में तुम भविष्य में किसी भी कर्म प्रभाव को प्राप्त नहीं करोगे... तुम दिव्य स्थान में स्थित रहोगे। तुम अध्यात्मिक जगत् में भेजे जाओ गे। इस प्रकार तुम किसी भी प्रभाव से मुक्त हो।"|Vanisource:661219 - Lecture BG 09.27-29 - New York|661219 - Lecture BG 09.27-29 - New York}}
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Latest revision as of 01:49, 3 April 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवान कृष्ण कहते हैं, शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे भ.गी. ९.२८): "यदि आप अपने सभी कार्यों को कृष्णभावनामृत में स्थिर रख कर करेंगे, तो आप सभी शुभ व अशुभ कर्मों के फल से मुक्त हो सकेंगे" यह दिव्य है। क्योंकि कृष्णभावनामृत में आपको भविष्य के किसी भी कर्म का प्रभाव प्राप्त नहीं होगा .. आप दिव्य स्थान में स्थित रहेंगे। आप अध्यात्मिक जगत् में भेजे जायेंगे। इस प्रकार आप सभी प्रभाव से मुक्त हैं।"
661219 - प्रवचन भ.गी. ९.२७-२९ - न्यूयार्क