HI/690310 - मधुसूदन को लिखित पत्र, हवाई: Difference between revisions

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'''<big>[[Vanisource:690308 - Letter to Satsvarupa written from Hawaii|Original Vanisource page in English]]</big>'''
'''<big>[[Vanisource:690310 - Letter to Madhusudana written from Hawaii|Original Vanisource page in English]]</big>'''
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8 मार्च, 1969
10 मार्च, 1969
 
 
मेरे प्रिय मधुसूदन,
 
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं 5 मार्च के पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ और तुम बिना संशय के यह मान लो कि मेरी ओर से तुम्हें, जितनी जल्दी हो सके, कंचनबाला दासी के साथ विवाह करने की अनुमति है। उसकी ओर से उसकी माता ने अनुमति दे दी है और तुम्हारी ओर से मैंने। तो कंचनबाला एक आदर्श युवती है, कृष्णभावनाभावित, और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे देश में कुछ आदर्श कृष्णभावनाभावित परिवारों की स्थापना हो, जिससे लोग देख पाएं कि हमारा आंदोलन एक-पक्षीय अथवा शुष्क नहीं है। तो हमें शुष्क परित्यागी नहीं चाहिएं। स्वयं कृष्ण ने, क्षत्रीय के रूप में, इतनी सारी पत्नियों के साथ विवाह किया था। हालांकि चैतन्य महाप्रभू ने 24 वर्ष की आयु में सन्न्यास ग्रहण कर लिया था, फिर भी 20 वर्ष के भीतर ही उनके दो विवाह हुए थे। भगवान नित्यानन्द प्रभु भी विवाहित थे। अद्वैत प्रभु व श्रीवास प्रभु भी ग्रहस्थ थे। तो विवाह कृष्णभावनामृत में उन्नति करने में कोई बाधा नहीं है। व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए कि वह कृष्णभावनामृत से पथभ्रष्ट न हो जाए। व्यक्ति को महान आचार्यों के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए, ऐसे में सबकुछ ठीक है। मैं भी एक विवाहित व्यक्ति था---मेरा परिवार अभी भी अस्तित्व में है। तुम्हें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि विवाह अड़चन नहीं है। सबसे बड़ा शत्रु है, कृष्ण का विस्मरण। अनेकों निरारवादी व शून्यवादी हैं—वे अपने जीवन में बहुत जल्दी इस भौतिक जगत का त्याग कर देते हैं। जैसे संकर आचार्य। उन्होंने 8 वर्ष की आयु में सन्न्यास ले लिया था। भगवान बुद्ध नें यौवन की शुरुआत में घर छोड़ दिया था। किन्तु हमारा इनसे कोई अभिप्राय नहीं है। तो मुझे आशा है कि, गत दो वर्ष से इस कृष्णभावनामृत आंदोलन की सेवा करके, तुम्हें अवश्य ही इस रसीले फल में कुछ स्वाद मिल गया होगा। अब तुम्हें स्थित रहना ही होगा और मेरे आदेश के अनुरूप अपने विशिष्ट कर्तव्य का पालन करना होगा। और फिर, मुझे विश्वास है कि, कोई कठिनाई नहीं होगी। किन्तु तुम्हें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि, पत्नी इंद्रीय तृप्ति के लिए कोई यंत्र नहीं है। पत्नी, तुम्हारी कृष्णभावनाभावित स्थिति को पोषण देता हुआ, तुम्हारा शरीर का आधा अंश है। तो तुम्हें एक ऐसी पत्नी मिल रही है जो कृष्णभावनामृत में पहले से ही प्रशिक्षित है और यदि तुम ध्यानपूर्वक व श्रद्धा के साथ रहो, तो कोई भी कठिनाई नहीं होगी। सारे आचार्यों का यही मत है। मैं सोचता हूँ कि इससे तुम्हारे उद्विग्न मन को सांत्वना मिलेगी।
 
आशा है कि अच्छे हो और कंचनबाला भी, और सुखपूर्वक कृष्णभावनामृत का निर्वाह कर रहे हो।
 
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,<br/>
 
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

Latest revision as of 09:17, 27 April 2022

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


10 मार्च, 1969


मेरे प्रिय मधुसूदन,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं 5 मार्च के पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ और तुम बिना संशय के यह मान लो कि मेरी ओर से तुम्हें, जितनी जल्दी हो सके, कंचनबाला दासी के साथ विवाह करने की अनुमति है। उसकी ओर से उसकी माता ने अनुमति दे दी है और तुम्हारी ओर से मैंने। तो कंचनबाला एक आदर्श युवती है, कृष्णभावनाभावित, और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे देश में कुछ आदर्श कृष्णभावनाभावित परिवारों की स्थापना हो, जिससे लोग देख पाएं कि हमारा आंदोलन एक-पक्षीय अथवा शुष्क नहीं है। तो हमें शुष्क परित्यागी नहीं चाहिएं। स्वयं कृष्ण ने, क्षत्रीय के रूप में, इतनी सारी पत्नियों के साथ विवाह किया था। हालांकि चैतन्य महाप्रभू ने 24 वर्ष की आयु में सन्न्यास ग्रहण कर लिया था, फिर भी 20 वर्ष के भीतर ही उनके दो विवाह हुए थे। भगवान नित्यानन्द प्रभु भी विवाहित थे। अद्वैत प्रभु व श्रीवास प्रभु भी ग्रहस्थ थे। तो विवाह कृष्णभावनामृत में उन्नति करने में कोई बाधा नहीं है। व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए कि वह कृष्णभावनामृत से पथभ्रष्ट न हो जाए। व्यक्ति को महान आचार्यों के पदचिन्हों का अनुसरण करना चाहिए, ऐसे में सबकुछ ठीक है। मैं भी एक विवाहित व्यक्ति था---मेरा परिवार अभी भी अस्तित्व में है। तुम्हें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि विवाह अड़चन नहीं है। सबसे बड़ा शत्रु है, कृष्ण का विस्मरण। अनेकों निरारवादी व शून्यवादी हैं—वे अपने जीवन में बहुत जल्दी इस भौतिक जगत का त्याग कर देते हैं। जैसे संकर आचार्य। उन्होंने 8 वर्ष की आयु में सन्न्यास ले लिया था। भगवान बुद्ध नें यौवन की शुरुआत में घर छोड़ दिया था। किन्तु हमारा इनसे कोई अभिप्राय नहीं है। तो मुझे आशा है कि, गत दो वर्ष से इस कृष्णभावनामृत आंदोलन की सेवा करके, तुम्हें अवश्य ही इस रसीले फल में कुछ स्वाद मिल गया होगा। अब तुम्हें स्थित रहना ही होगा और मेरे आदेश के अनुरूप अपने विशिष्ट कर्तव्य का पालन करना होगा। और फिर, मुझे विश्वास है कि, कोई कठिनाई नहीं होगी। किन्तु तुम्हें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि, पत्नी इंद्रीय तृप्ति के लिए कोई यंत्र नहीं है। पत्नी, तुम्हारी कृष्णभावनाभावित स्थिति को पोषण देता हुआ, तुम्हारा शरीर का आधा अंश है। तो तुम्हें एक ऐसी पत्नी मिल रही है जो कृष्णभावनामृत में पहले से ही प्रशिक्षित है और यदि तुम ध्यानपूर्वक व श्रद्धा के साथ रहो, तो कोई भी कठिनाई नहीं होगी। सारे आचार्यों का यही मत है। मैं सोचता हूँ कि इससे तुम्हारे उद्विग्न मन को सांत्वना मिलेगी।

आशा है कि अच्छे हो और कंचनबाला भी, और सुखपूर्वक कृष्णभावनामृत का निर्वाह कर रहे हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी