HI/680403 - सत्स्वरूप को लिखित पत्र, सैंन फ्रांसिस्को: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:46, 27 April 2022
3 अप्रैल, 1968
मेरे प्रिय सत्स्वरूप,
मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 4/1/68 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैं यह जानकर प्रसन्न हूँ कि तुमने प्रद्युम्न के हस्पताल के बिल निबटा लिए हैं। मैं यह जानकर अत्यधिक प्रसन्न ए कि वह इष्टगोष्ठी में भाग ले रहा है। उसके उत्तर बहुत ही मेधावी हैं। मैंने न्यु यॉर्क जाने के लिए 17 तारीख पक्की कर दी है।
एक बात तुम सभी भक्तों को बता सकते हो कि माया कभी भी किसी शुद्ध भक्त को स्पर्श नहीं कर सकती। जब कभी हम देखते हैं कि शुद्ध भक्त कठिनाई में है, तो वह काम माया का नहीं है अपितु भगवान द्वारा उनकी व्यक्तिगतअंतरंगा शक्ति के माध्यम से किया गया है। पांडवों के अनेकों विघ्न बाधाएं, भगवान रामचंद्र का वन को प्रस्थान, उनकी पत्नी लक्ष्मीदेवी का रावण द्वारा अपहरण, एक शिकारी के बाण द्वारा भगवान कृष्ण की मृत्यु, 22 बाज़ारों में ठाकुर हरिदास पर बेंतों की मार अथवा प्रभु जीसस क्राइस्ट का सूली पर चढ़ाया जाना, यह सब भगवान के व्यक्तिगत कार्य हैं। हम सदैव इन प्रकरणों के गूढ़ार्थों को नहीं समझ सकते। कभी-कभी इनकी प्रस्तुति, आसुरिक व्यक्तियों को भ्रमित करने के लिए होती है। इसलिए तुम्हें इष्टगोष्ठी में, भगवद्गीता अथवा श्रीमद् भागवतम में से वर्तमान पाठ्य विषयवस्तुओं पर चर्चा करनी चाहिए। हमें प्रत्येक वस्तु को केवल भक्तियोग के मापदंड से ही समझने का प्रयास करना चाहिए। भगवद्गीता में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो व्यक्ति शत-प्रतिशत भगवान के भक्तियोग में रत है वह पराभौतिक स्थिति में है और ऐसे किसी भी व्यक्ति पर माया के प्रभाव का कोई असर नहीं होता। हालांकि वे देखने में माया के कार्य प्रतीत होते हैं, लेकिन हमें समझना चाहिए कि वे योगमाया अथवा भगवान की अंतरंगा शक्ति के कार्य हैं।
तुम सभी के लिए मेरे आशीर्वाद
मैं ठीक महसूस कर रहा हूँ।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी
(हस्ताक्षर)
(हस्तलिखित)
- HI/1968 - श्रील प्रभुपाद के पत्र
- HI/श्रील प्रभुपाद के सभी पत्र हिंदी में अनुवादित
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