HI/701106b बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701106R1-BOMBAY_ND_02.mp3</mp3player>|यदि आप लोगों को कृष्ण भावनाभावित बना सकते है, तो सब कुछ अपने आप हो | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701106R1-BOMBAY_ND_02.mp3</mp3player>|यदि आप लोगों को कृष्ण भावनाभावित बना सकते है, तो सब कुछ अपने आप हो जाएगा। क्योंकि लोकतंत्र है। इसलिए यदि वे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति को वोट देते हैं, तो सब कुछ बच जाएगा। इसका मतलब है कि आपको कृष्ण भावनाभावित मतदाता बनाने होंगे। फिर सब कुछ सही होगा। यह आपके कृष्ण भावनामृत आंदोलन के उद्देश्य में से एक होना चाहिए। सरकार अभी भी जनता के नियंत्रण में है। यह एक तथ्य है। अगर जनता कृष्ण भावनाभावित हो जाती है, स्वाभाविक रूप से सरकार कृष्ण भावनाभावित हो जाएगी। लेकिन यह जनता के ऊपर निर्भर है। लेकिन वे नहीं बनना चाहते।|Vanisource:701106 - Conversation - Bombay|701106 - बातचीत - बॉम्बे}} |
Latest revision as of 15:09, 3 February 2023
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
यदि आप लोगों को कृष्ण भावनाभावित बना सकते है, तो सब कुछ अपने आप हो जाएगा। क्योंकि लोकतंत्र है। इसलिए यदि वे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति को वोट देते हैं, तो सब कुछ बच जाएगा। इसका मतलब है कि आपको कृष्ण भावनाभावित मतदाता बनाने होंगे। फिर सब कुछ सही होगा। यह आपके कृष्ण भावनामृत आंदोलन के उद्देश्य में से एक होना चाहिए। सरकार अभी भी जनता के नियंत्रण में है। यह एक तथ्य है। अगर जनता कृष्ण भावनाभावित हो जाती है, स्वाभाविक रूप से सरकार कृष्ण भावनाभावित हो जाएगी। लेकिन यह जनता के ऊपर निर्भर है। लेकिन वे नहीं बनना चाहते। |
701106 - बातचीत - बॉम्बे |