HI/660204 - श्रीपाद् तीर्थ महाराज को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क: Difference between revisions

 
 
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Latest revision as of 08:47, 27 April 2022

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Letter to Tirtha Maharaj (page 2 of 2)








कैम्प:100 वेस्ट 72वीं स्ट्रीट
स्टूडियो 501
न्यू यॉर्क एन.वाय.10023

मेरे प्रिय श्रीपाद तीर्थ महाराज,

कृपया मेरे विनीत दंडवत् स्वीकार कीजिए। मुझे आपका दिनांक 1 का पत्र मिला और मैं यह जान कर हर्षित हूँ कि आप दानकर्त्ता का पत्र प्राप्त होते ही ऐक्सचेंज सेंक्शन प्राप्त कर लेंगे। यह दानकर्त्ता भारत के एक धनाढ्य व्यापारी हैं और जैसा आपने कहा था मैं आपको जे.के. ऑर्गनाइज़ेशन के श्री पदमपत सिंहानिया, कमला टॉवर, कानपुर का दिनांक 14 जनवरी, 1966 का पत्र जोकि स्वतः सिद्ध है, संलग्न भेज रहा हूँ। मुझे लगता है कि आप स्वयं भी इन सज्जन को जानते होंगे और ये न्यू यॉर्क में श्री श्री राधा कृष्ण के लिए भव्य मन्दिर निर्माण हेतु कोई भी राशि लगाने में सक्षम हैं। सिंहानिया परिवार, परम्परागत रूप से द्वारिकाधीश का भक्त रहा है और इसीलिए भगवान की इस दिव्य सेवा के लिए ये बिलकुल उपयुक्त हैं। श्रील प्रभुपाद स्वयं न्यू यॉर्क, लंदन, टोक्यो इत्यादि विदेशी महानगरों में ऐसे मन्दिरों के निर्माण कराना चाहते थे और 1922 में उल्टाडिंगी में उनसे प्रथम भेंट के समय मेरी उनसे बात हुई थी। अब मेरे पास एक अवसर है कि उनकी दिव्य आज्ञा का पालन करूं और चूँकि आप श्रील प्रभुपाद के सबसे अग्रणी एवं प्रिय शिष्य हैं और वास्तव में उनकी सेवा में जुटे हैं, इसीलिए मैं केवल आपकी कृपा और दया चाहता हूँ कि यह प्रयास सफल हो। सबकुछ तैयार है, भवन तैयार है, दानकर्त्ता तैयार है और मैं मौके पर सविनय सेवा में तत्पर हूँ। अब बस आपको ही कृष्णकृपाश्रीमूर्ति के सबसे प्यारे शिष्य होने के नाते, इसे अन्तिम रूप देना है। मुझे लगता है कि श्रील प्रभुपाद चाहते हैं कि मुझ अकिंचन द्वारा किये जा रहे इतने बड़े प्रयास में आपकी महत्त्वपूर्ण सेवा भी आकर मिले।

इसीलिए कृपया इसपर तुरन्त कार्यवाई कीजिए और यदि आवश्यक हो तो आप स्वयं जा कर डा. राधा कृष्ण से भेंट कीजिए। क्योंकि उन्हें गौड़ीय मठ के कार्यकर्ताओं से सहानुभूति है, कारण कि उन्हें ज्ञात है कि ये भक्त निष्ठा के साथ पूरे विश्व को पुनः आध्यात्मिक बनाने के प्रयास में जुटे हैं। मैं भी उनसे व्यक्तिगत रूप से परिचित हूँ लेकिन भारत से बाहर होने के कारण मेरा उनसे मिल पाना संभव नहीं है। जैसा कि आपको श्री पदमपत सिंहानिया के संलग्न पत्र से ज्ञात हो ही जाएगा, वे इस प्रयोजन में कोई भी राशि व्यय करने को तत्पर हैं, तो आप बड़ी से बड़ी राशि का सैंक्शन प्राप्त कर सकते हैं। कमसे कम दस लाख रुपए का।

जहां तक यहां मन्दिर के संचालन हेतु कार्यकर्ताओं की बात है, आप उसकी बिलकुल चिन्ता न करें। मेरे पास पहले से ही कुछ अमरीकी युवक हैं जो पूर्णतः शाकाहारी हैं। इसके अलावा भी, यहां पर अनेक भारतीय छात्र हैं और मैं भारतीय एवं अमरीकी, दोनों में से सदस्य बना सकता हूँ। मूझे इसका पूरा विश्वास है। मैं यहां पर कल शाम के समय हुई एक घटना का उदाहरण देना चाहुंगा। मैंने स्वयं की कीर्तन करते हुए कुछ रिकॉर्डिंग की हैं। ऐसी एक रिकॉर्डिंग चलाई जाने पर श्रोतागण पूर्णतः मंत्रमुग्ध हो गए, जबकि मेरी भाषा का एक भी शब्द उनकी समझ में नहीं आ रहा था। इसीलिए मुझे श्रील हरीदास ठाकुर के कथन पर पूरा विश्वास है कि भगवान चैतन्य के हरीनाम की दिव्य ध्वनि पशु-पक्षियों पर भी प्रभाव डाल सकती है। निस्संदेह ही ये अमरीकी मांसाहार के आदी हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि क्योंकि ये निष्कपट भाव से प्रशिक्षित होना चाहते हैं, इसलिए अवश्य ही ये हमारे स्तर तक लाए जा सकते हैं। जब न्यूयॉर्क में हमारा सुव्यवस्थित संस्थान स्थापित होगा, तब यह सब व्यवहारात्मक रूप से संभव हो पाएगा। यदि भारत से कुछ योग्य-शिक्षित कार्यकर्ता भिजवाना संभव हो तो ठीक है, अथवा श्रील प्रभुपाद की कृपा से मैं यहीं पर सब प्रबंध कर लूंगा। हम स्वयं कुछ नहीं कर सकते किन्तु यदि वैष्णव हमारी निष्कपट सेवा स्वीकार करलें तो सभी कुछ संभव है। पूज्यपाद आप, जोकि इन सेवाओं में अति दक्ष हैं, के सामने मैं और कुछ बोलने कि धृष्टता नहीं करुंगा। इसीलिए कृपया इस कार्य को तुरन्त पूरा करवाने का अनुग्रह करें।

साथ ही साथ मैं एक रु 10/- का संलग्न चैक आपके माध्यम से श्रील प्रभुपाद के चरणकमलों पर अर्पित करना चाहुंगा, और आशा करता हूँ कि आप उनसे उनकी सेवा के इस महान प्रयास में सफल होने का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

एक बार फिर आपको धन्यवाद देते हुए, मैं सर्वदा बना रहना चाहता हूँ,

आपका आज्ञाकारी

ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

संलग्नः2