HI/760424 - श्रील प्रभुपाद मेलबोर्न में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन  
''त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन''
([[Vanisource : BG 4.9| भ.गी ४.९]])
([[Vanisource : BG 4.9| भ.गी ४.९]])
मद्याजिनोऽपि माम्
''मद्याजिनोऽपि माम्''
([[Vanisource : BG 9.25| भ.गी ९.२५]])
([[Vanisource : BG 9.25| भ.गी ९.२५]])
अगर आप कृष्ण चेतना का अभ्यास करे तो ही यह संभव है; अन्यथा नहीं।
अगर आप कृष्ण चेतना का अभ्यास करे तो ही यह संभव है; अन्यथा नहीं।"
|Vanisource:760424 - Lecture BG 09.05 - Melbourne|760424 - प्रवचन भ.गी ०९.०५ - मेलबोर्न}}
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Revision as of 15:15, 27 July 2024

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक देह इस भौतिक देह से ढ़की हुई है। तो कुछ भी भौतिक, उसका अस्तित्व नहीं रहेगा। तो भौतिक देह का अंत हो गया, तब उसे दूसरी देह की खोज करनी पड़ती है। जैसे कोई वस्त्र पुराना हो गया है; तो आप दूसरा वस्त्र धारण कर लेते है। और जब आपको ये वस्त्र धारण नही करना पड़ता, या यह भौतिक देह, और आप अपने आध्यात्मिक देह में रहते है, उसे मुक्ति कहते है। तो इसे केवल कृष्ण चेतना में हासिल किया जा सकता है।

त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ( भ.गी ४.९) मद्याजिनोऽपि माम् ( भ.गी ९.२५) अगर आप कृष्ण चेतना का अभ्यास करे तो ही यह संभव है; अन्यथा नहीं।"

760424 - प्रवचन भ.गी ०९.०५ - मेलबोर्न