HI/720509 - दामोदर को लिखित पत्र, होनोलूलू: Difference between revisions
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9 मई, 1972
मेरे प्रिय दामोदर,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे दिनांक 19 अप्रैल, 1972 का तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ और मैंने उसे पढ़ लिया है। हाई स्कूल कार्यक्रम, हमारे आंदोलन को प्रस्तुत करने के लिए, अच्छे अवसर हैं। और साथ ही कृष्ण पुस्तक के सस्ते संस्करणों को प्रस्तुत करने के लिए भी प्रयास करो। प्रत्येक विद्यार्थी उसे पढ़ने में दिलचस्पी लेगा। मुझे लगता हैं कि पूरा सेट, $2 में खरीदा जा सकता है। किसी भी तरह से, ये पुस्तकें जनसमुदाय की, और विशेषकर इन विद्यार्थियों की, समझ के लिए प्रस्तुत की जानीं चाहिएं। स्कूलों में धार्मिक पाठ्क्रम भी होते हैं। तो, प्राधिकारियों के समक्ष ये पुस्तके प्रस्तुत की जा सकती हैं, जिससे वे भगवद्गीता एवं कृष्ण पुस्तक की अनुशंसा विशेष रूप से करें। दरअसल ऐसी पुस्तकें पूरे विश्व में नहीं हैं। इनमें भगवान का इतना सुन्दर वर्णन है। प्राधिकारियों द्वारा लोगों में भगवद् चेतना का संचार किया जाना अति आवश्यक है। इसके अभाव में वे नरक की ओर जा रहे हैं। और केवल हमारी पुस्तकें ही हैं जो भगवान का इतना स्पष्ट परिचय दे रहीं हैं। तो अवश्य ही इन्हें प्रस्तुत किया जाना चाहिए। वास्तव में, कोई भी भगवान के बारें में इतना नहीं बता सकता जितना हम बता सकते हैं।
जहां तक पूर्वी क्षेत्र के विविध केंद्रों के संचालन की बात है, तो मैं रूपानुग से आवश्यक कदम उठाने के लिए कह चुका हूँ। यदि नुकसान हो रहा है तो तुम विभिन्न केंद्रों का समावेश कर सकते हो। तुम दूध में पानी मिलाकर उसे पतला कर सकते हो और उबालकर उसे गाढ़ा बना सकते हो। अब उबालने की प्रक्रिया शुरु करने का समय आ गया है। अब तुम एक वैष्णव ब्राह्मण होने के बारे में सबकुछ जानते हो। अब तुम्हें इन सब बातों का अवश्य ही पालन करना होगा, अन्यथा यह सबकुछ एक दिखावा बनकर रह जाएगा। ऐसे अनेकों अनुयायिओं को इकट्ठा करने से, जो वास्तविक सिद्धांतों को न ही समझते हों और न ही उनका पालन करते हों, से कहीं बेहतर है कि कम संख्या में भक्तों का विकास कर उन्हें वस्तुतः कृष्णभावनाभावित युवक व युवतियों में परिवर्तित कर दिया जाए। अनेकों सितारों से अच्छा तो अकेला एक चंद्रमा ही है।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
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