HI/750325 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 17:54, 6 May 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कृष्ण-चैतन्य-संज्ञानकम। कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, उन्होंने खुद को गुरु के रूप में विस्तारित किया है। गुरु, आध्यात्मिक गुरु, वे भी श्री चैतन्य महाप्रभु हैं। साक्षद-धारितवेण समस्त-शास्त्रीय उक्त:। सभी शास्त्रों में, गुरु को कृष्ण के रूप में स्वीकार किया जाता है। साक्षाद-धरितवेण। साक्षाद का अर्थ है सीधे। जैसे आप गुरु को अपनी भक्ति, सम्मान, देते हैं। तो वो सम्मान कृष्ण को दिया जाता है। गुरु भी खुद को कृष्ण नहीं मानते हैं, लेकिन वे कृष्ण को अर्पित करने के लिए शिष्यों की भक्ति सेवाओं को इकट्ठा करते हैं। यह प्रक्रिया है। हम सीधे कृष्ण से संपर्क नहीं कर सकते। हमें गुरु के माध्यम से संपर्क करना चाहिए। तस्माद गुरुं प्रपद्येता जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम् (श्री. भा. ११.३.२१)। यह शास्त्र का निषेधाज्ञा है, कि व्यक्ति को उस गुरु के पास जाना चाहिए जो सेवा को शिष्य से पूर्ण पुरुषोत्तम को हस्तांतरित कर सके।" |
750325 - प्रवचन चै. च. अदि ०१.०१ - मायापुर |