HI/740423 - निरंजन को लिखित पत्र, हैदराबाद: Difference between revisions

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Letter to Niranjan


हरे कृष्ण लैंड,
नामपल्ली स्टेशन रोड
हैदराबाद, ए.पी. इंडिया

23 अप्रैल, 1974

प्रिय निरंजन,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे स्कॉटलैण्ड से दिनांक 9 अप्रैल का तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है।

तुम पूछ रहे हो कि अब जैसे तुम युवर्सिटी में पढ़ रहे हो, तो ऐसे में तुम्हारा प्रचार कार्य क्या होना चाहिए। तो पहला प्रचार कार्य है कि तुम्हें स्वयं एक आदर्श भक्त बनना चाहिए। भगवान चैतन्य ने कहा है कि व्यक्ति को पहले स्वयं को उत्तम बनाना चाहिए और उसके पश्चात दूसरों को सिखाने का प्रयास करना चाहिए। यदि तुम स्वयं सिगरेट पीते हो, तो किसी दूसरे व्यक्ति से धूम्रपान बंद करने के लिए कहने का कोई अर्थ नहीं है। हालांकि युनिवर्सिटी में तुम सभी प्रकार के छात्रवर्ग से मिलजुल रहे हो, फिर भी तुम्हें चार प्रकार की वर्जित पापपूर्ण गतिविधियों से सख्ती बचना चाहिए और एक दीक्षा प्राप्त शिष्य के तौर पर तुम्हें एक भी दिन ऐसा नहीं जाने देना चाहिए जब तुम हरे कृष्ण मंत्र का 16 माला जप न करो। यदि तुम केवल इन चीजों का पालन कर लो तो स्वयं उसीसे व्यवहार के माध्यम से बलपूर्वक प्रचार हो जाएगा। साथ ही तुम्हें हमेशा गले में कंठी माला व तिलक का निशान धारण करना चाहिए। लोग तुमसे प्रश्न करेंगे और तुम उन्हें कृष्णभावनामृत के बारे में बता सकते हो और पुस्तकें भी बेच सकते हो।

साथ ही तुम्हें इंग्लैण्ड व स्कॉटलैण्ड के भक्तों का संग करने का प्रयास करना चाहिए। यदि संभव हो तो रविवार को या जब कभी मुमकिन हो, मन्दिर जाओ और हमेशा मेरी पुस्तकें पढ़ो। मैं मई के पहले सप्ताह में लंदन आऊंगा और यदि तुम आकर मुझसे भक्तिवेदान्त मैनर में मिलो तो बहुत अच्छा रहेगा।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

(अहस्ताक्षरित)

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस/एसडीजी


निरंजन दास ब्रह्मचारी
c/o पी.के. श्रीवास्तव
प्रसूति विभाग
स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय,
ग्लासगो, जी1 1एक्सएन स्कॉटलैंड