HI/661228 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६‎]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661228CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"अध्यात्मिक और भौतिक जीवन वह है, कि जब तुम भौतिक वस्तुओं के स्वामी बन कर उनका आन्नद उठाना चाहते हो तो वह भौतिक जीवन है। और जब तुम भगवान् के शरणागत हो जाते हो तो वह अध्यात्मिक जीवन है। अध्यात्मिक और भौतिक कार्यकलापो में कुछ विशेष अन्तर नहीं है। केवल भावना को ही बदलना है। जब मेरी भावना भौतिक वस्तुओं का संग्रह करने की है तो वह भौतिक जीवन है, और जब मेरी भावना परम परमात्मा श्री कृष्ण की सेवा करने की है तो वह कृष्ण भावना भावित होना है, वह अध्यात्मिक जीवन है।"|Vanisource:661228 - Lecture CC Madhya 20.354-358 - New York|661228 - Lecture CC Madhya 20.354-358 - New York}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/661226 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|661226|HI/661231 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|661231}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661228CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"आध्यात्मिक और भौतिक जीवन इस प्रकार से है कि, जब आप भौतिक वस्तुओं के स्वामी बन कर उनका आनंद उठाना चाहते हैं तो वह भौतिक जीवन है। और जब आप भगवान् के सेवक बनना चाहते हैं, तो वह आध्यात्मिक जीवन है। आध्यात्मिक और भौतिक कार्यकलापो में कुछ विशेष अन्तर नहीं है। केवल चेतना को ही बदलना है। जब मेरी चेतना भौतिक प्रकृति पर स्वामित्व जताने की है तो वह भौतिक जीवन है, और जब मेरी चेतना परम भगवान् श्री कृष्ण की सेवा करने की है तो वह कृष्णभावनामृत है, वह अध्यात्मिक जीवन है।" |Vanisource:661228 - Lecture CC Madhya 20.354-358 - New York|661228 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.३५४-३५८ - न्यूयार्क}}

Latest revision as of 04:23, 7 April 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक और भौतिक जीवन इस प्रकार से है कि, जब आप भौतिक वस्तुओं के स्वामी बन कर उनका आनंद उठाना चाहते हैं तो वह भौतिक जीवन है। और जब आप भगवान् के सेवक बनना चाहते हैं, तो वह आध्यात्मिक जीवन है। आध्यात्मिक और भौतिक कार्यकलापो में कुछ विशेष अन्तर नहीं है। केवल चेतना को ही बदलना है। जब मेरी चेतना भौतिक प्रकृति पर स्वामित्व जताने की है तो वह भौतिक जीवन है, और जब मेरी चेतना परम भगवान् श्री कृष्ण की सेवा करने की है तो वह कृष्णभावनामृत है, वह अध्यात्मिक जीवन है।"
661228 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.३५४-३५८ - न्यूयार्क